Chandrayaan-3: भारत का महत्वाकांक्षी मून मिशन चंद्रयान-3 आज (23 अगस्त) चंद्रमा की सतह पर लैंड करेगा। इसरो इस मिशन के जरिये चंद्रमा की सतह पर मौजूद रसायनों, मिट्टी, पत्थरों और धूल के कणों का अध्ययन करना चाहता है। जो भविष्य में भारत के लिए मील का पत्थर साबित हो सकता है। पहले अमेरिका, रूस और चीन चंद्रमा पर जा चुके हैं। हालांकि कभी अमेरिका ने चंद्रमा पर हाइड्रोजन बम (Nuclear Blast in Moon) गिराने की तैयारी कर ली थी। सीक्रेट प्लान भी बन चुका था और इसे नाम दिया गया था ‘प्रोजेक्ट ए 119’।

क्या था अमेरिका का सीक्रेट प्लान?

‘प्रोजेक्ट ए 119’ अमेरिका का टॉप सीक्रेट प्लान था और इसका मकसद चंद्रमा पर हाइड्रोजन बम गिराना था। आपको बता दें कि हाइड्रोजन बम, परमाणु बम के मुकाबले कई गुना ज्यादा खतरनाक और ताकतवर होता है। साल 1945 में अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराए थे, जिससे दोनों शहर लगभग तबाह हो गए थे। अमेरिका ने यह अहम जिम्मेदारी चर्चित भौतिक विज्ञानी लियोनार्ड रैफेल को सौंपी। रैफेल ने मई 1958 और जनवरी 1959 में दो अलग-अलग रिपोर्ट तैयार की। जिसमें पूरे प्लान का लेखा-जोखा था।

अमेरिका को कैसे आया आइडिया?

तो अमेरिका के दिमाग में चंद्रमा पर हाइड्रोजन बम गिराने का आइडिया कैसे आया? BBC की एक रिपोर्ट के मुताबिक इसकी शुरुआत 1950 के आसपास द्वितीय विश्व युद्ध के ठीक बाद हुई। तब अमेरिका और सोवियत संघ के बीच शीत युद्ध यानी कोल्ड वॉर शुरू हो चुका था। अमेरिका के सियासी गलियारों में कहा जाने लगा कि सोवियत संघ शीत युद्ध में भारी पड़ रहा है। सोवियत संघ उस वक्त बहुत तेजी से परमाणु हथियार बनाने में जुटा था। परमाणु बम और परमाणु मिसाइल पर तेजी से काम कर रहा था।

कोल्ड वॉर से हुई शुरुआत

साल 1952 में अमेरिका ने अपने पहले हाइड्रोजन बम का परीक्षण किया। 3 साल बाद साल 1955 में सोवियत संघ ने भी हाइड्रोजन बम का परीक्षण कर लिया। इससे वॉशिंगटन दंग रह गया। 1957 आते-आते सोवियत संघ ने स्पूतनिक-1 लॉन्च कर दिया, जो पृथ्वी का चक्कर लगाने वाली दुनिया की पहली आर्टिफिशियल सैटेलाइट थी। ठीक इसी वक्त अमेरिका भी ऐसा प्रयास कर रहा था, लेकिन सफल नहीं हो पाया था।

रूस को डराना चाहता था अमेरिका

अमेरिका की योजना थी कि चंद्रमा पर रौशनी और अंधेरे के बॉर्डर लाइन पर हाइड्रोजन बम गिराया जाएगा। इसे टर्मिनेटर लाइन नाम दिया गया था। टर्मिनेटर लाइन पर बम गिराने का मकसद यह था कि धमाके के बाद इतनी तेज रौशनी होती कि धरती पर, खासकर रूस की राजधानी क्रेमलिन से इसे नंगी आंखों से साफ-साफ देखा जा सकता था। बीबीसी के मुताबिक अमेरिका इस पूरे सीक्रेट प्लान के जरिये एक तरीके से रूस पर दबाव बनाना चाहता था।

कैसे फूटा भांडा?

दुनिया को अमेरिका के इस क्रेजी प्लान का पता 1990 के दशक में पहली बार लगा। अमेरिका के मशहूर वैज्ञानिक कार्ल सैगन (Carl Sagan) भी इस प्लान का हिस्सा थे। 1990 के दशक में उन्होंने एक विश्वविद्यालय के लिए एप्लीकेशन दिया, जिसमें इस बात का जिक्र किया।