ताकतवर नेता अपने विरोधियों और वैकल्पिक पावर सेंटर्स को कम करने की मंशा से काम करते हैं। यहां तक कि प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी ने भी यह सुनिश्चित किया कि पार्टी में उन्हें चुनौती देने वाले जो भी संभावित नेता हैं, उनकी ताकत को कम किया जाए। नरेंद्र मोदी ने भी इसी पैटर्न को फॉलो किया और 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद यह बात और स्पष्ट हो गई।
2014 में जब नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी को पहली बार स्पष्ट बहुमत मिला तो उन्होंने पार्टी के वरिष्ठ नेताओं जैसे- अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी को पार्टी में फैसला लेने वाली ताकतवर संस्था संसदीय बोर्ड से हटा दिया।
नरेंद्र मोदी के पहले कार्यकाल में अरुण जेटली ने मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह का मार्गदर्शन किया था। जेटली मोदी के वकील भी रह चुके थे। लेकिन 2018 के आने तक खराब स्वास्थ्य के चलते अरुण जेटली और गोवा से आने वाले मनोहर पर्रिकर को बाहर जाना पड़ा।
पार्टी में कुछ और वरिष्ठ और उदारवादी नेता जैसे- यशवंत सिन्हा, जसवंत सिंह और अरुण शौरी ने मोदी से मतभेदों के चलते पार्टी छोड़ दी।

वरिष्ठ नेताओं से बराबर किया हिसाब
2019 में जब बीजेपी को 303 लोकसभा सीटों पर जीत मिली तो पार्टी में नरेंद्र मोदी की स्थिति अजेय हो गई थी और उन्हें ऐसा लगता था कि उनकी वजह से ही पार्टी को लोकसभा चुनाव में इतनी बड़ी कामयाबी मिली है। धीरे-धीरे नरेंद्र मोदी ने पार्टी के उन सभी वरिष्ठ नेताओं से हिसाब बराबर किया जिन्होंने कभी उनके गुजरात से दिल्ली आने का विरोध किया था।
सुषमा स्वराज को 2019 में कैबिनेट में शामिल नहीं किया गया। सहयोगी जैसे- उद्धव ठाकरे, सुखबीर सिंह बादल और नीतीश कुमार का कद लगातार कम होता गया और उन्होंने एनडीए का साथ छोड़ दिया। (हालांकि बाद में नीतीश कुमार फिर से एनडीए में शामिल हो गए।)

गडकरी को संसदीय बोर्ड से हटाया
मुख्यमंत्रियों, यहां तक कि मोदी के गृह राज्य गुजरात से आने वाले मुख्यमंत्री को भी बेहद खराब ढंग से उनके पदों से हटा दिया गया। पार्टी के पूर्व अध्यक्ष नितिन गडकरी को हमेशा नरेंद्र मोदी के लिए संभावित खतरे के रूप में देखा जाता था, 2022 के बाद नितिन गडकरी से शिपिंग मंत्रालय छीन लिया गया और उन्हें पार्टी के संसदीय बोर्ड से भी हटा दिया गया।
राजस्थान और मध्य प्रदेश में पार्टी के बड़े और अनुभवी चेहरों- वसुंधरा राजे और शिवराज सिंह चौहान को फिर से मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया और इन दोनों ही राज्यों में दो नए चेहरों को सरकार चलाने की जिम्मेदारी दे दी गई।
वन मैन शो?
चुनाव के दौरान पार्टी हाईकमान ने एंटी इनकंबेंसी से लड़ने के तरीके के रूप में मनमाने ढंग से नेताओं को चुना और इस बात का संदेश दिया कि पार्टी मूल रूप से वन मैन शो है। यह बात 2024 में टिकट बंटवारे के दौरान भी दिखाई दी जब हाई प्रोफाइल सांसदों को टिकट नहीं दिया गया।
इन नेताओं में जनरल वीके सिंह, वरुण गांधी और जयंत सिन्हा का नाम शामिल है। इसके अलावा पूनम महाजन, साध्वी प्रज्ञा, प्रवेश वर्मा और रमेश बिधूड़ी को भी लोकसभा चुनाव में टिकट नहीं मिला। इस मामले में मुख्यमंत्री और यहां तक कि पार्टी के संगठन महामंत्रियों की सिफारिश को भी बड़े पैमाने पर नजरअंदाज कर दिया गया।
योगी और हाईकमान के बीच लड़ाई जगजाहिर
असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा, जो मूल रूप से संघ परिवार से नहीं हैं, उनके अलावा अपना राजनीतिक प्रभाव रखने वाले भाजपा के मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश के योगी आदित्यनाथ ही हैं। योगी आदित्यनाथ और बीजेपी हाईकमान के बीच लड़ाई जगजाहिर हो चुकी है। अमित शाह के करीबी माने जाने वाले उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य योगी आदित्यनाथ द्वारा उनकी ताकत छीने जाने के बाद से नाराज हैं और खुलकर अपनी नाराजगी को जाहिर कर रहे हैं।
लोकसभा चुनाव में बीजेपी की हार के कारणों की जांच कर रही जांच कमेटी ने अप्रत्यक्ष रूप से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर अंगुली उठाई है। बीजेपी के सहयोगी दल जिन्होंने हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार के काम की आलोचना की है, ऐसा लगता है कि उन्हें केंद्र सरकार की ओर से मौन समर्थन मिला हुआ है।

टिकट बंटवारे की ओर योगी का इशारा
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश में मिली हार के लिए ‘अति आत्मविश्वास’ को जिम्मेदार ठहराया है और ऐसा कहकर उन्होंने यह संदेश दिया है कि टिकट बंटवारे में उनकी राय को नजरअंदाज कर दिया गया। उत्तर प्रदेश में 10 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव में योगी आदित्यनाथ को अपनी क्षमता को साबित करना होगा लेकिन क्योंकि इनमें से आधी सीटें सपा का गढ़ हैं, इसलिए यह उपचुनाव योगी के सामने यह एक बड़ी चुनौती है। लेकिन क्या बीजेपी वाकई हिंदुत्ववादियों और ठाकुरों के बीच एक करिश्माई चेहरे योगी आदित्यनाथ को खोने का जोखिम उठा सकती है?
वाजपेयी-आडवाणी युग में जब नेतृत्व के तीन अलग-अलग स्तर थे, तब प्रतिभा का उपयोग किया जाता था और अनुभव को सम्मान दिया जाता था लेकिन आज के दूसरे और तीसरे स्तर के नेता चेहराविहीन और बिना राजनीतिक प्रभाव के होते जा रहे हैं।
जब तक नरेंद्र मोदी चुनाव में वोट दिलाते रहे किसी ने भी उनके एकतरफावाद को लेकर सवाल नहीं उठाया लेकिन चुनाव नतीजों के बाद जिस तरह मोदी का करिश्मा कम हुआ है, उससे बीजेपी और संघ के बीच असंतोष सतह पर आ रहा है।

संघ प्रमुख का सुपरमैन वाला बयान
संघ प्रमुख मोहन भागवत ने हाल ही में बयान दिया कि किसी को यह नहीं मानना चाहिए कि वह कोई सुपरमैन हो सकता है, इससे यह पता चलता है कि अविभाजित हिंदुत्व परिवार में सब कुछ ठीक नहीं है और शायद ही कभी इस परिवार की आंतरिक लड़ाई इस तरह सार्वजनिक रूप से खुलकर लोगों के सामने आई हो।
नया अध्यक्ष कब चुनेगी पार्टी?
जेपी नड्डा मोदी सरकार में मंत्री भी हैं और अंतरिम अध्यक्ष के तौर पर पार्टी की कमान भी उनके पास है क्योंकि पार्टी के नए अध्यक्ष का चुनाव मुश्किल साबित हो रहा है। मोदी के लोकप्रियता की पहली परीक्षा हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड में होने वाले विधानसभा चुनाव में होनी है और लोकसभा चुनाव के नतीजों को देखें तो इसमें उन्हें कड़े मुकाबले का सामना करना पड़ सकता है।
