हरियाणा में बीजेपी और कांग्रेस के बीच लोकसभा और 5 महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में जबरदस्त लड़ाई है और इस लड़ाई में जीत इसी समीकरण पर निर्भर करेगी कि जाट और गैर जाट मतदाताओं का किस हद तक और किसके पक्ष में ध्रुवीकरण होता है।
बीजेपी ने इस साल मार्च में जब अचानक नायब सिंह सैनी को हरियाणा का मुख्यमंत्री बनाया था तो हरियाणा की राजनीति को समझने वाले लोगों को इस पर आश्चर्य नहीं हुआ। बीजेपी ने सैनी को मुख्यमंत्री बनाकर यह संदेश दिया कि वह हरियाणा में गैर जाट की राजनीति पर ही आगे बढ़ेगी लेकिन जाटों से भी दूरी नहीं बनाएगी।
किसान आंदोलन, महिला पहलवानों के यौन शोषण का मुद्दा, अग्निवीर योजना को लेकर जाट समुदाय के लोग हरियाणा में बीजेपी से नाराज दिखाई देते हैं। ऐसे में सवाल यह है कि क्या 25% जाट आबादी को साधे बिना हरियाणा में वह 2019 के लोकसभा चुनाव का प्रदर्शन दोहरा सकती है। तब उसने राज्य में सभी 10 सीटें जीती थी। इसके बाद विधानसभा चुनाव में हरियाणा में क्या वह फिर से सरकार बना लेगी?
बीजेपी ने 2014 में जब पहली बार हरियाणा में अपने दम पर सरकार बनाई थी तो उसने गैर जाट समुदाय से आने वाले मनोहर लाल खट्टर को मुख्यमंत्री बनाया था।
Nayab Saini: प्रदेश अध्यक्ष, सीएम पद पर गैर जाट
बीते साल अक्टूबर में बीजेपी ने ओमप्रकाश धनखड़ को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाकर नायब सिंह सैनी को इस अहम पद पर बैठाया था। तब मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष जैसे दोनों बड़े पदों पर जाट नेता ही बैठे थे। वर्तमान में इन दोनों पदों को नायब सिंह सैनी संभाल रहे हैं। ऐसे में जाट नेताओं को किनारे करने और गैर जाट नेताओं को आगे बढ़ाने की आवाज हरियाणा में उठ रही है। बीजेपी की कोशिश 75% गैर जाट आबादी के बड़े हिस्से को अपने साथ लाने की है।
1966 में हरियाणा बनने के बाद से अब तक 58 साल में यहां पर जाट समुदाय से आने वाले नेताओं ने 33 साल तक मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली है। हरियाणा में बीजेपी क्यों गैर जाट समुदाय के नेताओं पर दांव लगा रही है, इसे समझने से पहले राज्य में किस जाति की कितनी आबादी है, इसे समझना जरूरी है।
समुदाय का नाम | कितनी है अनुमानित आबादी (प्रतिशत में) |
जाट | 25 |
पंजाबी | 10 |
ओबीसी | 20-22 |
दलित | 20 |
ब्राह्मण | 7-9 |
सैनी | 2.5 |
Haryana Jat Politics: 36 विस सीटों पर असरदार हैं जाट
यह जानना जरूरी होगा कि हरियाणा की राजनीति को जाट किस तरह प्रभावित करते हैं। हरियाणा की 90 में से 36 विधानसभा सीटों और 10 में से चार लोकसभा सीटों पर जाट हार-जीत तय करने की क्षमता रखते हैं। हिसार, भिवानी, महेंद्रगढ़, रोहतक, झज्जर, सोनीपत, सिरसा, जींद और कैथल के इलाके को हरियाणा की जाट बेल्ट माना जाता है।
आइए, देखते हैं कि जाट समुदाय ने साल 2014 के विधानसभा और लोकसभा तथा 2019 के विधानसभा और लोकसभा चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस को कितने प्रतिशत वोट दिया।
पार्टी | 2014 विधानसभा चुनाव | 2014 लोकसभा चुनाव | 2019 विधानसभा चुनाव | 2019 लोकसभा चुनाव |
कांग्रेस | 42% | 40.7% | 38.7% | 39.8% |
बीजेपी | 24% | 32.9% | 33.7% | 42.4% |
इनेलो | 20.4% | 13.9% | – | – |
जेजेपी | – | – | 12.7% | – |
अन्य | 13.6% | 12.5% | – | 8.9% |
Congress JAT Politics: कांग्रेस सत्ता से बाहर लेकिन जाट है साथ
हरियाणा में पिछले चार (2 लोकसभा और 2 विधानसभा) चुनावों के आंकड़ों से पता चलता है कि जाट वोट हासिल करने के मामले में कांग्रेस बीजेपी से बहुत ज्यादा पीछे नहीं है। जबकि वह 10 साल से हरियाणा के साथ ही केंद्र की सरकार में भी नहीं है। लेकिन बावजूद इसके जाट कांग्रेस के साथ खड़ा है। कांग्रेस के अलावा इनेलो और जेजेपी को भी जाट मतदाताओं के आधार वाली पार्टी माना जाता है। इसलिए बीजेपी अब गैर जाट राजनीति के रास्ते पर आगे बढ़ना चाहती है।

Farmers Protest: किसान आंदोलन, पहलवानों के मुद्दे पर भड़के थे जाट
साल 2020 में मोदी सरकार के द्वारा लाए गए कृषि कानून और बीते साल महिला पहलवानों के द्वारा भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ लगाए गए यौन उत्पीड़न के आरोपों को लेकर जाट भड़क गए थे। किसान आंदोलन के दौरान तो जाट समुदाय ने बीजेपी को अपनी सामाजिक ताकत का एहसास कराया था। कुछ ऐसा ही इस लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान भी हुआ है, जहां पर बीजेपी के उम्मीदवारों को किसानों के विरोध का सामना करना पड़ा है। हरियाणा में अधिकतर जाट खेती और किसानी से जुड़े हैं इसलिए वे किसान राजनीति में भी ताकतवर हैं।
महिला पहलवानों के मुद्दे पर भी हरियाणा में बीजेपी को जाटों की नाराजगी का सामना करना पड़ा था। बीजेपी ने इसे भांपते हुए ही बृजभूषण शरण सिंह को इस बार टिकट नहीं दिया। उनकी जगह उनके बेटे को चुनाव मैदान में उतारा गया है।
जाट समुदाय के युवाओं का बड़ा हिस्सा सेना में जाता है। ऐसे में मोदी सरकार की अग्निवीर योजना को लेकर भी हरियाणा में इस समाज के युवाओं में नाराजगी दिखाई देती है।
जाट वोटों के एकजुट होने का खतरा
बीजेपी के सामने गैर जाट राजनीति के रास्ते पर आगे बढ़ते हुए जाट वोटों के उसके खिलाफ एकजुट होने का भी खतरा है क्योंकि अगर जाट वोट पूरी तरह कांग्रेस के पाले में एकजुट हुआ और इसमें बंटवारा नहीं हुआ तो बीजेपी को इसका निश्चित तौर पर नुकसान भी हो सकता है। बीजेपी इस बात को जानती है इसलिए उसने गैर जाट नेताओं को भी आगे बढ़ाया है।
हरियाणा में जाटों को साधे बिना कोई भी राजनीतिक दल सत्ता में नहीं आ सकता। इसलिए बीजेपी ने यह कोशिश की है कि जाट समुदाय में ऐसा संदेश कतई न जाए कि वह उनकी अनदेखी कर रही है। पार्टी ने पूर्व प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ को राष्ट्रीय सचिव बनाया है और एक और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुभाष बराला को राज्यसभा भेजा है।

Hooda and Khattar: हुड्डा हैं बड़ा जाट चेहरा
राज्य में बीजेपी की ओर से पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर और मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी प्रमुख चेहरे हैं और दोनों ही गैर जाट समुदाय से हैं जबकि कांग्रेस के पास जाट नेता के तौर पर पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा हैं। हरियाणा कांग्रेस के सभी फैसलों में हाईकमांड हुड्डा की पसंद को तरजीह देता है। गैर जाट चेहरे के रूप में हरियाणा में कांग्रेस ने दलित समुदाय से आने वाले चौधरी उदयभान सिंह को प्रदेश अध्यक्ष बनाया है।
हरियाणा में 5 महीने बाद विधानसभा के चुनाव होने हैं और ऐसे में लोकसभा चुनाव के नतीजे बेहद अहम होंगे। लोकसभा चुनाव के नतीजों के विश्लेषण से पता चलेगा कि जाट और गैर जाट समुदाय के कितने प्रतिशत वोट किस दल को मिले हैं और इसका असर निश्चित रूप से विधानसभा चुनाव में भी होगा।
कांग्रेस और भाजपा दोनों ने ही हरियाणा में इस बार सिर्फ दो-दो जाट नेताओं को टिकट दिया है।
