उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती की अगुवाई वाली बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) के हाथी की रफ्तार बीते कुछ सालों में मंद पड़ गई है। 2007 के विधानसभा चुनाव में भारत के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में बीएसपी ने अपने दम पर सरकार बनाई थी। तब उसे 403 विधानसभा सीटों में से 206 सीटों पर जीत मिली थी।

BSP Vote Share: गिरता गया वोट शेयर

बीएसपी को साल 2007 के विधानसभा चुनाव में 30.43 प्रतिशत वोट मिले थे, 2012 में यह आंकड़ा गिरकर 25.91 प्रतिशत और 2017 में 22.23 प्रतिशत हो गया था। लेकिन 2022 में पार्टी को उत्तर प्रदेश में मिलने वाले वोट प्रतिशत में जबरदस्त गिरावट आई थी और यह गिरकर 12.8% पर पहुंच गया था।

BSP Vote share UP
बीएसपी को उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में मिले वोट प्रतिशत में। (PC- TCPD)

इसी तरह अगर उत्तर प्रदेश में विधानसभा सीटों के आंकड़े को देखें तो 2007 में मिली 206 सीटों के मुकाबले पार्टी 2012 में 80 सीटों के आंकड़े पर आकर रुक गई थी। 2017 में उसने विधानसभा की 19 सीटें जीती थी लेकिन 2022 में उसे सिर्फ एक सीट पर ही कामयाबी मिली।

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बीएसपी को उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में मिली सीटें। (PC- TCPD)

इसी तरह लोकसभा चुनाव में भी देखें तो पार्टी को 2004 में उत्तर प्रदेश की 19 सीटों पर जीत मिली थी और 2009 में उसने इसमें मामूली सुधार किया था और 20 सीटें हासिल की थी। लेकिन 2014 में यह आंकड़ा 20 से सीधे शून्य पर आ गया। हालांकि 2019 में उसने सपा और रालोद के साथ मिलकर चुनाव लड़ा और 10 सीटें अपनी झोली में डाली थी लेकिन चूंकि इस बार वह अकेले चुनाव लड़ रही है ऐसे में उसके सामने पुराने प्रदर्शन को बरकरार रखने की चुनौती है।

2004 के लोकसभा चुनाव में पार्टी को 24.67 प्रतिशत, 2009 के लोकसभा चुनाव में 27.42 प्रतिशत, 2014 के लोकसभा चुनाव में 19.62 और 2019 के लोकसभा चुनाव में 19.26 प्रतिशत मत प्राप्त हुए थे।

इससे पता चलता है कि पार्टी को चुनावी लिहाज से जबरदस्त नुकसान हुआ है।

BJP | MODI | Lok Sabha Election 2024
मंगलवार (9 अप्रैल, 2024) को बालाघाट में चुनावी रैली को संबोधित करते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। (PTI Photo)

BSP Election Performance: क्यों गिर रहा है पार्टी का ग्राफ?

बीएसपी का मुख्य आधार उत्तर प्रदेश में ही है। हालांकि राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड, तेलंगाना में भी पार्टी के कार्यकर्ताओं की अच्छी संख्या है लेकिन जब उत्तर प्रदेश में पार्टी का प्रदर्शन खराब होता है तो इससे पार्टी के सियासी भविष्य पर सवाल खड़े होने लगते हैं। यह सवाल भी उठता है कि पिछले 15 सालों में आखिर ऐसा क्या हुआ है जिस वजह से पार्टी का ग्राफ तेजी से गिर रहा है।

बी टीम होने का आरोप

पिछले कुछ सालों में कांग्रेस और सपा ने यह कहकर बीएसपी पर लगातार हमला किया है कि वह बीजेपी की बी टीम है। इन पार्टियों के नेताओं का कहना है कि बीएसपी प्रमुख मायावती जांच एजेंसियों की कार्रवाई के डर से बीजेपी के खिलाफ नहीं बोलतीं। जबकि बीएसपी के कार्यकर्ता ऐसे आरोपों को सिरे से नकारते हैं।

बीएसपी की इस बात के लिए भी आलोचना होती है कि वह कई मुद्दों पर विपक्ष के साथ नहीं बल्कि मोदी सरकार के साथ खड़ी हो जाती है। जैसे- राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव में, संसद के नए भवन के उद्घाटन में और महिला आरक्षण बिल।

BSP Muslim Vote Share: मुस्लिम वोटों का बंटवारा कर रही बीएसपी?

लोकसभा चुनाव 2024 के लिए जब पार्टी ने 16 उम्मीदवारों की पहली सूची जारी की थी तो इसमें से मुस्लिम समुदाय के 7 नेताओं को टिकट दिया था। मायावती ने 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में ऐसा ही प्रयोग किया था। बीएसपी ने तब 99 मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था। लेकिन इसका फायदा बीजेपी को मिला क्योंकि मुस्लिम वोट कांग्रेस-सपा गठबंधन और बीएसपी के बीच बंट गए। तब बीजेपी को 403 सीटों वाली विधानसभा में 313 सीटों पर जीत मिली थी।

साल 2022 के विधानसभा चुनाव में बीएसपी ने मुस्लिम समुदाय के 91 उम्मीदवारों को टिकट दिया लेकिन तब भी इसका फायदा बीजेपी को हुआ और उसने उत्तर प्रदेश में एक बार फिर अपनी सरकार बना ली। तब 122 सीटों पर सपा और बीएसपी ने मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे और इसमें से बीजेपी को 68 सीटों पर जीत मिली थी।

इसी तरह बीएसपी ने मई, 2023 में हुए नगर निगम चुनाव में मेयर की 17 में से 11 सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे लेकिन वह एक भी सीट पर जीत नहीं सकी थी। जबकि बीजेपी और उसकी सहयोगी अपना दल ने सभी सीटों पर कब्जा जमा लिया था।

बड़े पैमाने पर टिकट देने के बाद भी मुस्लिम नेता एक के बाद एक करके पार्टी का साथ छोड़ रहे हैं। गाजीपुर के सांसद अफजाल अंसारी, अमरोहा के सांसद दानिश अली, सहारनपुर के नेता इमरान मसूद, आजमगढ़ के नेता गुड्डू जमाली पार्टी का साथ छोड़ चुके हैं।

अलग-थलग पड़ गई है पार्टी

बीएसपी इस बार विपक्षी दलों के गठबंधन इंडिया में भी शामिल नहीं है। ऐसे में वह उत्तर प्रदेश में अकेले चुनाव लड़ रही है। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में पुराने तमाम विवादों को भुलाते हुए मायावती ने अखिलेश यादव के साथ गठबंधन किया था। इस गठबंधन में राष्ट्रीय लोकदल को भी शामिल किया गया था। तब बीएसपी ने जबरदस्त कम बैक करते हुए लोकसभा की 10 सीटों पर कब्जा जमाया था। लेकिन आज यह हालत है कि इन 10 लोकसभा सांसदों में से अधिकतर सांसद पार्टी छोड़कर जा चुके हैं।

Akhilesh PDA alliance: पीडीए बना चिंता की वजह

मायावती की एक सबसे बड़ी चिंता सपा के द्वारा पीडीए का नारा देना भी है। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने अपनी चुनावी रणनीति में बदलाव करते हुए मुस्लिम-यादव समीकरण से अलग हटकर पीडीए का फार्मूला तैयार किया है। पीडीए का मतलब है- पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक।

आंकड़ों से पता चलता है कि समाजवादी पार्टी को 2022 के विधानसभा चुनाव में दलित समुदाय के द्वारा मिलने वाले वोट प्रतिशत में बढ़ोतरी हुई है। मायावती का कोर वोट बैंक माने जाने वाले जाटव समुदाय की ओर से सपा को मिलने वाले वोट प्रतिशत में 6% जबकि गैर जाटव दलितों के वोट में 12% की बढ़ोतरी हुई है। जबकि दलित समुदाय में से भी जाटव समुदाय को मायावती का कोर वोट बैंक माना जाता है। इसके अलावा बीजेपी भी दलित समुदाय में तेजी से आधार बढ़ा रही है। 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने राज्य की 17 आरक्षित सीटों में से 15 पर जीत हासिल की थी और दो सीटें बीएसपी को मिली थीं।

BJP Manifesto | Congress Nyay Patra | Election 2024
घोषणा पत्र में जनता से जुड़े चुनावी मुद्दों को शामिल करते हैं राजनीतिक दल। (PC- Jansatta)

पार्टी के वजूद को है खतरा

यह कहना ग़लत नहीं होगा कि बीएसपी के लिए यह विधानसभा चुनाव करो या मरो का है। आंकड़े इस बात की गवाही देते हैं कि बीएसपी का प्रदर्शन पिछले कुछ चुनावों में लगातार खराब रहा है और ऐसे में उसे ‘एम-डी’ यानी मुस्लिम-दलित समुदाय से ही उम्मीद है। अगर इन समुदायों का समर्थन पार्टी को 2024 के लोकसभा और 2027 में उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव में नहीं मिलता है तो निश्चित रूप से पार्टी के लिए अपने वजूद को बचा पाना मुश्किल हो जाएगा।