Bhupinder Hooda Ashok Tanwar Haryana Congress: पूर्व सांसद अशोक तंवर हरियाणा के राजनीतिक विश्लेषकों को हैरान करते हुए गुरुवार को अचानक कांग्रेस में वापस आ गए। उनके इस कदम का अंदाजा किसी को भी नहीं था लेकिन अब जब अशोक तंवर कांग्रेस में वापस आ चुके हैं तो सबसे बड़ा सवाल यही पूछा जा रहा है कि पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा क्या इससे नाराज हैं?
निश्चित रूप से अशोक तंवर का अचानक पाला बदलना हरियाणा की राजनीति में एक बड़ा घटनाक्रम है। कांग्रेस में वापस शामिल होने से एक घंटा पहले तक अशोक तंवर हरियाणा में बीजेपी के लिए प्रचार कर रहे थे।
अशोक तंवर के कांग्रेस में शामिल होने की जो तस्वीरें और वीडियो सामने आए हैं, उनसे यह सवाल बार-बार खड़ा हो रहा है कि क्या भूपेंद्र सिंह हुड्डा कांग्रेस नेतृत्व के द्वारा तंवर को वापस लिए जाने के फैसले से नाखुश हैं? यह खबर सामने आ चुकी है कि अशोक तंवर को कांग्रेस में शामिल कराए जाने की जानकारी पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा को भी नहीं थी और तंवर सीधे राहुल गांधी, कांग्रेस महासचिव (संगठन) केसी वेणुगोपाल के संपर्क में थे।
हालांकि मंच पर राहुल गांधी मौजूद थे और इस वजह से भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने पटका पहनाकर तंवर का स्वागत किया लेकिन इस दौरान हुड्डा और तंवर की नज़रें नहीं मिलीं और नमस्कार भी काफी दूर से हुआ। निश्चित रूप से दोनों के बीच गर्मजोशी जैसी कोई बात नहीं थी और इससे संकेत यही मिला कि भूपेंद्र सिंह हुड्डा तंवर के कांग्रेस में वापस आने से खुश नहीं हैं।
हुड्डा और तंवर में था 36 का आंकड़ा
हुड्डा हरियाणा कांग्रेस में सबसे बड़े नेता हैं और इससे बड़ी बात यह है कि जब अशोक तंवर हरियाणा कांग्रेस के अध्यक्ष थे तो उनका भूपेंद्र सिंह हुड्डा के साथ 36 का आंकड़ा था। हुड्डा और तंवर के समर्थकों में कई बार मारपीट भी हो चुकी थी। हुड्डा और तंवर की जबरदस्त लड़ाई हरियाणा कांग्रेस में चर्चा का विषय रही थी।
राहुल ने बढ़ाया था तंवर को आगे
अशोक तंवर को कांग्रेस में राहुल गांधी ने ही आगे बढ़ाया था। राहुल गांधी ने ही तंवर को भारतीय युवा कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने के साथ ही सिरसा से टिकट देकर लोकसभा भी पहुंचाया था। साल 2014 में हुड्डा के विरोध के बावजूद तंवर को प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष जैसी बड़ी कुर्सी दी गई थी। तंवर 5 साल तक इस पद पर रहे थे लेकिन भूपेंद्र सिंह हुड्डा की सियासी ताकत और मजबूत समर्थकों की वजह से वह अपनी कार्यकारिणी तक गठित नहीं कर पाए थे। 2019 में विधानसभा चुनाव के दौरान उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी थी। इससे पहले कांग्रेस ने भी उन्हें प्रदेश अध्यक्ष के पद से हटा दिया था। इसके बाद अशोक तंवर टीएमसी, आम आदमी पार्टी, बीजेपी में अपना राजनीतिक सफर पूरा करते हुए वापस कांग्रेस में लौट आए हैं।
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हरियाणा के राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि विधानसभा चुनाव में कांग्रेस सरकार बना सकती है। कांग्रेस की सरकार बनने की सूरत में भूपेंद्र सिंह हुड्डा मुख्यमंत्री पद के सबसे बड़े दावेदार हैं। हुड्डा की उम्र ज्यादा होने की वजह से अगर कांग्रेस नेतृत्व किसी और नेता को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला करता है तो भी हुड्डा की रजामंदी और उन्हें भरोसे में लिए बिना किसी और नेता को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठाना कांग्रेस हाईकमान के लिए आसान नहीं होगा।
तंवर दलित समुदाय से आते हैं और इसी तरह हरियाणा कांग्रेस की एक और बड़ी नेता और सिरसा की सांसद कुमारी सैलजा भी दलित समुदाय से आती हैं। इन दोनों नेताओं की भूपेंद्र सिंह हुड्डा के साथ बिलकुल नहीं बनती। कुमारी सैलजा तो पिछले महीने कई दिनों तक चुनाव प्रचार में से दूर रही थीं। वह विधानसभा चुनाव में टिकट बंटवारे में भूपेंद्र सिंह हुड्डा के गुट को तवज्जो देने से नाराज थीं।
कुमारी सैलजा लोकसभा चुनाव के बाद से ही कई बार मुख्यमंत्री बनने की अपनी सियासी इच्छा को खुलकर जाहिर कर चुकी हैं।
राहुल गांधी ने हरियाणा में चुनाव प्रचार के दौरान भूपेंद्र सिंह हुड्डा और कुमारी सैलजा के हाथ मिलाकर यह संदेश देने की कोशिश की कि पार्टी के दिग्गज नेताओं के बीच रिश्ते सामान्य हैं लेकिन हरियाणा की राजनीति की समझ रखने वाले इस बात को जानते हैं कि ऐसा बिलकुल भी नहीं है। हरियाणा कांग्रेस में हुड्डा का वर्चस्व साफ दिखाई देता है। हुड्डा के विरोधी नेताओं को जिनमें गुरुग्राम के सांसद और केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह, राज्यसभा सांसद किरण चौधरी, हिसार के पूर्व सांसद कुलदीप बिश्नोई सहित कई नेताओं को पार्टी छोड़कर जाना पड़ा।
तंवर को मिलेगी काम करने की आजादी?
अशोक तंवर लोकसभा चुनाव से ठीक पहले बीजेपी में शामिल हुए थे और पार्टी ने उन्हें सिरसा से लोकसभा का उम्मीदवार बनाया था। इसके लिए पार्टी ने मौजूदा सांसद सुनीता दुग्गल का टिकट काट दिया था। चुनाव में तंवर को कुमारी सैलजा से करारी हार मिली थी। तंवर की हार का अंतर 2.68 लाख वोटों का रहा था। निश्चित रूप से बीजेपी में लोकसभा का टिकट मिलने के बाद भी अगर अशोक तंवर ने पलटी मारी है तो यह माना जाना चाहिए कि कांग्रेस ने उनसे कोई बड़ा वादा जरूर किया होगा लेकिन हुड्डा और तंवर के पुराने रिश्तों को देखते हुए नहीं कहा जा सकता कि तंवर को हरियाणा कांग्रेस में काम करने की आजादी मिलेगी। हुड्डा की वजह से ही तंवर को कांग्रेस छोड़नी पड़ी थी।
इन सब बातों के बीच यह कहना जरूरी होगा कि अगर राज्य में कांग्रेस सरकार बनाने में कामयाब रहती है तो भूपेंद्र सिंह हुड्डा का खेमा निश्चित रूप से सबसे मजबूत बनकर उभरेगा। ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि 90 सीटों वाली हरियाणा की विधानसभा में 72 से 75 टिकट हुड्डा के करीबियों और समर्थकों को दिए गए हैं। मुख्यमंत्री पद के लिए भूपेंद्र सिंह हुड्डा बिल्कुल भी पीछे नहीं हटेंगे।
कांग्रेस नेतृत्व बहुमत मिलने की सूरत में हुड्डा को दरकिनार करने का जोखिम नहीं उठाएगा। साथ ही तंवर को कोई बड़ा पद देना भी कांग्रेस नेतृत्व के लिए संभव नहीं होगा क्योंकि ऐसे में पहले उसे भूपेंद्र सिंह हुड्डा को मनाना पड़ेगा।