BJP Top Body: भारतीय जनता पार्टी ने बुधवार को नए संसदीय बोर्ड को घोषणा की। 11 सदस्यीय इस बोर्ड से नितिन गडकरी और शिवराज सिंह चौहान जैसे वरिष्ठ नेताओं को पार्टी ने हटा दिया है। वहीं 6 नए सदस्यों को जगह दी गई है, जिसमें पंजाब के इकबाल सिंह लालपुरा, असम के पूर्व सीएम सर्बानंद सोनोवाल और कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा का नाम शामिल है।
जिन अन्य नेताओं को जगह मिली है उनमें सुधा यादव, के. लक्ष्मण, सत्यनारायण जटिया का नाम शामिल है। इकबाल सिंह लालपुरा (Iqbal Singh Lalpura) की विशेष से चर्चा हो रही है क्योंकि इससे पहले कभी भी भाजपा के संसदीय बोर्ड में किसी सिख नेता को जगह नहीं मिली। भाजपा में संसदीय बोर्ड नीति निर्धारण संबंधी सबसे प्रमुख और शक्तिशाली इकाई है।
कौन हैं इकबाल सिंह लालपुरा?
सितंबर 2021 और अप्रैल 2022 में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग का अध्यक्ष चुने गए इकबाल सिंह लालपुरा ने साल 2012 में भाजपा ज्वाइन किया था। भाजपा शामिल होने से पहले वह आईपीएस अधिकारी के तौर पर अमृतसर और तरनतारन समेत पंजाब के कई जिलों में सेवा दे चुके हैं। पूर्व आईपीएस अधिकारी लालपुरा भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता और टेलीविजन बहसों का चेहरा रहे हैं।
सिख इतिहास और दर्शन के हैं विद्वान
लालपुरा ने सिख दर्शन और इतिहास पर लगभग 14 किताबें लिखी हैं, जिसमें ‘जपजी साहिब एक विचार’, गुरबाणी एक विचार’ और ‘राज करेगा खालसा’ आदि शामिल हैं। साहित्य और दर्शन के क्षेत्र में योगदान देने के लिए लालपुरा शिरोमणि सिख साहित्यकार पुरस्कार और सिख विद्वान पुरस्कार से सम्मानित किए जा चुके हैं।
भिंडरावाले को किया था गिरफ्तार
पुलिस अधिकारी तौर पर सेवा देने के लिए उन्हें राष्ट्रपति पुलिस मेडल और सराहनीय सेवाओं के लिए पुलिस पदक मिल चुका है। लालपुरा उन तीन अधिकारियों में से एक हैं जिन्होंने जरनैल सिंह भिंडरावाले (Jarnail Singh Bhindranwale) को गिरफ्तार किया था।
दरअसल पंजाब को भारत से अलग कर खालिस्तान बनाने की कोशिश करने वाले सिख आतंकवादी जरनैल सिंह भिंडरावाले ने 1981 में गिरफ्तारी देने के लिए शर्त रखी थी। वह चाहता था कि उसे सिख धर्म का पालन करने वाला (अमृतधारी) पुलिस अधिकारी ही गिरफ्तार करें। इसके बाद तत्कालीन डीआईजी इकबाल सिंह लालपुरा, एसएसपी जरनैल सिंह और एसडीएम बीएस भुल्लर की टीम ने भिंडरावाले को गिरफ्तार किया था।
13 अप्रैल 1978 को अकाली सिखों और निरंकारी समर्थकों के बीच हुई भिड़ंत में 13 अकाली और दो निरंकारी की जान गई थी। लालपुरा ने इस खूनी संघर्ष के जांच अधिकारी रहे थे।