मैं बिहार हूं, मेरी पहचान कई वजहों से रही है, बात पौराणिक को, ऐतिहासिक हो या फिर राजनीतिक… लेकिन एक ऐसी पहचान भी मेरे साथ जुड़ी है जिससे चाहकर भी मैं पीछा नहीं छुड़ा पा रहा हूं- भ्रष्टाचार… कांग्रेस का कालखंड हो, लालू का राज हो, नीतीश की सरकार को, इस भ्रष्टाचार ने कभी पीछा नहीं छोड़ा, हर बार साबित हो जरूरी नहीं, लेकिन आरोपों ने मेरी इस सरजमी पर सियासी तपिश को हमेशा बढ़ाकर रखा है। ऐसा ही एक किस्सा याद आता है, बात 1992 की है, लेकिन मुद्दा 25 साल बाद 2017 में बना। किरदार हैं लालू, लालू के बेटे तेज प्रताप और एक जमीन… मैं बिहार हूं और आज एक और किस्सा सुनाता हूं
2017 में सुशील कुमार मोदी बिहार बीजेपी के विपक्ष के नेता थे, सरकार महागठबंधन की चल रही थी। इस महागठबंधन में लालू की राजद थी, कांग्रेस थी और साथ में खड़े थे नीतीश कुमार। 2015 के विधानसभा चुनाव में अप्रत्याशित जीत हासिल कर सरकार बनाई गई थी। लेकिन दो साल के भीतर ही खटपट की खबरें ऐसे आ रही थीं कि मानो किसी भी दिन खेल हो ही जाएगा। सुशील कुमार मोदी भी इस सियासी खेल में अपनी अहम भूमिका अदा कर रहे थे। लालू परिवार के प्रति तो उनका ‘विशेष’ प्रेम दिखाई दे रहा था। जमीन से जुड़े कई ऐसे घोटालों का जिक्र वे कर चुके थे, लेकिन उनका पिटारा अभी और खुलना बाकी था।
चार जुलाई 2017 को सुशील कुमार मोदी ने एक और प्रेस कॉन्फ्रेंस की, मुद्दा वही था- जमीन घोटाला, लेकिन इस बार निशाने पर आ गए लालू के लाल तेज प्रताप यादव। सुशील मोदी ने आरोप लगाया कि 1992 में उस जमाने के दबंग नेता बृज बिहारी सिंह को मंत्री बनाने के लिए लालू ने बदले में जमीन ली थी। लेकिन ये जमीन का खेल इतना सीधा नहीं था क्योंकि सुशील मोदी की कहानी में एक ट्विस्ट था। इस डील में ना लालू की सीधी भागीदारी दिखी और ना ही बृज बिहारी सिंह की। सक्रिय भूमिका तो उन दो लोगों की थी जो तब राजनीति में आए तक नहीं थे।
हम बात कर रहे हैं तेज प्रताप यादव की और बृज बिहारी सिंह की पत्नी रमा देवी की। तेज प्रताप की उम्र उस समय महज तीन साल थी। रमा देवी भी तब सिर्फ बृज बिहारी की पत्नी तक सीमित थी, राजनीति में उनकी कोई दखलअंदाजी नहीं थी। अब सुशील मोदी ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि रमा देवी ने लालू के बेटे तेज प्रताप के नाम 13 एकड़ जमीन कर दी थी। सुशील मोदी की तरफ से एक दस्तावेज भी दिखाया गया। उस दस्तावेज में जमीन को लेकर सारी जानकारी दी गई थी।
दस्तावेज में लिखा था कि तेज प्रताप को मुजफ्फरपुर के किशनगंज मौजा में स्थित दो भूखंड तोहफे के रूप में दिए जा रहे हैं। एक भूखंड का रकबा नौ एकड़ 24 डिसमिल है और दूसरे का तीन एकड़ 88 डिसमिल। अब जितनी बड़ी ये जमीन थी, उससे ज्यादा बड़े दावे हुए थे। उस दस्तावेज में लिखा था- तेज प्रताप कहने को अभी नाबालिग है, लेकिन वो रमा देवी का ख्याल रखता है। रमा देवी उसके व्यवहार से खुश होकर उसे तोहफे में जमीन दे रही है।
अब सुशील मोदी ने जो दस्तावेज पेश किए, कई सवाल खड़े हो गए थे। तीन साल के तेज प्रताप ने कौन सी सेवा की? रमा देवी ने आखिर कैसे एक तीन साल के बच्चे को इतनी बड़ी जमीन दे दी। मामला 1992 का था जरूर, लेकिन 25 साल बाद इसकी राजनीतिक परतें खुल रही थी। सुशील मोदी ने तो कहा ही कि बृज बिहारी को क्योंकि मंत्री बनना था, इस वजह से लालू ने जमीन मांग ली, बाद में खुद रमा देवी सामने आई थीं, उन्होंने इस विवाद पर रोशनी डाली थी।
रमा देवी ने कहा था-
इस पूरे विवाद पर लालू यादव ने भी अपना पक्ष मीडिया के सामने रखा। लालू यादव ने दावा किया कि उनके बेटे तेज प्रताप यादव को जमीन जरूर दी गयी थी मगर उन्होंने दान में मिली वह भूमि लौटा दी थी। लालू यादव ने रमा देवी के पति का नाम लेते हुए कहा, “बृज बिहारी ने तेज प्रताप को दान में जमीन दी थी। जब मुझे इस बारे में पता चला तो मैंने उन्हें फटकार लगायी और रजिस्ट्री रद्द करायी।”
लालू ने उस दिन तेज प्रताप को बचाने के लिए कानून का भी हवाला दिया। उन्होंने अपने अंदाज में कहा कि कानून में लिखा है कि गिफ्ट भी किसी का तब होगा जब रजिस्ट्री में सहमति दोनों पक्षों की हो लेकिन 23 मार्च 1992 को रमा देवी ने बिना किसी से पूछे जमीन दान में दी थी। ऐसे में जब बृज बिहारी ने रजिस्ट्री का कागज दिखाया, मैंने बहुत डांटा, सीधे पूछा कि बिना सहमति कैसे रजिस्ट्री हो सकती है।
लालू यादव एवं उनके परिवार पर दूसरों से जमीन लेने के आरोप का सिलसिला इस मामले पर समाप्त नहीं हुआ। लालू यादव और तेजस्वी यादव इत्यादि पर रेलवे में नौकरी देने के बदले जमीन लेने के आरोप पर मुकदमा चल रहा है। बिहार चुनाव 2025 के लिए जारी प्रचार के दौरान ही अदालत ने लालू एवं तेजस्वी इत्यादि पर आरोप दायर करने की अनुमति प्रदान की है। तेजस्वी यादव ने इस आरोप को बेबुनियाद बताते हुए इसे राजनीतिक बदले की कार्रवाई ठहराया।
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