जननायक के नाम से मशहूर कर्पूरी ठाकुर की जयंती 24 जनवरी को मनाई जाती है। वैसे उनकी वास्तविक जन्‍मत‍िथ‍ि क‍िसी को नहीं मालूम, क्‍योंक‍ि उन दिनों जन्‍मद‍िन मनाने या याद रखने की परंपरा नहीं थी। उस समाज (नाई) में तो ब‍िल्‍कुल नहीं, ज‍िसमें कर्पूरी ठाकुर का जन्‍म हुआ था। स्‍कूल के दस्‍तावेज में उनकी जन्‍मत‍िथ‍ि 24 जनवरी, 1924 दर्ज है।

ठाकुर 1952 से ताउम्र (17 फरवरी, 1988) व‍िधायक या सांसद रहे। वह जीनव में सिर्फ एक चुनाव हारे, वह था 1984 का लोकसभा चुनाव। ठाकुर दो बार मुख्‍यमंत्री, एक बार उप मुख्‍यमंत्री और कई बार नेता प्रत‍िपक्ष रहे। वह पहली बार 24 जून 1977 को बिहार के मुख्यमंत्री बने थे।

सफाई कर्मचारी को दी मुखाग्नि

साल 2017 में जननायक कर्पूरी ठाकुर स्मृति-ग्रंथ समिति, कर्पूरीग्राम (समस्तीपुर) ने कर्पूरी ठाकुर के अप्रकाशित एवं अप्रचारित जीवन वृत्त से आम जनता को परिचित कराने के उद्देश्य से एक स्मृति-ग्रंथ प्रकाशित किया था। इस स्मृति-ग्रंथ की भूमिका राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश ने लिखी है।

कर्पूरी ठाकुर के स्मृति-ग्रंथ में मो. अबिद हुसैन ने ‘जननायक’ के कई किस्सों को लिखा है। एक किस्सा दलित सफाई कर्मी की मौत का भी है। साल 1977 की बात है। तब ठाकुर मुख्यमंत्री थे। उन्हीं दिनों नगर निगम के एक सफाई कर्मचारी ठकैता डोम की पुलिस हिरासत में हत्या कर दी गई। कर्पूरी ठाकुर की खासियत थी वह कि गरीब-गुरबों पर कहीं भी जुल्म होता था, तो तुरंत पहुंचते थे।

जब उन्हें पुलिस हिरासत में सफाई कर्मचारी की मौत का पता चला, तब उन्होंने ऐसा ही किया। ठाकुर को पता चला था कि ठकैत डोम औलाद से महरूम हैं। उन्हें कोई मुखाग्नि देने वाला नहीं है। इस सूचना ने ठाकुर को भावुक कर दिया। उनकी आंखें भर आईं। वह बेहिचक आगे ठकैता डोम के गांव पहुंचे और उनके शव को मुखाग्नि दी। इसके साथ ही उन्होंने मामले की लीपापोती किए बिना पुलिस की गलती मानी और अपनी सरकार की नाकामी को स्वीकार किया।

गरीबों को मुफ्त बंदूक देना चाहते थे कर्पूरी ठाकुर

अबिद हुसैन के मुताबिक, “मुख्यमंत्री की हैसियत से कर्पूरी ठाकुर ने गरीब-गुरबों को मुफ्त बंदूकें देने की घोषणा कर दी थी। उनका तर्क था कि जब सामंतों के पास बंदूकें हैं तो गरीब-गुरबों के पास क्यों न रहे? गरीब-गुरबों को मुफ्त बंदूकें देने की उनकी दिली ख्वाहिश थी ही।” कर्पूरी की इस घोषणा के बाद सामंती मानसिकता के लोगों ने अपना दुश्मन मान लिया। सामंतों द्वारा इस तरह की घृणा शायद ही किसी समाजवादी लीडर को मिला हो।

जब मुख्यमंत्री के पिता का सामंतों ने किया अपमान

लेखक, साहित्यकार और बिहार विधान परिषद के सदस्य रहे प्रेमकुमार मणि अपने एक लेख में बताते हैं कि एक बार गांव के कुछ सामंतों ने कर्पूरी ठाकुर के मुख्यमंत्री रहते उनके पिता को अपमानित किया था। घटना की जानकारी मिलते ही डीएम ने आरोपियों पर कार्रवाई की ठानी। लेकिन कर्पूरी ठाकुर ने उन्हें रोक दिया।

प्रेमकुमार मणि के मुताबिक, ठाकुर ने कहा, “यह एक गांव की बात नहीं थी। गांव-गांव में ऐसा हो रहा था। वह ऐसे उपाय करना चाहते थे कि सामंतवाद की जड़ें सूख जाएं।”

7वीं क्‍लास तक खाली पैर चार मील पैदल चलकर स्कूल जाते थे कर्पूरी ठाकुर

कर्पूरी ठाकुर का जन्‍म समस्‍तीपुर के ही प‍ितौंझ‍िया गांव (अब कर्पूरी ग्राम) में हुआ था। वह 1942 में कॉलेज की पढ़ाई छोड़ कर गांधी जी के आह्वान पर भारत छोड़ो आंदोलन में कूद पड़े थे। वह 1952 से ताउम्र (17 फरवरी, 1988) व‍िधायक या सांसद रहे थे। इस दौरान दो बार मुख्‍यमंत्री, एक बार उप मुख्‍यमंत्री और कई बार नेता प्रत‍िपक्ष रहे।

कर्पूरी ठाकुर के दादा का नाम प्‍यारे ठाकुर और पिता का नाम गोकुल ठाकुर था। उनकी मां रामदुलारी देवी थीं। आठ भाई-बहनों में कर्पूरी ठाकुर सबसे बड़े थे। उनके छोटे भाई का नाम रामस्‍वारथ ठाकुर था। उनकी बहनें थीं- गाल्‍हो, सिया, राजो, सीता, पार्वती और शैल। कर्पूरी ठाकुर के दो बेटे और एक बेटी हैं। कर्पूरी ठाकुर के बड़े बेटे हैं रामनाथ ठाकुर (जदयू सांसद) और छोटे का नाम है डॉ. वीरेंद्र। उनकी बेटी का नाम रेणु और दामाद डॉ. रमेश चंद्र शर्मा हैं।

गरीबी का आलम यह था क‍ि 1935 में जब कर्पूरी ठाकुर समस्‍तीपुर के एक स्‍कूल में सातवीं क्‍लास में पढ़ने गए, तब तक उन्‍होंने कभी जूता या चप्‍पल नहीं पहना था। रोज चार मील पैदल चल कर स्‍कूल जाते और शाम को घर लौटते। 1940 में मैट्र‍िक पास करने के बाद दरभंगा के सीएम कॉलेज में दाख‍िला ल‍िया। तब भी पर‍िवार गरीब ही था और उन्‍हें जूते-चप्‍पल या अच्‍छे कपड़े तब भी नसीब नहीं होते थे।

1977 में 24 जून को जब कर्पूरी ठाकुर मुख्‍यमंत्री बने तो वह सांसद थे। उन्‍होंने सत्‍येंद्रनारायण स‍िंह की दावेदारी को पीछे छोड़ मुख्‍यमंत्री का पद जीता था। छह महीने के भीतर व‍िधानसभा जाने के ल‍िए उन्‍होंने यादव बहुल फुलपरास सीट से चुनाव लड़ा। वहां व‍िरोध में यादव उम्‍मीदवार उतारे जाने के बावजूद वह 60000 से ज्‍यादा वोट से चुनाव जीते।

18 महीने के कार्यकाल में कर्पूरी ठाकुर ने ह‍िंदी पर जोर द‍िया। मैट्र‍िक पास करने के ल‍िए अंग्रेजी में पास होने की अन‍िवार्यता खत्‍म कर दी। मैट्र‍िक तक की पढ़ाई न‍ि:शुल्‍क कर दी। पांच हजार बेरोजगारों को एक साथ नौकरी दी। सरकार नौकर‍ियों में प‍िछड़ी जात‍ियों को 26 फीसदी आरक्षण द‍िया।