केंद्र सरकार और न्यायपालिका के बीच कॉलेजियम सिस्टम को लेकर तनाव जारी है। इस बीच सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज (Former Judge of Supreme Court) मदन बी लोकुर (Madan Lokur) ने संसद की तुलना में संविधान को बड़ा बताया है। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के बयान के उलट जस्टिस लोकुर ने कहा है कि, “भारत का संविधान सर्वोच्च है, न्यायपालिका, कार्यपालिका और संसद नहीं है।”

जस्टिस लोकुर ने उपराष्ट्रपति को दिया जवाब!

गौरतलब है कि पिछले दिनों उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ (Vice President Jagdeep dhankhar) ने जयपुर में केशवानंद भारती केस का जिक्र करते हुए कहा था कि संसदीय संप्रभुता से समझौता नहीं किया जा सकता क्योंकि यह लोकतंत्र के लिए जरूरी है।

NJAC को खत्म करने और 1973 के केशवानंद भारती केस के फैसले को गलत उदाहरण बताते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा था कि, “क्या संसद को संविधान में संशोधन करने के लिए किसी संस्था पर निर्भर होना चाहिए? अगर कोई संस्था संविधान में संशोधन करने की संसद की शक्ति पर सवाल उठाती है तो यह कहना मुश्किल होगा कि हम एक लोकतांत्रिक राष्ट्र हैं।”

कॉलेजियम के सदस्य रह चुके जस्टिस लोकुर ने इसका जवाब देते हुए कहा है कि, “मैं राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) के फैसले के बारे में बहुत ज्यादा नहीं बोलना चाहता क्योंकि मैं फैसला सुनाने वालों में से एक हूं। फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने तर्क दिया था कि संविधान में संशोधन ने संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन किया है। इससे न्यायपालिका की स्वतंत्रता छीनी जा रही है और इसलिए इसे असंवैधानिक घोषित किया गया था। जैसा कि पहले मैंने कहा संविधान सर्वोच्च है।”

जजों की नियुक्ति के मसले पर क्या बोले जस्टिस लोकुर?

केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू ने भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रदूड़ (CJI DY Chandrachud) को लिखी चिट्ठी जजों की नियुक्ति में सरकार के प्रतिनिधित्व की बात उठाई है। रिजिजू ने कहा है कि पारदर्शिता के लिए सुप्रीम कोर्ट की कोलेजियम में केंद्र सरकार और हाईकोर्ट की कोलेजियम में राज्य सरकारों का प्रतिनिधित्व होना चाहिए। सरकार का काम सिर्फ आंख मूंदकर कोलेजियम द्वारा अनुशंसित नामों को अप्रूव करना नहीं है।

लाइव लॉ के मैनेजिंग एडिटर मनु सेबेस्टियन को दिए इंटरव्यू में जस्टिस लोकुर ने सरकार की इस मांग पर भी खुलकर अपनी राय व्यक्त की है। पहले तो जस्टिस लोकुर ने इस मांग को ही सैद्धांतिक तौर पर गलत माना है। उन्होंने आगे कहा, केंद्र सरकार ऐसे लोगों को न्यायपालिका में लाना चाहती है, जो उनकी तरह का विचार रखते हों। केंद्र अपने लोगों को जज बनाना चाहती है और सरकार के प्रति प्रतिबद्ध रहने वाली एक न्यायपालिका बनाना चाहती है।