लोकसभा चुनाव में जैसी कामयाबी की उम्मीद भाजपा ने की थी, वैसी नहीं मिली। अब पार्टी को आने वाले कुछ महीनों में तीन राज्यों में विधानसभा के चुनाव के साथ ही उत्तर प्रदेश में उपचुनाव और राज्यसभा के चुनाव का भी सामना करना है। अपनी पार्टी में उठ रहे अलग-अलग सुर के साथ सहयोगी दलों की ओर से दिखाए जा रहे तेवरों के चलते इन चुनावों में बीजेपी की चुनौती बढ़ने वाली है।
महाराष्ट्र में जहां एनडीए में शामिल अजित पवार की अगुवाई वाली एनसीपी से गठबंधन को लेकर बीजेपी अपनों के रुख से ही परेशान है तो झारखंड में सहयोगी दल जेडीयू ने 11 विधानसभा सीटों पर अपनी दावेदारी जता कर उसकी मुश्किलें बढ़ा दी हैं।
हरियाणा में भी हालात बीजेपी के लिए बहुत अच्छे नहीं हैं क्योंकि लोकसभा चुनाव में पार्टी की सीटें और वोट शेयर दोनों ही गिरे हैं। आने वाले कुछ दिनों में किसान फिर से मोदी सरकार और बीजेपी के खिलाफ मोर्चा खोलने की तैयारी कर रहे हैं।
उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के बीच चल रही तनातनी की खबरों को लेकर सियासी माहौल पहले से ही बेहद गर्म है। राज्य में 10 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होना है और तनातनी के बीच इन सीटों पर बीजेपी कैसे जीत दर्ज करेगी, यह उसके सामने एक बड़ा सवाल है। कहा जा रहा है कि उपचुनाव में जीत के लिए योगी आदित्य नाथ को खुली छूट दी गई है, जबकि लोकसभा चुनाव में अनेके सांसदों के टिकट काटने के उनकी सलाह को नहीं माना गया था।
इनके अलावा राज्यसभा की 10 सीटों पर भी चुनाव होना है। उसमें भी बीजेपी को ज्यादा से ज्यादा सीटों पर जीत दर्ज करनी होगी जिससे राज्यसभा में उसकी स्थिति सुधर सके।
अब इन चुनावों पर बात करते हैं विस्तार से।
झारखंड में जेडीयू ने किए 11 सीटों पर उम्मीदवारों के नाम फाइनल
सबसे पहले बात झारखंड के विधानसभा चुनाव की। झारखंड में जेडीयू इस बार जोर-शोर से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है। पार्टी ने 11 सीटों पर उम्मीदवारों के नाम फाइनल भी कर दिए हैं। जेडीयू के राज्यसभा सांसद खिरू महतो ने तो यहां तक कहा है कि पार्टी पूरे झारखंड में चुनाव लड़ने के हिसाब से तैयारी कर रही है। हालांकि सीटों के संबंध में अंतिम फैसला बीजेपी के बड़े नेताओं से बातचीत के बाद ही लिया जाएगा।
2019 में जेडीयू ने झारखंड में अकेले दम पर 40 और 2014 में 45 सीटों पर चुनाव लड़ा था लेकिन तब वह एक भी सीट नहीं जीत सकी थी।
बिहार में साल 2005 के बाद से ही नीतीश कुमार मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज हैं। झारखंड बिहार का ही हिस्सा था और साल 2000 में उसे अलग राज्य बनाया गया था।
जेडीयू को नजरअंदाज करना होगा मुश्किल
बीजेपी को चूंकि इस बार लोकसभा चुनाव में अपने दम पर बहुमत नहीं मिला है, ऐसे में उसे सहयोगी दलों के साथ तालमेल बैठाते हुए ही सरकार चलानी है। सहयोगी दलों में भी जेडीयू के साथ उसका सबसे पुराना रिश्ता है और ऐसा लगता है कि वह इस बार झारखंड के पिछले विधानसभा चुनावों की तरह जेडीयू को नजरअंदाज नहीं कर सकेगी।
झारखंड में बीजेपी का पहले से ही ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसू) के साथ समझौता है और ऐसे में बीजेपी को जेडीयू और आजसू को भी सीटें देनी होंगी।

आदिवासी सीटों पर मिली बीजेपी को हार
झारखंड के लोकसभा चुनाव के नतीजे भी पार्टी के लिए अच्छे नहीं रहे हैं। राज्य में आदिवासी समुदाय के लिए आरक्षित पांचों लोकसभा सीटों पर उसे हार मिली है और हेमंत सोरेन जेल से बाहर आने के बाद से ही बीजेपी पर हमलावर हैं। ऐसे में राज्य में बीजेपी के लिए चुनौतियां ज्यादा हैं।
महाराष्ट्र में एनसीपी को लेकर मुसीबत
एक और चुनावी राज्य महाराष्ट्र में बीजेपी एनसीपी की ओर को लेकर बड़ी परेशान है। पार्टी के अंदर से आवाज उठ रही है कि एनसीपी के साथ गठबंधन तोड़ दिया जाना चाहिए।
आरएसएस की साप्ताहिक मराठी पत्रिका ‘विवेक’ में पिछले दिनों लिखे गए एक लेख में कहा गया था कि लोकसभा चुनाव में बीजेपी के खराब प्रदर्शन के पीछे एनसीपी से गठबंधन करना एक बड़ी वजह है। पत्रिका ने कहा था कि महाराष्ट्र में भाजपा कार्यकर्ता एनसीपी के साथ गठबंधन किए जाने से खुश नहीं हैं।
महाराष्ट्र में भी बीजेपी को लोकसभा चुनाव में बेहद खराब नतीजों का सामना करना पड़ा है और अब उसे इस उलझन के बीच विधानसभा चुनाव में जाना है कि वह एनसीपी के साथ रहे या ना रहे। इसके साथ ही सीटों का बंटवारा भी एक बड़ी मुसीबत है।
लोकसभा चुनाव 2024 में महाराष्ट्र में किसे मिली कितनी सीटें
राजनीतिक दल | मिली सीटें |
बीजेपी | 9 |
कांग्रेस | 13 |
एनसीपी | 1 |
एनसीपी (शरद चंद्र पवार) | 8 |
शिवसेना (यूबीटी) | 9 |
शिवसेना | 7 |
महाराष्ट्र में कैसे होगा सीटों का बंटवारा?
कुछ दिन पहले ही उपमुख्यमंत्री और एनसीपी के प्रमुख अजित पवार ने कहा था कि विधानसभा चुनाव में एनसीपी को 80 सीटें दी जानी चाहिए जबकि मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की अगुवाई वाली शिवसेना 126 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है जबकि भाजपा खुद 150 सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है।
राज्य में विधानसभा की कुल 288 सीटें हैं। ऐसे हालात में निश्चित रूप से बीजेपी के लिए विधानसभा चुनाव में टिकटों का बंटवारा कर पाना मुश्किल होगा।
मराठा समुदाय ने बढ़ाई चिंता
महाराष्ट्र में मराठा आंदोलन को लेकर भी बीजेपी परेशान है। आरक्षण की मांग को लेकर मराठा समुदाय कई महीनों से आवाज उठा रहा है। बीजेपी को इस मामले में कोई हल जरूर निकालना होगा। वरना 32 से 35% मराठा समुदाय की ओर से उसे विधानसभा चुनाव में उनकी नाराजगी भारी पड़ सकती है।
हरियाणा में कांग्रेस से मिल रही चुनौती
बात हरियाणा के विधानसभा चुनाव की करें तो हरियाणा में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने उसके हाथ से आधी सीटें छीन ली हैं। ऐसे में विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस का जोश काफी बढ़ा हुआ है। बीजेपी को राज्य में कांग्रेस की ओर से मिल रही चुनौती का सामना करना पड़ रहा है।
बीजेपी पर हरियाणा में यह आरोप लगता रहा है कि वह राज्य की 25% आबादी वाले जाट समुदाय को सही राजनीतिक भागीदारी नहीं दे रही है। ऐसे में पार्टी के सामने चुनौती जाट और गैर जाट राजनीति में तालमेल बनाते हुए चुनाव जीतने की भी है।
हरियाणा लोकसभा चुनाव में वोट शेयर और सीटें दोनों का नुकसान
राजनीतिक दल | लोकसभा चुनाव 2019 में मिली सीट | लोकसभा चुनाव 2024 में मिली सीट | लोकसभा चुनाव 2019 में मिले वोट (प्रतिशत में) | लोकसभा चुनाव 2024 में मिले वोट (प्रतिशत में) |
कांग्रेस | 0 | 5 | 28.51 | 43.67 |
बीजेपी | 10 | 5 | 58.21 | 46.11 |
दिल्ली कूच की तैयारी में हैं किसान
हरियाणा और पंजाब के शंभू बॉर्डर पर बैठे किसान भी बीजेपी की चिंता बढ़ा रहे हैं। किसान एमएसपी को कानूनी गारंटी दिए जाने की मांग को लेकर धरने पर बैठे हैं और आने वाले कुछ दिनों में दिल्ली कूच कर सकते हैं। लोकसभा चुनाव में बीजेपी के उम्मीदवारों को किसानों के जबरदस्त विरोध का सामना करना पड़ा था।

यूपी की चुनौती: योगी और मौर्य के बीच खिंची तलवारें
अखबारों, टीवी और सोशल मीडिया में इन दिनों राजनीतिक खबरों को लेकर सबसे ज्यादा चर्चा उत्तर प्रदेश की है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की उपस्थिति में उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य का यह बयान कि ‘संगठन सरकार से बड़ा है’, इसके बाद से ही मौर्य और योगी आदित्यनाथ के बीच दूरियां बढ़ने की खबर की खुलकर चर्चा हो रही है।
योगी आदित्यनाथ के सामने 10 विधानसभा सीटों पर होने वाला उपचुनाव एक बड़ी परीक्षा है और उन्हें इस परीक्षा में खुद को साबित करना है। लेकिन जिस तरह की खींचतान की खबरें पार्टी के अंदर से सामने आ रही हैं, उससे निश्चित रूप से योगी आदित्यनाथ के साथ ही बीजेपी की भी मुश्किल बढ़ सकती हैं। यह कहा जाता है कि उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य को दूसरे उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक, उत्तर प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी का भी समर्थन हासिल है।

बीते दिनों इस तरह की भी खबरें सामने आई थी कि लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में टिकट बंटवारे के दौरान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की राय को बीजेपी के शेष नेतृत्व ने पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया था।
यूपी लोकसभा चुनाव नतीजों में बीजेपी को हुआ था बड़ा नुकसान
राजनीतिक दल | 2024 में मिली सीटें | 2019 में मिली सीटें |
बीजेपी | 33 | 62 |
सपा | 37 | 5 |
कांग्रेस | 6 | 1 |
बीएसपी | 0 | 10 |
रालोद | 2 | – |
अपना दल (एस) | 1 | 2 |
आजाद समाज पार्टी(कांशीराम) | 1 | – |
बीजेपी से नाराज हैं राजपूत?
ऐसी चर्चा है कि लोकसभा चुनाव के दौरान योगी आदित्यनाथ जिस राजपूत बिरादरी से आते हैं, उसने या तो वोट नहीं डाला या बीजेपी के खिलाफ वोट दिया है क्योंकि चुनाव के दौरान यह बात सामने आई थी कि अगर एनडीए को 400 से ज्यादा सीटें मिली तो बीजेपी योगी आदित्यनाथ को उत्तर प्रदेश से हटाकर दिल्ली भेज सकती है।
सहयोगी दल दिखा रहे नाराजगी
बीजेपी के सहयोगी दल निषाद पार्टी के मुखिया संजय निषाद योगी आदित्यनाथ की बुलडोजर राजनीति पर सवाल उठा चुके हैं। एक और सहयोगी दल अपना दल (सोनेलाल) की मुखिया और केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल आरक्षण को लेकर सरकार को घेर चुकी हैं।

उत्तर प्रदेश जैसे विशाल आबादी वाले राज्य में उपचुनाव भी एक बड़ी चुनौती की तरह होता है। लोकसभा चुनाव में पीडीए के फार्मूले से उत्साहित समाजवादी पार्टी ने उपचुनाव के साथ ही ढाई साल बाद होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारी भी शुरू कर दी है।
राज्यसभा की 10 सीटों पर होना है चुनाव
राज्यसभा में बीजेपी की ताकत घट चुकी है। बीजेपी के पास वर्तमान में राज्यसभा के 86 सदस्य हैं जबकि इस साल की शुरुआत में यह आंकड़ा 97 तक पहुंच चुका था। एनडीए के पास कुल 101 सांसद हैं जबकि 245 सदस्यों वाली राज्यसभा में बहुमत का आंकड़ा 123 है। ऐसे में राज्यसभा में किसी विधेयक को पास कराने के लिए एनडीए के पास बहुमत नहीं है। बीजेपी को ज्यादा सीटों पर जीत दर्ज कर अपना आंकड़ा बढ़ाना होगा जिससे उसे किसी विधेयक को पास कराने में परेशानी न हो।
राज्यसभा की जिन सीटों पर चुनाव होना है, उनमें असम, बिहार और महाराष्ट्र की दो-दो, हरियाणा, मध्य प्रदेश, राजस्थान और त्रिपुरा की एक-एक सीट शामिल है।

लोकसभा के बाद विधानसभा उपचुनाव में भी हार
लोकसभा चुनाव के बाद पिछले महीने जब सात राज्यों की 13 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव के नतीजे आए थे तो उसमें भी बीजेपी को करारी हार का सामना करना पड़ा था। जबकि इंडिया गठबंधन ने 10 सीटों पर जीत दर्ज की थी।
उत्तराखंड में पिछले 7 साल से सरकार चला रही भाजपा वहां दो विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में हार गई थी। पश्चिम बंगाल में टीएमसी ने उसे सभी चारों सीटों पर हरा दिया था।
लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद विपक्ष लगातार कह रहा है कि एनडीए की सरकार बैसाखियों के सहारे चल रही है और यह अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाएगी। राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने तो यहां तक दावा किया था कि अगस्त में ही यह सरकार गिर जाएगी।
चुनाव नतीजे आने के बाद पेपर लीक, ट्रेन दुर्घटनाओं की वजह से मोदी सरकार के कामकाज पर सवाल उठे हैं। अब तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव, राज्यसभा चुनाव और उत्तर प्रदेश के उपचुनाव बीजेपी के लिए अग्निपरीक्षा की तरह हैं।
हालांकि बीजेपी ने महाराष्ट्र, झारखंड और हरियाणा के चुनाव के लिए बड़े पैमाने पर तैयारी शुरू कर दी है और राज्यसभा और उत्तर प्रदेश के उपचुनाव को लेकर भी वह रणनीति बना रही है। लेकिन अगर इन चुनावों में वह जीत दर्ज नहीं कर पाई तो उसके लिए मुश्किल और बढ़ जाएगी।