Maharashtra Election 2024 OBC Voter Influence: महाराष्ट्र की सियासत में हमेशा से ही मराठा समुदाय का वर्चस्व रहा है और सभी राजनीतिक दलों की कोशिश इस समुदाय को लुभाने की रही है। लेकिन इस बार बीजेपी ने पूरे चुनाव अभियान में मराठा के बजाय ओबीसी समुदाय को अहम बना दिया है। बीजेपी ने ऐसा कैसे किया, यह समझना बेहद जरूरी है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महाराष्ट्र में अपनी चुनावी रैलियों में कहा है कि कांग्रेस बांटने की राजनीति कर रही है और जाति जनगणना के जरिए वह एक जाति को दूसरी जाति के खिलाफ खड़ा करना चाहती है। प्रधानमंत्री ने कहा कि कांग्रेस नहीं चाहती कि एससी, एसटी और ओबीसी समुदाय आगे बढ़ें।

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प्रधानमंत्री ने यहां तक कहा कि कांग्रेस ओबीसी से इसलिए नाराज है क्योंकि मंडल राजनीति के आने के बाद ओबीसी जातियां एकजुट हुई हैं और कांग्रेस लगातार गर्त में जा रही है और इसलिए कांग्रेस ओबीसी समुदाय को कमजोर कर उनकी एकता को तोड़ना चाहती है। दूसरी ओर लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी पिछले कुछ सालों से लगातार राजनीति में ओबीसी के हक और हिस्सेदारी की आवाज को बुलंद करते रहे हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘एक है तो सेफ हैं’ का नारा दिया जबकि इससे पहले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ के नारे के जरिए हिंदू जातियों की एकता की बात कह चुके हैं।

मराठा आरक्षण को लेकर लड़ाई तेज

महाराष्ट्र में बीते कुछ सालों से जब से मराठा आरक्षण की मांग को लेकर आंदोलन तेज हुआ है तो इसे लेकर महाराष्ट्र में ओबीसी बनाम मराठा समुदाय की लड़ाई भी सामने आई है। मंडल आयोग की रिपोर्ट के बाद ओबीसी समुदाय को तो आरक्षण मिल गया लेकिन मराठा समुदाय लगातार आरक्षण की मांग कर रहा है। महाराष्ट्र में ओबीसी समुदाय की राजनीतिक ताकत को देखते हुए ही कई राजनीतिक दलों ने मराठा समुदाय के लिए आरक्षण का तो समर्थन किया लेकिन ओबीसी को मिलने वाले आरक्षण में से मराठा समुदाय को आरक्षण देने की बात नहीं कही क्योंकि उन्हें ओबीसी समुदाय के लोगों द्वारा इसका विरोध करने का डर था।

महाराष्ट्र में ओबीसी समुदाय की आबादी 38% और मराठा समुदाय की आबादी 33% है।

महाराष्ट्र के लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद यह कहा गया था कि मराठा समुदाय के असर वाली सीटों पर बीजेपी की अगुवाई वाले महायुति गठबंधन को राजनीतिक नुकसान उठाना पड़ा था।

लोकसभा चुनाव 2024 में बीजेपी को हुआ था बड़ा नुकसान

राजनीतिक दल 2024 में मिली सीटें2019 में मिली सीटें
बीजेपी 923
कांग्रेस131
एनसीपी14
एनसीपी (शरद चंद्र पवार)8
शिवसेना (यूबीटी)9
शिवसेना 718

बीजेपी ने स्वीकारा- नाराज थे ओबीसी मतदाता

बीजेपी के नेता द इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में स्वीकार करते हैं कि लोकसभा चुनाव के दौरान ओबीसी बीजेपी से नाराज थे क्योंकि उन्हें ऐसा लगता था कि एकनाथ शिंदे वाली महायुति की सरकार मराठा आरक्षण के लिए आंदोलन कर रहे मनोज जरांगे पाटिल और मराठा समुदाय के पक्ष में दिख रही थी और अंत में इसका यह नतीजा हुआ कि हमें मराठा और ओबीसी दोनों ही समुदायों का समर्थन नहीं मिला।

बीजेपी ओबीसी मतदाताओं को अपने साथ बनाए रखने की पूरी कोशिश कर रही है क्योंकि लोकसभा चुनाव के नतीजे से यह पता चला है कि मराठा समुदाय महा विकास अघाड़ी (MVA) के साथ ज्यादा दिख रहा है।

बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने द इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में कहा कि महाराष्ट्र की 288 में से 175 सीटों पर ओबीसी मतदाता एक फैक्टर हैं जबकि मराठा समुदाय का ज्यादातर असर मराठवाड़ा और पश्चिम महाराष्ट्र में है और यहां कुल मिलाकर 116 सीटें आती हैं।

महाराष्ट्र में ओबीसी मतों पर कब्जे को लेकर बड़ी लड़ाई विदर्भ में चल रही है क्योंकि यहां की 62 में से 36 सीटों पर ओबीसी जातियों के मतदाताओं का अच्छा असर है।

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एकजुट हुए ओबीसी मतदाता

वंचित बहुजन अघाड़ी (VBA) के अध्यक्ष प्रकाश आंबेडकर इस बात को स्वीकार करते हैं कि पहली बार महाराष्ट्र की राजनीति में ओबीसी इस कदर एकजुट हुए हैं। ओबीसी मंच के अध्यक्ष प्रकाश शेंडगे ने द इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में कहा कि यह राजनीतिक हिस्सेदारी की लड़ाई है और इसने ओबीसी को एकजुट कर दिया है हालांकि ओबीसी समुदाय के मतदाता राजनीतिक सीमाओं और विचारधाराओं से परे जाकर भी वोट दे सकते हैं।

हरियाणा में मिला ओबीसी चेहरे का फायदा

बीजेपी नेता कहते हैं कि पार्टी अपनी रणनीति के तहत ओबीसी में गुमनाम और छोटी जातियों के समूहों तक पहुंच रही है और हाल ही में हुए हरियाणा के चुनाव में उसे इसका फायदा मिला है। बीजेपी को हरियाणा के विधानसभा चुनाव में ओबीसी चेहरे नायब सिंह सैनी को आगे रखने का फायदा मिला था। हरियाणा के चुनाव विश्लेषकों का मानना है कि राज्य में कांग्रेस के जाट चेहरे भूपेंद्र सिंह हुड्डा के विरोध में ओबीसी जातियां एकजुट हुई और बेहद कठिन माने जा रहे चुनाव को भी बीजेपी ने जीत लिया। महाराष्ट्र में भी बीजेपी हरियाणा को दोहराना चाहती है।

बीजेपी की कोशिश विदर्भ, उत्तरी महाराष्ट्र, मराठवाड़ा के इलाकों में ओबीसी के छोटी जाति समूहों पर फोकस करने की है। यहां समझना जरूरी होगा कि महाराष्ट्र चुनाव की घोषणा से ठीक पहले ही मोदी सरकार ने सेंट्रल ओबीसी लिस्ट में सात नए जाति समूहों को शामिल किया था और महायुति की सरकार ने भी ओबीसी के लिए क्रीमी लेयर को बढ़ा दिया था। इस कदम को ओबीसी समुदायों को अपने पक्ष में लाने वाला कदम माना गया था। इसी तरह हरियाणा में चुनाव से ठीक पहले नायब सिंह सैनी ने आय सीमा को 6 लाख रुपये से बढ़ाकर 8 लाख रुपये कर दिया था।

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महाराष्ट्र में बीजेपी जिन ओबीसी समूहों पर फोकस कर रही है उनमें तेली, बंजारा, पवार, भोयर, कोमटी, सोनार, गोंड और दो दर्जन अन्य जातियां शामिल हैं।

ओबीसी जातियों के लिए बीजेपी का माधव फॉर्मूला

इससे पहले 1980 में भी बीजेपी ने माधव फार्मूला अपनाया था जिसमें माधव ओबीसी समूहों- माली, धनगर और वंजारी के लिए इस्तेमाल किया था। इससे पार्टी को ब्राह्मण-बनिया समुदायों की पार्टी और मराठा समुदाय से अलग हटकर महाराष्ट्र में अपना जाति आधार बनाने में मदद मिली थी।

कांग्रेस क्या कर रही है?

उत्तर और पश्चिमी महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में कांग्रेस भी ओबीसी समुदाय में आने वाले धनगर समूह को लुभाने की कोशिश कर रही है। धनगर समूह ओबीसी आबादी का 9% है। कांग्रेस और एनसीपी (शरद पवार) धनगर समुदाय को बीजेपी के उस अधूरे वादे की याद दिला रहे हैं जिसमें भगवा पार्टी ने उनके समुदाय को आदिवासी का दर्जा देने की बात कही थी।