Caste Politics Delhi Assembly Elections 2025 : चुनाव चाहे लोकसभा का हो, विधानसभा का या स्थानीय निकाय का, इसमें जातीय समीकरण काफी मायने रखते हैं। तमाम राजनीतिक दल किस विधानसभा सीट पर किस जाति की कितनी आबादी है, किस जाति का नेता ताकतवर है, इसे ही ध्यान में रखते हुए टिकटों का फैसला करते हैं। बिल्कुल ऐसा ही दिल्ली के विधानसभा चुनाव में देखने को मिला है।
दिल्ली में अपनी सरकार बनाने के लिए बीजेपी आम आदमी पार्टी और कांग्रेस पूरा जोर लगा रहे हैं। दिल्ली में तीनों दलों ने किस जाति को कितने टिकट दिए हैं, आइए इसे समझते हैं।
सवर्ण जातियों का वोट सबसे ज्यादा
दिल्ली की राजनीति में सवर्ण या ऊंची जातियों का वोट सबसे ज्यादा है। विभिन्न राजनीतिक दलों से मिली जानकारी के मुताबिक, दिल्ली में सामान्य जातियों का वोट 35 से 40% है। इनमें भी ब्राह्मण समुदाय की आबादी सबसे ज्यादा है।
जाति | आबादी (प्रतिशत में) |
ब्राह्मण | 13% |
राजपूत | 8% |
वैश्य | 7% |
खत्री | 5% |
इसके बाद दूसरा सबसे बड़ा वोट बैंक ओबीसी जातियों का है। राजधानी में ओबीसी मतदाताओं की संख्या 30% है। ओबीसी में जाट और गुर्जर जातियों का बड़ा रोल है और यह ओबीसी मतदाताओं की लगभग आधी आबादी है।
जाति व धार्मिक समूह | आबादी (प्रतिशत में) |
ओबीसी | 30% |
दलित | 16% |
मुस्लिम | 13% |
सिख | 3.5% |
टिकट हासिल करने में सवर्ण जातियों का दबदबा
चुनावों में प्रतिनिधित्व के लिहाज से बात करें तो इसमें सवर्ण जातियों का दबदबा अधिक है। उदाहरण के लिए इसे ऐसे समझें, दिल्ली चुनाव में बीजेपी और उसके सहयोगी दलों द्वारा घोषित किए गए उम्मीदवारों में से 45% सवर्ण जातियों से हैं। आम आदमी पार्टी इस मामले में बीजेपी से भी आगे हैं और उसने 48% टिकट सवर्ण जातियों को दिए हैं। कांग्रेस ने 35% टिकट इन जातियों से आने वाले नेताओं को दिए हैं।
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ब्राह्मणों, वैश्यों और राजपूतों को मिले कितने टिकट
सवर्ण जातियों में ब्राह्मणों को उनकी जनसंख्या के हिसाब से भी ज्यादा टिकट मिले हैं। कांग्रेस ने 17% टिकट ब्राह्मणों को दिए हैं, जबकि बीजेपी और आम आदमी पार्टी ने क्रमशः 16% और 19% ब्राह्मण उम्मीदवार उतारे हैं।
बीजेपी ने वैश्य समुदाय को सबसे ज्यादा 17% टिकट दिए हैं। आम आदमी पार्टी ने 13% और कांग्रेस ने 10% टिकट इस समुदाय को दिए हैं। राजपूत समुदाय को आम आदमी पार्टी ने 10%, बीजेपी ने 7% टिकट दिए हैं। कांग्रेस ने केवल एक राजपूत उम्मीदवार को मैदान में उतारा है।
क्या कहते हैं आंकड़े?
त्रिवेदी सेंटर फॉर पॉलिटिकल डेटा द्वारा इकट्ठा किए गए डेटा के अनुसार, पिछले चुनावों में भी काफी हद तक सवर्ण जातियों का वर्चस्व रहा है। उदाहरण के लिए, मौजूदा दिल्ली विधानसभा में 50% विधायक सवर्ण जातियों से आते हैं। आम आदमी पार्टी के 40% विधायक सवर्ण हैं जबकि बीजेपी के छह विधायक इस समुदाय से हैं। दिल्ली की विधानसभा में कांग्रेस के पास एक भी विधायक नहीं है।

आंकड़ों के मुताबिक, 2008 के विधानसभा चुनाव के बाद से दिल्ली की राजनीति में ब्राह्मण समुदाय की भागीदारी बढ़ी है। 2008 में दिल्ली की विधानसभा में 10% ब्राह्मण थे, जो 2013 में बढ़कर लगभग 13%, 2015 और 2020 में 20% हो गए। इस दौरान राजपूत समुदाय का प्रतिनिधित्व भी 1% से बढ़कर 4% हो गया है। वहीं, वैश्य समुदाय ने दिल्ली के चुनावों में लगातार 13-14% प्रतिनिधित्व बनाए रखा है और यह राजधानी में उनकी जनसंख्या के अनुपात से लगभग दोगुना है।
जाट और गुर्जर समुदाय की ताकत घटी
दिल्ली की राजनीति में जाट और गुर्जर समुदाय की भागीदारी लगातार घटती जा रही है। साल 2008 से 2020 के बीच इन समुदायों का प्रतिनिधित्व क्रमशः 19% से 13% और 11% से 6% हो गया है। हालांकि जाट और गुर्जर जाति का दिल्ली की राजनीति में दबदबा माना जाता है। बीजेपी ने 14% टिकट जाट समुदाय को दिए हैं और यह आंकड़ा कांग्रेस के बराबर है। इसके बाद आम आदमी पार्टी (11%) का नंबर है। बीजेपी और आम आदमी पार्टी ने 9-9% टिकट गुर्जर समुदाय को दिए हैं लेकिन कांग्रेस ने इस समुदाय को 11% टिकट दिए हैं।
बारीकी से देखें और समझें तो कांग्रेस ने ओबीसी और मध्यवर्ती जातियों को सबसे ज्यादा (30%) टिकट दिए हैं। आम आदमी पार्टी ने इन जाति समूहों को 25% जबकि बीजेपी ने उन्हें 20% टिकट दिए हैं।

दिल्ली की राजनीति में 12 सीटें आरक्षित हैं। ऐसे में दिल्ली की विधानसभा में दलित समुदाय का प्रतिनिधित्व पिछले कई सालों से 17% रहा है। दिल्ली में विधानसभा की कुल 70 सीटें हैं।
मुस्लिम समुदाय को कितनी हिस्सेदारी
दिल्ली की राजनीति में मुस्लिम समुदाय का भी अच्छा-खासा असर है। इस बार के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने सबसे अधिक 10% मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं जबकि आम आदमी पार्टी ने मुस्लिम समुदाय के 7% नेताओं को प्रत्याशी बनाया है। बीजेपी ने चुनाव में किसी भी मुस्लिम नेता को टिकट नहीं दिया।
दिल्ली की राजनीति में सिख समुदाय की हिस्सेदारी और भागीदारी की बात करें तो बीजेपी ने 5%, आम आदमी पार्टी ने 6% और कांग्रेस ने 7% टिकट सिख नेताओं को दिए हैं। दिल्ली की राजनीति में सिख समुदाय की भागीदारी 1993 में 3% से बढ़कर 2013 में 13% हुई लेकिन 2020 में फिर से घटकर 3% हो गयी है।
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