बॉम्बे हाईकोर्ट ने पिछले दिनों गर्लफ्रेंड के सा‌थ कथित रेप के आरोपी को ‌बरी कर दिया। दोनों आठ साल से रिलेशनशिप में थे। साल 2016 में महिला ने अपने प्रेमी के खिलाफ वर्सोवा थाने में बलात्कार का मामला दर्ज कराया था। 24 मार्च को इस मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया, जिसकी प्रति अब उपलब्ध हुई है।  

ऐसे आरोप नहीं लगाया जा सकता – कोर्ट

जस्टिस भारती डांगरे ने कहा, “अभियोजिका शारीरिक और मानसिक दोनों तरह के संबंधों के प्रति जागरूक होने के लिए पर्याप्त रूप से परिपक्व उम्र की है, और केवल इसलिए कि संबंध अब खराब हो गया है, यह अनुमान नहीं लगाया जा सकता है कि उनके साथ स्थापित शारीरिक संबंध, हर अवसर पर उनकी सहमति के बिना बने थे।”

कोर्ट ने यह भी कहा कि दोनों आठ साल से रिलेशन में थे। इसलिए यह अनुमान नहीं लगाया जा सकता कि हर मौके पर शारीरिक संबंध उनकी इच्छा के विरुद्ध बनाया गया था और शिकायतकर्ता महिला ने पुरुष को सिर्फ इसलिए संभोग की सहमति दी क्योंकि वह इस गलत धारणा में थी कि वह उनसे शादी करेगा।

बता दें कि 27 वर्षीय महिला ने अपनी शिकायत में दावा किया था कि दोनों सोशल मीडिया के जरिए मिले थे। लड़के उनसे शादी का झूठा वादा कर शारीरिक संबंध बनाया था।

ट्रायल कोर्ट ने आरोपमुक्त करने से किया था इनकार

महिला की शिकायत के बाद लड़का आईपीसी की धारा 376, 323 के तहत आरोपी था। ट्रायल कोर्ट ने साल 2019 में लड़के को आरोप मुक्त करने से इनकार कर दिया था। डिंडोशी सेशन कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि मामला सहमति से बने रिश्ते का नहीं है। क्योंकि शिकायतकर्ता के अनुसार शारीरिक संबंध कभी-कभी ज़बरदस्ती भी बनाया गया है।

हालांकि हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट का आदेश रद्द करते हुए माना कि शारीरिक संबंध केवल शादी के वादे के आधार पर नहीं बना है, महिला आरोपी से प्यार करती थी।

ऑर्कुट पर हुआ था प्यार

शिकायतकर्ता के आरोप पत्र से ही पता चलता है कि दोनों साल 2008 में ऑर्कुट के जरिए करीब आए थे। लंबे समय तक दोनों के बीच बातचीत होती रही। बकौल शिकायतकर्ता साल 2013 तक दोनों को प्यार हो गया था। इतना ही नहीं, महिला के माता-पिता को भी उनके रिश्ते की जानकारी थी।

सुप्रीम कोर्ट ने जनवरी में की थी टिप्पणी

इसी साल जनवरी में सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसे ही मामले में फैसला सुनाया था। जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने आईपीसी की धारा 376 के तहत दस साल के लिए सजायाफ्ता व्यक्ति को बरी करते हुए कहा था कि शादी करने के वादे का हर उल्लंघन ‘ बलात्कार ‘ नहीं माना जा सकता।

उस मामले में भी शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया था कि उन्होंने यौन संबंध बनाने की सहमति इसलिए दी थी क्योंकि उनसे शादी करने का वादा किया गया था और बाद में शादी नहीं की।

बलात्कार को लेकर क्या है कानून?

इच्छा (Will) या सहमति (Consent) के विरुद्ध बनाए गए शारीरिक संबंध को बलात्कार की श्रेणी में रखा जाता है। भारत में 1960 से पहले रेप को लेकर कोई स्पष्ट कानून नहीं था। वर्तमान में IPC की धारा 375 में बलात्कार को परिभाषित करते हुए उसे दंडनीय अपराध की बताया गया है। IPC की धारा 376 के तहत बलात्कार के दोषी को न्यूनतम 10 वर्ष और अधिकतम आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान है। सामूहिक बलात्कार के मामले में न्यूनतम कारावास की सजा 20 वर्ष है। 12 वर्ष से कम उम्र की बच्ची से रेप के दोषी को न्यूनतम 20 वर्ष के कारावास या मृत्युदंड की सजा का प्रावधान है।