कलकत्ता हाईकोर्ट ने टीचर्स रिक्रूटमेंट स्कैम से जुड़ी याचिकाओं को जस्टिस अमृता सिन्हा को ट्रांसफर कर दिया है। इस मामले में ममता बनर्जी के भतीजे और तृणमूल कांग्रेस (TMC) के नेता अभिषेक बनर्जी भी आरोपी हैं। इससे पहले इस मामले की सुनवाई कलकत्ता हाईकोर्ट के जस्टिस अभिजीत गंगोपाध्याय (Justice Abhijit Gangopadhyay) की बेंच कर रही थी, लेकिन 28 अप्रैल को ही सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस को आदेश दिया था कि मामले को जस्टिस गंगोपाध्याय की जगह किसी और बेंच को ट्रांसफर करें।
कलकत्ता हाईकोर्ट ने 1 मई को जो नोटिफिकेशन जारी किया है, उसके मुताबिक टीचर्स घोटाले से जुड़ी सभी पिटीशन, रिव्यू पिटीशन और दूसरी सभी अर्जियां जस्टिस अमृता सिन्हा (Justice Amrita Sinha) को असाइन की गई हैं।
कौन हैं जस्टिस अमृता सिन्हा?
कलकत्ता हाईकोर्ट की जस्टिस अमृता सिन्हा की गिनती तेज-तर्रार जजों में होती है। 2 मई 2018 को उनकी कलकत्ता हाईकोर्ट में बतौर एडिशनल जज नियुक्ति हुई थी। करीब 2 साल बाद 24 अप्रैल 2020 को जस्टिस सिन्हा, कलकत्ता हाईकोर्ट की परमानेंट जज नियुक्त हुईं। जस्टिस अमृता सिन्हा, सिविल मैटर से लेकर डोमेस्टिक टैक्स और इंटरनेशनल टैक्स से जुड़े विषयों की विशेषज्ञ मानी जाती हैं। पहले भी वह कई हाई प्रोफाइल मामलों की सुनवाई कर चुकी हैं।
जस्टिम अमृता सिन्हा के मशहूर फैसले
1- जस्टिस अमृता सिन्हा ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा था कि किसी कर्मचारी की पेंशन अथवा ग्रेच्युटी में देरी पर राज्य सरकार को ब्याज देना होगा। यह राज्य सरकार का दायित्व है। एक सेवानिवृत्त शिक्षक की याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस सिन्हा ने कहा था कि ग्रेच्युटी अथवा पेंशन में देरी कर्मी के भविष्य के साथ खिलवाड़ जैसा है, ऐसी में वह ब्याज का हकदार है।
2- जस्टिस अमृता सिन्हा का एक और फैसला हाल ही में खासा चर्चित हुआ। जस्टिस सिन्हा ने पश्चिम बंगाल सरकार के ‘डोर टू डोर राशन’ (दुआरे राशन) स्कीम को चुनौती देने वाली दायर याचिका खारिज कर दी थी। उन्होंने कहा था कि अब वक्त आ गया है कि राशन की दुकानों को उपभोक्ताओं तक पहुंचना चाहिए, इसे चुनौती देने का कोई लॉजिक नहीं बनता है।
3- जस्टिस अमृता सिन्हा ने ही पिछले दिनों अपने एक जजमेंट में कहा था कि कोई भी यूनिवर्सिटी, किसी शिक्षक पर डोनेशन देने का दबाव नहीं बना सकती हैं और न तो उसकी सैलरी से डोनेशन के नाम पर एक हिस्सा काट सकती है। जस्टिस सिन्हा विश्व भारती यूनिवर्सिटी के एक प्रोफ़ेसर की याचिका पर सुनवाई कर रही थीं। प्रोफेसर ने रजिस्ट्रार द्वारा एक दिन की सैलरी चीफ मिनिस्टर रिलीफ फंड में डोनेट करने के आदेश को चुनौती दी थी।
जस्टिस गंगोपाध्याय से क्यों हटा केस?
दरअसल, जस्टिस अभिजीत गंगोपाध्याय ने एबीपी आनंदा चैनल को एक इंटरव्यू दिया था। जिसमें उन्होंने सत्तारूढ़ टीएमसी से लेकर अभिषेक बनर्जी पर कथित टिप्पणी की थी। बाद में जब यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ भी हैरान रह गए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी भी जज को ऐसे मामले पर इंटरव्यू देना ही नहीं चाहिए, जो उसके सामने लंबित हों। सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल से, जस्टिस गंगोपाध्याय के इंटरव्यू की ट्रांसक्रिप्ट कॉपी मांग ली थी।
सुप्रीम कोर्ट को दे दिया था अल्टीमेटम
इसके बाद 28 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने मामले की दोबारा सुनवाई करते हुए कलकत्ता हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को आदेश दिया कि रिक्रूटमेंट स्कैम से जुड़ी याचिकाओं को किसी और बेंच को ट्रांसफर किया जाए। हालांकि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद उसी दिन जस्टिस गंगोपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट के सेक्रेटरी जनरल को अल्टीमेटम दे दिया और 28 अप्रैल की रात 12:00 बजे तक अपने इंटरव्यू की वो ट्रांसक्रिप्ट कॉपी मांगी, जो सीजेआई के सामने रखी गई थी।
जस्टिस गंगोपाध्याय के इस अप्रत्याशित आदेश के बाद उसी दिन (28 अप्रैल) को सुप्रीम कोर्ट ने इसका स्वत: संज्ञान लिया और शाम 8 बजे फिर सुप्रीम कोर्ट की बेंच बैठी। जस्टिस गंगोपाध्याय के आदेश पर स्टे लगा दिया था।