मराठा साम्राज्य के संस्थापक छत्रपति शिवाजी की जयंती 19 फरवरी को मनाई जाती है। शिवाजी की जन्मतिथि को लेकर विवाद है। लेकिन महाराष्ट्र सरकार मानती है कि ‘मराठा शासक’ का जन्म 393 साल पहले 19 फरवरी, 1630 को महाराष्ट्र के शिवनेरी किले में हुआ था।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोशल मीडिया साइट एक्स पर एक वीडियो शेयर करते हुए शिवाजी के साहस और सुशासन को याद किया है। अपने एक भाषण में भी शिवाजी को श्रद्धांजलि देते हुए पीएम ने कहा है, “आज छत्रपति शिवाजी महाराज की जन्म-जयंती भी है। ये दिन इसलिए और भी पवित्र और प्रेरणादायक हो जाता है। आज हम देश में जो सांस्कृतिक पुनरोदय देख रहे हैं, अपनी पहचान पर गर्व कर रहे हैं, ये प्रेरणा हमें छत्रपति शिवाजी महाराज से ही मिलती है। मैं इस अवसर पर छत्रपति शिवाजी महाराज के चरणों में श्रद्धापूर्वक नमन करता हूं।”

शिवाजी की तारीफ करते हुए अक्सर उनके योद्धा रूप को जरूर रेखांकित किया जाता है। जबकि उनके शासन के कई ऐसा पहलू हैं, जिस पर बहुत कम बात हुई है। लोकप्रिय मराठी लेखक और इतिहासकार श्रीमंत कोकाटे ने ‘छत्रपति शिवाजी महाराज (सचित्र)’ नाम से एक किताब लिखी है, जिसमें उनके अलग रूप का वर्णन मिलता है।

किसानों के मसीहा थे शिवाजी!

इतिहासकार श्रीमंत कोकाटे की किताब का अंग्रेजी संस्करण पिछले साल मार्च में आया था, तब उन्होंने द इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए कहा था, “छत्रपति शिवाजी महाराज को एक महान राजा के रूप में जाना जाता है। केवल महाराष्ट्र या भारत नहीं, बल्कि दुनिया भर के लोग उनका सम्मान करते हैं। उनकी उपलब्धियां समाज के लिए एक बड़ी प्रेरणा हैं। ऐसे में उनकी जीवन यात्रा को तथ्यों के आधार पर प्रस्तुत करना आवश्यक हो जाता है। मैंने महान राजा के प्रामाणिक इतिहास को सामने लाने के लिए गंभीर प्रयास किए हैं।”

किताब इस बात पर प्रकाश डालती है कि कैसे मराठा शासक ने अपनी प्रजा के हितों का ध्यान रखते थे। कोकाटे बताते हैं, “शिवाजी महाराज ने अपने शासन में यह सुनिश्चित किया था कि अनाज पैदा कर लोगों का पेट भरने वाले किसान हमेशा खुश रहें। उनका आदेश दिया था कि किसानों के घास के ढेर तक को भी हाथ न लगाया जाए। शिवाजी ने सूखा प्रभावित किसानों को बैल और अनाज उपलब्ध कराया था। साथ ही ब्याज मुक्त वित्तीय सहायता दी थी।”

पुस्तक से पता चलता है कि कैसे शिवाजी शासन के दौरान भेदभावपूर्ण प्रथाओं के लिए कोई जगह नहीं थी। उन्होंने सभी जातियों और धर्मों के लोगों को महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त किया था।

गौरतलब है कि वर्तमान में देश के किसानों का एक वर्ग मौजूदा सरकार की नीतियों से खुश नहीं है। आलम यह है कि आम चुनावों की संभावित घोषणा से कुछ सप्ताह पहले किसानों का एक बड़ा समूह दिल्ली में विरोध प्रदर्शन के लिए आना चाहता है, जिसे सरकार ने अपनी तमाम मिशनरियों के इस्तेमाल से पंजाब-हरियाणा की सीमा शंभू बॉर्डर पर रोक रखा है। किसानों के प्रतिनिधियों और सरकार के बीच रविवार (18 फरवरी) को हुई चौथे दौर की बैठक भी बेनतीजा रही है।

वैज्ञानिक विचारधारा वाले बुद्धिजीवी थे शिवाजी

कोकाटे बताते हैं कि “शिवाजी के शासनकाल के दौरान महिलाओं को सम्मान दिया जाता था, उन्हें पुरुषों के बराबर माना जाता था। शिवाजीराजे धार्मिक थे, लेकिन कट्टर या अंधविश्वासी नहीं थे। …शिवाजी महाराज एक वैज्ञानिक विचारधारा वाले बुद्धिजीवी थे। उन्होंने कभी भी शुभ समय या मुहूर्त पर विश्वास नहीं किया। उनके कई युद्ध अमावस्या की रात को हुए थे। वह स्वर्ग, नरक, पुनर्जन्म में विश्वास नहीं करते थे… वह अपने काम में विश्वास करते थे और अपनी प्रजा की रक्षा करने, उनका कल्याण सुनिश्चित करने और संकट में उनकी मदद करने की पूरी कोशिश करते थे। मैंने शिवराजे के वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर प्रकाश डाला है और प्रामाणिक संदर्भ प्रस्तुत किए हैं।”

गुलामी प्रथा के खिलाफ थे शिवाजी

शिवाजी गुलामी के ख़िलाफ़ थे। किताब में बताया गया है कि जब यूरोप ने पूंजीवाद का अनुसरण किया, तो शिवाजी ने उन्हें मानवतावाद सिखाया। जब यूरोप में पुरुषों और महिलाओं को गुलामों के रूप में खरीदा और बेचा जाता था, तो मराठा राजा ने गुलामी पर प्रतिबंध लगा दिया।