पश्चिम बंगाल में विपक्ष (भाजपा) के नेता शुभेंदु अधिकारी ने कहा है कि ‘सबका साथ सबका विकास’ के नारे की अब कोई जरूरत नहीं है, जो हमारा साथ देगा हम उसका साथ देंगे। शुभेंदु अधिकारी ने अपने बयान के जरिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा दिए गए ‘सबका साथ सबका विकास’ के नारे को एक तरह से खारिज कर दिया है।
यह स्पष्ट है कि शुभेंदु ने यह बयान मुस्लिम समुदाय को लेकर दिया है। असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा, राजस्थान बीजेपी के विधायक बालमुकुंदाचार्य ने भी मुस्लिम विरोधी बयान दिए हैं। लोकसभा चुनाव के दौरान भी बीजेपी का प्रचार हिंदू-मुस्लिम के मुद्दे पर केंद्रित रहा था।
नरेंद्र मोदी साल 2014 में जब पहली बार प्रधानमंत्री बने थे तो उन्होंने ‘सबका साथ सबका विकास’ का नारा दिया था। 2019 में दूसरी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने इस नारे में ‘सबका विश्वास’ भी जोड़ा था।

वैसे, प्रधानमंत्री के नारे में भले सबके विकास की बात हो, लेकिन आंकड़े बताते हैं कि देश में असमानता काफी बड़े स्तर पर व्याप्त है। ऑक्सफैम की रिपोर्ट के मुताबिक देश की एक फीसदी आबादी के पास 40% दौलत है और कोरोना के दौरान देश के अरबपतियों की संपत्ति में 121 फीसदी इजाफा हुआ, जबकि इस दौरान आम लोग खाने को मोहताज थे।
यही नहीं, Oxfam की ही एक रिपोर्ट बताती है कि देश में गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (GST) का दो-तिहाई (64.3 फीसदी) हिस्सा देश की सबसे गरीब 50 फीसदी आबादी द्वारा चुकाया जाता है।
सरकार का ही आंकड़ा बताता है कि ग्रामीण व शहरी इलाकों में सबसे अमीर पांच प्रतिशत और सबसे गरीब पांच प्रतिशत लोगों के औसत मासिक प्रति व्यक्ति खर्च (Monthly per capita expenditure – MPCE) में 9-10 गुना का अंतर है।

क्या कहा शुभेंदु ने?
आंकड़ों से इतर, अब शुभेंदु के बयान पर आते हैं। उन्होंने ‘सबका साथ सबका विकास’ को न मानने वाला यह बयान कोलकाता में बीजेपी की राज्य कार्यकारिणी की एक अहम बैठक के दौरान दिया। उनका यह बयान पश्चिम बंगाल में लोकसभा चुनाव में बीजेपी के खराब प्रदर्शन के संदर्भ में आया है।
साल | टीएमसी को मिली सीटें | बीजेपी को मिली सीटें | अन्य को मिली सीटें |
लोकसभा चुनाव 2019 | 22 | 18 | 2 |
लोकसभा चुनाव 2024 | 29 | 12 | 1 |
शुभेंदु अधिकारी ने कहा, ‘मैंने राष्ट्रवादी मुसलमानों के लिए भी बात की है। हम सभी ‘सबका साथ सबका विकास’ कहते थे लेकिन मैं अब यह नहीं कहूंगा क्योंकि मुझे लगता है कि यह नारा ‘हम उनके साथ जो हमारे साथ’ होना चाहिए। हमारे साथ)…अल्पसंख्यक मोर्चा की कोई जरूरत नहीं है।’
शुभेंदु ने दावा किया कि लोकसभा चुनाव के दौरान पश्चिम बंगाल में टीएमसी के जेहादी गुंडों ने हिंदुओं को कई इलाकों में वोट नहीं डालने दिया।
सबको साथ लेकर चलने का है विजन
बीजेपी की ओर से यह कहा जाता था कि ‘सबका साथ सबका विकास’ के नारे से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विजन देश में सारे जाति, समुदाय, धर्म के लोगों को साथ लेकर चलने का है। लेकिन राजनीति का लंबा अनुभव रखने वाले शुभेंदु अधिकारी जैसे नेता जब मंच से यह कहते हैं कि अब बीजेपी को इस नारे की कोई जरूरत नहीं है तो उनके इस बयान का विश्लेषण करना जरूरी हो जाता है।
शुभेंदु अधिकारी के बयान का विश्लेषण करने से साफ पता चलता है कि बीजेपी इस लोकसभा चुनाव में उसे मुस्लिम वोटों के न मिलने से चिंतित है। बीजेपी के नेताओं के द्वारा अकसर यह कहा जाता है कि केंद्र या बीजेपी शासित किसी भी राज्य सरकार ने मुसलमानों से किसी तरह का भेदभाव नहीं किया है और सभी सरकारी योजनाओं का उन्हें फायदा मिल रहा है लेकिन बावजूद इसके मुस्लिम समुदाय उन्हें वोट नहीं देता।
शुभेंदु के अलावा असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने कहा है कि असम में मुस्लिम जनसंख्या 40% पर पहुंच चुकी है जबकि 1952 में असम में केवल 12% मुसलमान थे। उन्होंने कहा कि ये मेरे लिए राजनीति का मुद्दा नहीं है, बल्कि जीने-मरने का मुद्दा है।
‘चार बेगम और 36 बच्चे’ का बयान
इसी तरह राजस्थान के बीजेपी विधायक बालमुकुंदाचार्य ने कहा है कि ‘एक विशेष समुदाय’ के लोगों की ‘चार बेगम और 36 बच्चे’ हैं। विधायक ने कहा कि बढ़ती जनसंख्या एक बहुत बड़ी समस्या है। विधायक ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में गरीबों के कल्याण के लिए अनगिनत योजनाएं चलाई गई हैं और उन्हें बिना किसी भेदभाव के इनका फायदा मिल रहा है।
केंद्रीय कपड़ा मंत्री गिरिराज सिंह का एक वीडियो कुछ दिन पहले आया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि एक मौलाना से जब उन्होंने पूछा कि क्या उनके साथ सरकारी योजनाओं का फायदा लेने के मामले में कोई भेदभाव किया गया तो उन्होंने कहा कि कोई भेदभाव नहीं हुआ लेकिन गिरिराज सिंह के मुताबिक मौलाना ने उन्हें वोट नहीं दिया।
बंगाल में बीजेपी को मिल रही लगातार हार
पश्चिम बंगाल में 30% मुस्लिम आबादी है और इस बड़ी आबादी का एक बड़ा हिस्सा वोट के रूप में टीएमसी को मिलता है और फिर कांग्रेस और वाम दलों को। लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल में खराब प्रदर्शन के साथ ही बीजेपी को हालिया उपचुनाव में भी चारों सीटों पर हार मिली है। इन चार में से तीन सीटों पर भाजपा ने 2021 के विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की थी।

लोकसभा चुनाव में हुआ हिंदू-मुस्लिम
लोकसभा चुनाव 2024 के प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक चुनावी जनसभा में वोट जिहाद, लव जिहाद और लैंड जिहाद की बात की थी। उन्होंने 2006 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के द्वारा दिए गए एक बयान के आधार पर यह दावा किया था कि मनमोहन सिंह ने देश के संसाधनों पर पहला हक मुसलमानों का बताया था।
चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा के नेताओं ने अपने भाषणों में कहा था कि कांग्रेस एससी-एसटी और ओबीसी का आरक्षण छीनकर मुसलमानों को दे देगी। कांग्रेस की नजर महिलाओं के मंगलसूत्र पर है और इसे भी वह मुसलमानों को दे देगी।
इस तरह के बयानों की वजह से ही पूरे चुनाव के दौरान हिंदू-मुस्लिम का मुद्दा हावी रहा था।

लक्ष्य से पीछे रह गई बीजेपी
बीजेपी ने इस बार लोकसभा चुनाव में एनडीए के लिए 400 पार का नारा दिया था लेकिन एनडीए सिर्फ 292 सीटें ही जीत सका। निश्चित रूप से पार्टी के लिए यह एक बड़ा झटका था और अल्पसंख्यक मतदाताओं की उसके प्रति बेरुखी को इसके पीछे एक बड़ी वजह माना गया।
बीजेपी को सबसे ज्यादा नुकसान उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, बिहार और महाराष्ट्र में हुआ है और इन सभी राज्यों में मुस्लिम आबादी कई सीटों पर हार और जीत का फैसला करने की क्षमता रखती है।

मुस्लिम सीटों का समीकरण
भारत में मुस्लिम समुदाय की आबादी 14 प्रतिशत है और देशभर की 543 लोकसभा सीटों में से 86 लोकसभा सीटों पर मुस्लिम समुदाय की आबादी कम से कम 20% या उससे ज्यादा है। यह 86 सीटें 12 राज्यों और तीन केंद्र शासित प्रदेशों में हैं। 86 में से 16 लोकसभा सीटें ऐसी हैं, जहां पर मुसलमानों की आबादी 50% से ज्यादा है।
लोकसभा चुनाव के प्रचार और इसके नतीजों के बाद जिस तरह बीजेपी के नेताओं के बयान मुस्लिम समुदाय को लेकर आ रहे हैं, उससे यह सवाल खड़ा हो रहा है कि क्या बीजेपी अब हार्डकोर हिंदुत्व की राजनीति करेगी? क्योंकि पार्टी नेताओं के एक बड़े तबके का मानना है कि मुस्लिम समुदाय तमाम सरकारी योजनाओं का फायदा लेने के बाद भी उन्हें वोट नहीं देता।