Caste census Modi Government 2024: देश में पिछले कुछ सालों में जाति जनगणना की मांग जोर-शोर से हुई है। कांग्रेस सहित विपक्षी दलों ने जाति जनगणना कराने को लेकर लगातार मोदी सरकार को घेरा हुआ है। लोकसभा चुनाव 2024 के दौरान कांग्रेस और इसके सहयोगी दलों ने अपने घोषणा पत्र में भी इस मुद्दे को शामिल किया और चुनावी रैलियों में भी कहा कि सरकार में आने पर वह सबसे पहला काम जाति जनगणना का ही करेंगे।

जाति जनगणना को लेकर कांग्रेस और विपक्षी दलों का आरोप है कि बीजेपी और मोदी सरकार जाति जनगणना नहीं कराना चाहते। कांग्रेस का कहना है कि जाति जनगणना से ही इस बात का पता चलेगा कि समाज के संसाधनों और सरकारी नौकरियों पर किस जाति समूह के लोगों का कितना हक और हिस्सेदारी है और इससे पिछड़े और वंचित वर्गों के लिए नीतियां बनाने में मदद मिलेगी।

चिराग पासवान, अनुप्रिया पटेल समर्थन में

पिछले कुछ महीनों में एनडीए के सहयोगी दल लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के प्रमुख और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने भी जाति जनगणना का समर्थन किया है। उत्तर प्रदेश में बीजेपी के सहयोगी अपना दल (सोनेलाल) की प्रमुख और केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल ने कई बार जाति जनगणना का मुद्दा खुलकर उठाया है। बिहार में बीजेपी के साथ मिलकर सरकार चला रही और एनडीए की पुरानी सहयोगी जेडीयू ने पिछले साल जाति सर्वेक्षण करवाया था। जेडीयू भी जाति जनगणना का समर्थन कर चुकी है।

अब एनडीए के एक और सहयोगी दल और आंध्र प्रदेश सरकार की अगुवाई कर रही टीडीपी ने कहा है कि जाति जनगणना की जानी चाहिए।

द इंडियन एक्सप्रेस को दिए गए इंटरव्यू में इस सवाल के जवाब में कि क्या देश में जाति जनगणना होनी चाहिए, मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने कहा कि जाति जनगणना जरूर होनी चाहिए, इसे लेकर समाज में एक सेंटीमेंट (भावना) है और इसमें कुछ भी गलत नहीं है। नायडू ने कहा कि जब आप जाति जनगणना करते हैं तो आप आर्थिक विश्लेषण करते हैं और आप स्किल सेंसस करते हैं।

नायडू ने कहा कि आप ऐसा इसलिए करते हैं कि कैसे चीजों को बनाया जाए और आर्थिक असमानताओं को कम किया जाए।

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नायडू बोले- गरीबी सबसे बड़ा मुद्दा

इस सवाल के जवाब में कि क्या जाति जनगणना की भावना का सम्मान किया जाना चाहिए, चंद्रबाबू नायडू ने कहा कि हां इस भावना का सम्मान करना होगा और इसमें कोई दो राय नहीं है। नायडू ने कहा कि गरीबी सबसे बड़ा मुद्दा है, भले ही आप कमजोर वर्ग से ताल्लुक रखते हों लेकिन अगर आपके पास पैसा है तो समाज आपकी इज्जत करेगा। अगर आप ऊंची जाति से हैं और आपके पास पैसा नहीं है तो कोई भी आपकी इज्जत नहीं करेगा। नायडू ने कहा कि पैसा संतुलन बनाने वाला कारक है और यहीं पर आपको संतुलन बनाना होगा।

नायडू की अगुवाई में जीता था एनडीए

नायडू ने इस साल लोकसभा के साथ ही हुए विधानसभा के चुनाव में आंध्र प्रदेश में बड़ी जीत हासिल की थी। उन्होंने बीजेपी और अभिनेता से राजनेता बने पवन कल्याण की पार्टी जनसेना पार्टी के साथ मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ा था। 175 सीटों वाली विधानसभा में इस गठबंधन ने प्रचंड जीत हासिल करते हुए 164 सीटें हासिल की थीं। इसमें से टीडीपी को 135, जनसेना पार्टी को 21 और बीजेपी को 8 सीटों पर जीत मिली थी। 2019 में राज्य में सरकार बनाने वाली वाईएसआर कांग्रेस पार्टी को सिर्फ 11 विधानसभा सीटें ही मिली थी। इसी तरह 25 लोकसभा सीटों वाले आंध्र प्रदेश में इस गठबंधन ने 21 सीटों पर कब्जा जमाया था। इसमें टीडीपी को 16, बीजेपी को तीन और जनसेना पार्टी को दो सीट मिली थी जबकि वाईएसआर कांग्रेस सिर्फ चार सीट ही जीत पाई थी।

चुनाव नतीजों से यह स्पष्ट संदेश गया था कि चंद्रबाबू नायडू राज्य में बेहद लोकप्रिय हैं।

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चंद्रबाबू नायडू पहले भी एनडीए के साथ ही थे लेकिन कुछ साल पहले उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर सीधा हमला बोलते हुए एनडीए का साथ छोड़ दिया था। इस बार विधानसभा और लोकसभा चुनाव से पहले वह एनडीए में वापस आ गए थे।

राजनीतिक हथियार के रूप में न हो इस्तेमाल: आरएसएस

पिछले महीने जाति जनगणना के मामले में तब हलचल पैदा हुई थी जब आरएसएस ने जाति जनगणना का समर्थन किया था। आरएसएस की ओर से सुनील आंबेकर ने कहा था कि जाति जनगणना एक संवेदनशील मुद्दा है और इस पर राजनीति नहीं होनी चाहिए। आरएसएस का कहना था कि पिछले समुदायों के कल्याण के लिए अगर सरकार को आंकड़ों की जरूरत होती है तो जाति जनगणना एक अच्छी प्रैक्टिस है लेकिन इसे उन समुदायों और जातियों के कल्याण के लिए ही किया जाना चाहिए और राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए।

आरएसएस के इस बयान को जातिगत जनगणना के समर्थन के रूप में ही देखा गया था। इस बयान के बाद राजद के प्रमुख और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने कहा था कि आरएसएस-बीजेपी वालों के कान पड़ककर हम जाति जनगणना करवाएंगे। बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने भी कहा था कि आरएसएस-बीजेपी जाति जनगणना का भले ही कितना विरोध करें लेकिन हम उन्हें ऐसा करने के लिए मजबूर कर देंगे।

रोहिणी आयोग के सदस्य ने क्या कहा था?

मोदी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में ओबीसी जातियों के सब क्लासिफिकेशन को लेकर रोहिणी आयोग बनाया था। इस आयोग के एक सदस्य जीके बजाज ने पिछले महीने जाति जनगणना का समर्थन किया था। बजाज ने कहा कि जनगणना करने का सबसे बड़ा फायदा यह है कि एक बार जब आपको जाति का पता चल जाता है तो बाकी आंकड़े भी इसके साथ जुड़ जाते हैं। आपको यह पता लग जाता है कि कितने लोगों ने MA किया है और कितने लोगों ने BA किया है। आपको लोगों के घरों के बारे में- गांव में हैं या शहर में, उनके पास पक्के घर हैं या नहीं, इस बारे में भी पता चल जाता है। बजाज ने कहा कि जाति की गणना केवल एक गिनती है जबकि जनगणना से आपको सामाजिक-आर्थिक डाटा मिल जाता है।

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यूपीए सरकार ने करवाई थी सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना

कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए की सरकार ने 2011 में सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना (SECC) करवाई थी लेकिन इसके आंकड़ों को सार्वजनिक नहीं किया गया था। हालांकि इससे मिले आंकड़ों का इस्तेमाल सरकार के द्वारा समाज के पिछड़े व वंचित समूहों को लाभार्थी के रूप में सरकारी योजनाओं का फायदा देने के लिए उनकी पहचान करने में किया जाता है।

अब बड़ा सवाल यह है कि बीजेपी आखिर जाति जनगणना की मांग को लेकर आगे क्यों नहीं बढ़ रही है? बीजेपी ने कभी भी जाति जनगणना का विरोध नहीं किया है लेकिन वह इस पर आगे बढ़ती भी नहीं दिखती।

जनगणना के आंकड़ें संवेदनशील माने जाते हैं और इनका व्यापक असर होता है। खाद्य सुरक्षा, राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम और निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन जैसी कई योजनाएं इनपर निर्भर होती हैं। आंकड़ों का उपयोग सरकारों के साथ उद्योग जगत और शोध संस्थाएं भी करती हैं। जून, 2024 तक भारत दुनिया भर में उन 44 देशों में से एक था जिन्होंने इस दशक में जनगणना नहीं कराई।

केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने 20 जुलाई 2021 को लोकसभा में एक सवाल के जवाब में कहा था कि फिलहाल केंद्र सरकार ने अनुसूचित जाति और जनजाति के अलावा किसी और जाति की गिनती का कोई आदेश नहीं दिया है। बताना जरूरी होगा कि भारत में जनगणना के उपलब्ध आंकड़ों से यह पता नहीं चलता कि देश में किस जाति के कितने लोग हैं। जनगणना से यह तो पता चलता है कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के कितने लोग हैं लेकिन ओबीसी वर्ग में कितनी जातियां हैं, इसका पता नहीं चल पाता।

सहयोगी दलों का दबाव कब तक झेलेगी बीजेपी?

लोकसभा चुनाव 2024 में बीजेपी को अपने दम पर जनादेश नहीं मिला है और ऐसे में वह सहयोगी दलों टीडीपी, जेडीयू और एनडीए में शामिल अन्य छोटे दलों पर निर्भर है। एनडीए में बीजेपी के बाद टीडीपी ही दूसरा सबसे बड़ा दल है। बीजेपी के पास 240 सीटें हैं जबकि टीडीपी के पास 16 और जेडीयू के पास 12। बीजेपी को सरकार चलाने के लिए टीडीपी, जेडीयू के सहयोग की सख्त जरूरत है लेकिन जिस तरह सहयोगी दल लगातार जाति जनगणना की मांग को लेकर मुखर हो रहे हैं, उसमें यह सवाल पूछना लाजिमी है कि बीजेपी कब तक जाति जनगणना के मुद्दे पर आगे नहीं बढ़ेगी?

आरएसएस के जाति जनणगना का समर्थन करने के बाद ऐसी खबरें सामने आई थी कि मोदी सरकार इस संबंध में गहन विचार कर रही है। देखना होगा कि सरकार इस पर कब आगे बढ़ेगी?