लोकसभा चुनाव 2024 के पहले चरण का मतदान (19 अप्रैल) अब बेहद करीब है। पार्टियां अलग-अलग रूप में घोषणापत्र ला रही हैं या लाने की तैयारी में हैं। सबसे बड़ी और सत्ताधारी पार्टी भाजपा का घोषणापत्र अभी तक नहीं आया है। दूसरी सबसे बड़ी पार्टी (कांग्रेस) ने अपना घोषणापत्र पेश कर दिया है। सबसे ताजा घोषणापत्र समाजवादी पार्टी का (10 अप्रैल को) आया है।
घोषणापत्र एक तरह से पार्टियों के वादों का आधिकारिक दस्तावेज है। वे वादे जिन्हें पूरा करने के लिए पार्टियां जनता से वोट मांगती हैं। आदर्श स्थिति यह है कि घोषणापत्र में शामिल मुद्दों के आधार पर ही पार्टियां वोट मांगें और सत्ता में आने वाली पार्टी पांच साल में उन वादों को पूरा करे। पर, दोनों ही बातें अमूमन व्यवहार में देखने को नहीं मिलती हैं।
Congress Election Manifesto: हर वर्ग से किए वादे
भाजपा का घोषणापत्र आना बाकी है, लेकिन कांग्रेस का आ गया है। कांग्रेस ने इस बार अपने घोषणा पत्र (न्याय पत्र) में युवा न्याय, किसान न्याय, सामाजिक न्याय, आर्थिक न्याय की बात कही है। इसके तहत पार्टी ने गरीबों, किसानों, महिलाओं के लिए सत्ता में आने पर तमाम तरह के बड़े वादों की घोषणा गारंटी के रूप में की है।
Key issues Lok Sabha election 2024: बेरोजगारी, महंगाई और विकास का मुद्दा अहम
सीएसडीएस-लोकनीति के द्वारा कराए गए हालिया सर्वे से पता चला है कि मतदाता 2024 के लोकसभा चुनाव में तीन मुद्दों को सबसे अहम मानते हैं। यह मुद्दे- बेरोजगारी, महंगाई और विकास के हैं।
कांग्रेस कहती रही है कि चुनाव का मुद्दा बेरोजगारी, महंगाई, भ्रष्टाचार है। लेकिन अपने घोषणा पत्र में उसने इसे कितनी अहमियत दी है, उसका अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि 15 हजार से ज्यादा शब्दों वाले उसके घोषणापत्र में एम्प्लॉयमेंट/ अन एम्प्लॉयमेंट शब्द को 29 बार जगह दी गई है, इन्फ्लेशन यानी महंगाई शब्द का इस्तेमाल 3 जगह और करप्शन/एंटी करप्शन शब्द 4 जगह पर है। कांग्रेस के घोषणा पत्र या न्याय पत्र में फार्मर (किसान) शब्द का उल्लेख 27 जगह पर है।
तमिलनाडु की राज्य सरकार की अगुवाई कर रही डीएमके ने अपने चुनाव घोषणा पत्र में एम्प्लॉयमेंट शब्द 17, करप्शन शब्द 3 और फ़ॉर्मर शब्द का इस्तेमाल 13 जगहों पर किया है।
समाजवादी पार्टी ने अपने चुनावी घोषणा पत्र यानी विजन डाक्यूमेंट में दूध सहित सभी फसलों के लिए एमएसपी की कानूनी गारंटी देने, किसानों का ऋण माफ करने, मुफ्त सिंचाई की सुविधा, किसान आयोग का गठन, हर 10 किलोमीटर पर मंडी की स्थापना, छोटे सीमांत किसानों को 5 हजार रूपये प्रतिमाह पेंशन दिए जाने सहित कई वादे किए हैं।
Election manifesto: किसका घोषणापत्र कितना लंबा
पार्टी | साल | कितने शब्द |
बीजेपी | 2019 | 17 हजार+ |
सीपीएम | 2024 | 16 हजार+ |
कांग्रेस | 2024 | 15 हजार+ |
डीएमके | 2024 | 12 हजार+ |
BJP election manifesto: 1984 में किया वादा 2019 में निभाया
आदर्श स्थिति यह है कि घोषणापत्र में पांच साल में पूरे किए जाने लायक वादे ही होना चाहिए, क्योंकि पांच साल बाद फिर से चुनाव होने हैं। लेकिन, ऐसा होता नहीं है। नीचे दिए गए चार्ट से यह स्पष्ट है। बीजेपी ने 1984 के अपने घोषणा पत्र में वादा किया था कि वह सत्ता में आने पर जम्मू और कश्मीर से धारा 370 को समाप्त करेगी, लेकिन साल 2019 में उसने अपने इस वादे को पूरा किया।
कब किया वादा (बीजेपी) | क्या था वादा | कब हुआ पूरा |
1984 | धारा 370 की समाप्ति | 2019 |
1996 | ईडब्ल्यूएस आरक्षण | 2019 |
1989 | यूसीसी | 2024 (उत्तराखंड में) |
1991 | राम मंदिर निर्माण | 2024 |
2019 | सीएए | 2024 |
इसी तरह कांग्रेस ने साल 2004 के घोषणा पत्र में इस बात का वादा किया था कि वह राइट टू एजुकेशन का अधिकार देगी और उसने साल 2009 में यूपीए की सरकार के दौरान अपने इस वादे को पूरा किया।
कब किया वादा (कांग्रेस) | क्या था वादा | कब हुआ पूरा |
2004 | मनरेगा एक्ट | 2005 |
2004 | राइट टू एजुकेशन एक्ट | 2009 |
2009 | नेशनल फूड सिक्योरिटी एक्ट | 2013 |
देश की आजादी से पहले भी चुनाव के दौरान घोषणा पत्र की काफी अहमियत रही है। ब्रिटिश राज में जब अंग्रेजों ने प्रतिनिधि चुने जाने की व्यवस्था को अपने शासन तंत्र में शामिल किया तो पार्टियां घोषणापत्र जारी किया करती थीं। कुछ उदाहरण नीचे चार्ट में देख सकते हैं कि तब किस राजनीतिक दल ने अपने घोषणा पत्र में क्या वादा किया था।
कब और किसने किया वादा | क्या वादा किया |
1916 में जस्टिस पार्टी ने | गैर-ब्राह्मणों के लिए अधिक सशक्त शिक्षा नीति बनाना |
1920 में कांग्रेस डेमोक्रेटिक पार्टी ने | चिकित्सा की स्वदेशी पद्धतियों को बढ़ावा देना |
1923 में नेशनल यूनियनिस्ट पार्टी ने | कृषि और अन्य वर्गों के बीच वित्तीय बोझ के बंटवारे का |
1937 में कांग्रेस ने | कृषि लगान में कटौती का |
1937 में मुस्लिम लीग ने | प्राथमिक शिक्षा को मुफ्त और अनिवार्य बनाने का |
कितने प्रतिशत वादों को पूरा किया
टाइम्स ऑफ़ इंडिया में प्रकाशित आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले 20 सालों में देश में बनी तमाम सरकारें अपने चुनावी घोषणा पत्र में किए गए वादों को पूरा करने की ओर आगे बढ़ती दिखाई दी हैं। जैसे साल 2004 में बनी यूपीए वन की सरकार में कांग्रेस के चुनावी घोषणा पत्र के 46% वादों को पूरा किया गया था जबकि यूपीए 2 में यह आंकड़ा बढ़कर 64% हो गया। 2014 में बनी एनडीए सरकार ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में किए गए वादों को 71% तक पूरा किया था।

नए रूप में दिखाई देगा बीजेपी का घोषणा पत्र
बीजेपी ने 2024 के लिए अभी अपना घोषणा पत्र (संकल्प पत्र) जारी नहीं किया है। इस बार उसका संकल्प पत्र कुछ नए नए रूप में दिखाई देगा क्योंकि वह अपने 2014 और 2019 के चुनावी घोषणा पत्र में किए गए पुराने वादों जैसे- जम्मू-कश्मीर से धारा 370 की समाप्ति और राम मंदिर निर्माण के अपने वादे को पूरा कर चुकी है। यह कहा जा रहा है कि वह अपने चुनावी घोषणा पत्र में भारत को 2047 तक विकसित राष्ट्र बनाने के वादे को शामिल कर सकती है।
Election Slogan 2024: चुनाव में नारों का जलवा
लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान चुनावी स्लोगन या हिट नारों को लेकर भी जबरदस्त क्रेज आम लोगों में दिखाई देता है। जैसे साल 1965 में भारत-पाकिस्तान के युद्ध के दौरान जब देश में अनाज की कमी हुई थी तो तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने जय जवान-जय किसान का नारा बुलंद किया था। इस नारे ने उस वक्त लोगों को जोश से भर दिया था और कांग्रेस को इसका अगले लोकसभा चुनाव में फायदा मिला था और उसने 1967 में एक बार फिर जीत हासिल की थी।
गरीबी हटाओ का नारा
1971 में कांग्रेस ने गरीबी हटाओ का नारा दिया था। यह नारा काफी चर्चित हुआ था। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे देवकांत बरुआ ने पार्टी में बेहद ताकतवर नेता और उस वक्त की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के लिए 1974 में इंडिया इज इंदिरा और इंदिरा इज इंडिया यानी ‘इंडिया इंदिरा है और इंदिरा इंडिया हैं’ का नारा दिया था।
India Shining: इंडिया शाइनिंग का नारा
साल 2004 में एनडीए सरकार की अगुवाई कर रही भाजपा ने इंडिया शाइनिंग का नारा दिया था। हालांकि यह नारा बहुत पॉपुलर हुआ था लेकिन एनडीए को उस चुनाव में हार मिली थी। साल 2014 में जब नरेंद्र मोदी को एनडीए ने प्रधानमंत्री के चेहरे के रूप में पेश किया था तो उस वक्त भी एक नारा- बहुत हुई महंगाई की मार, अबकी बार मोदी सरकार, बीजेपी की ओर से जारी किया गया था।
2009 में पश्चिम बंगाल में टीएमसी ने मां, माटी और मानुष का नारा दिया था। 2014 में बीजेपी ने सबका साथ-सबका विकास के नारे को लोगों के सामने रखा।
Election Manifesto: कैसे बनता है चुनावी घोषणा पत्र?
चुनावी घोषणा पत्र तैयार करना आसान काम नहीं है। इसके लिए राजनीतिक दल ऐसे नेताओं को जिम्मेदारी देते हैं जिन्हें जनता की नब्ज का पता हो। ऐसी तमाम बातों को चुनावी घोषणा पत्र में शामिल किया जाता है जिसकी वजह से जनता उस राजनीतिक दल को वोट देने का मन बनाए।
जैसे कांग्रेस ने अपने चुनाव घोषणा पत्र में वादा किया है कि वह अग्निपथ योजना को रद्द करेगी, जम्मू और कश्मीर का पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करेगी। इसी तरह सीपीएम ने वादा किया है कि वह प्रिवेंशन ऑफ़ मनी लांड्रिंग एक्ट यानी पीएमएलए कानून और सीएए कानून को खत्म करेगी।
चुनावी घोषणा पत्र मुख्य रूप से हिंदी, किसी क्षेत्रीय भाषा और अंग्रेजी में जारी किए जाते हैं। इन घोषणा पत्र को लिखने वाले लोगों की ऐसे शब्दों पर बेहतर पकड़ होनी चाहिए जो आम आदमी की बोलचाल में शामिल हों।
घोषणा पत्र की कमान अनुभवी नेताओं के पास
बीजेपी ने चुनावी घोषणा पत्र बनाने वाली समिति का अध्यक्ष पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को बनाया है। इस कमेटी में 27 सदस्य शामिल हैं। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को इस समिति का संयोजक बनाया गया है जबकि गुजरात, असम और मध्य प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री क्रमशः भूपेंद्र पटेल, हिमंता बिस्वा सरमा, डॉ. मोहन यादव के अलावा मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को भी इस समिति में शामिल किया गया है।
बीजेपी को अपना चुनावी घोषणा पत्र तैयार करने के लिए मिस कॉल अभियान के जरिए 3.75 लाख और नमो ऐप के जरिए 1.70 लाख सुझाव मिले। चुनावी घोषणा पत्र को तैयार करने में भारत सरकार के तमाम मंत्रियों और भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों से भी चर्चा की गई है।
जबकि कांग्रेस ने साल 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए बनाई गई घोषणा पत्र समिति का अध्यक्ष पूर्व गृहमंत्री और राज्यसभा के सांसद पी. चिदंबरम को बनाया है। छत्तीसगढ़ के पूर्व उपमुख्यमंत्री टीएस सिंह देव को समिति का संयोजक बनाया गया है। इसके अलावा पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी के अलावा कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया, शशि थरूर सहित 16 नेताओं को इसमें जगह दी गई है।
राजनीतिक दलों को जिम्मेदार बनाते हैं घोषणा पत्र
चुनावी घोषणा पत्र राजनीतिक दलों को जिम्मेदार भी बनाते हैं क्योंकि सत्ता में आने पर विपक्षी राजनीतिक दल और आम जनता उनसे इस संबंध में सवाल करती है कि उसने अपने चुनावी घोषणा पत्र में इस मुद्दे पर काम करने का वादा किया था लेकिन अब वह इस पर आगे क्यों नहीं बढ़ रहे हैं।