रविवार को राज्यों के बार काउंसिल के साथ एक संयुक्त बैठक में बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) ने एक प्रस्ताव पारित किया। प्रस्ताव में सुप्रीम कोर्ट से समलैंगिक विवाह के मुद्दे को विधायिका पर छोड़ देने का अनुरोध किया गया है।
बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने अपने प्रस्ताव में कहा है कि वह संयुक्त बैठक में सर्वसम्मत से इस राय पर पहुंची हैं कि समलैंगिक विवाह के मुद्दे की संवेदनशीलता को देखते हुए न्यायपालिका इसे विधायिका पर छोड़ दे।
बार काउंसिल ऑफ इंडिया का तर्क है कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष इस मामले के लंबित होने की जानकारी पाकर देश का प्रत्येक जिम्मेदार और विवेकशील नागरिक अपने बच्चों के भविष्य को लेकर चिंतित है।
99.9% लोग खिलाफ
बीसीआई अपने सोर्स का खुलासा किए बिना यह दावा किया है कि देश के अधिसंख्य लोग समलैंगिक विवाह के विरुद्ध हैं। उन्होंने प्रस्ताव में कहा है कि समलैंगिक विवाह के मामले पर बार काउंसिल ऑफ इंडिया का कहना है कि हमारे देश में 99.9% से अधिक लोग ‘सेम सेक्स मैरिज के विचार’ का विरोध करते हैं। इसलिए बीसीआई व्यापक प्रसार परामर्श के लिए सेम सेक्स मैरिज के मुद्दे को विधायी प्रक्रिया पर छोड़ने के लिए सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध करने का संकल्प लेती है।
BCI का तर्क है कि विधायिका “लोगों की इच्छा को दर्शाती है” इसलिए वही इस मुद्दे से निपटने के लिए सबसे उपयुक्त है।
‘याचिकाकर्ताओं के पक्ष में फैसला देश की संस्कृति के खिलाफ माना जाएगा’
बार काउंसिल ऑफ इंडिया के प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है, “विशाल बहुमत का मानना है कि इस मुद्दे पर याचिकाकर्ताओं के पक्ष में सर्वोच्च न्यायालय के किसी भी फैसले को हमारे देश की संस्कृति और सामाजिक-धार्मिक संरचना के खिलाफ माना जाएगा। बार आम आदमी का मुखपत्र है और इसलिए यह बैठक इस अति संवेदनशील मुद्दे पर उनकी चिंता व्यक्त कर रही है। संयुक्त बैठक का स्पष्ट मत है कि यदि माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में कोई लापरवाही दिखाई तो इसका परिणाम आने वाले दिनों में हमारे देश के सामाजिक ढांचे को अस्थिर करने वाला होगा। माननीय सर्वोच्च न्यायालय से अनुरोध किया जाता है और देश के लोगों की भावनाओं और जनादेश की सराहना और सम्मान करने की अपेक्षा की जाती है।”
विज्ञप्ति में आगे कहा गया है, “इस तरह के संवेदनशील मामले में शीर्ष अदालत का कोई भी फैसला हमारे देश की आने वाली पीढ़ी के लिए बहुत हानिकारक साबित हो सकता है। यह मुद्दा ‘अत्यधिक संवेदनशील’ है, सामाजिक-धार्मिक समूहों सहित समाज के विभिन्न वर्गों द्वारा इस पर टिप्पणी की गई है और इसकी आलोचना की गई।”
कौन पक्ष-कौन विपक्ष?
संवैधानिक पीठ में मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस एस रवींद्र भट्ट, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस हिमा कोहली शामिल हैं। करीब 20 याचिकाएं हैं। मुख्य याचिका हैदराबाद के गे कपल सुप्रिया चक्रवर्ती और अभय डांग की है।
उच्चतम न्यायालय में याचिकाकर्ताओं का पक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी, वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी, मेनका गुरुस्वामी, वकील अरुंधति काटजू आदि रख रहे हैं।
वहीं केंद्र सरकार समलैंगिक विवाह के विपक्ष में दलील दे रही है। कोर्ट में केंद्र का पक्ष सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता रख रहे हैं। जमीयत उलेमा-ए-हिंद, केरल कैथोलिक बिशप्स काउंसिल, समेत तमाम दूसरे धार्मिक संगठन भी समलैंगिक विवाह के खिलाफ बहस कर रह हैं।
समलैंगिक विवाह सभ्यता के लिए घातक- VHP
विश्व हिंदू परिषद भी समलैंगिक विवाह को कानून मान्यता दिए जाने के खिलाफ है। वीएचपी ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा है, “समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के लिए माननीय सर्वोच्च न्यायालय में दायर की गई याचिका को निपटाने के लिए जिस प्रकार की जल्दबाजी माननीय सुप्रीम कोर्ट के द्वारा की जा रही है, वह किसी भी तरह से उचित नहीं है। यह नए विवादों को जन्म देगी और भारत की संस्कृति के लिए घातक सिद्ध होगी।”
बार काउंसिल ऑफ इंडिया क्या है?
बार काउंसिल ऑफ इंडिया एक सांविधिक निकाय है। इसे वकालत को विनियमित तथा प्रतिनिधित्व प्रदान करने के लिये द एडवोकेट्स एक्ट, 1961 के तहत बनाया गया था। इस संस्था पर कई तरह की जिम्मेदारी है।
यही संस्था तय करती है कि अधिवक्ताओं का पेशेवर आचरण कैसा होना चाहिए। इसे द्वारा तय मानक पर वकीलों को खड़ा उतरना होता है। बीसीआई अपने अधिवक्ताओं के अधिकारों और हितों की रक्षा के लिए खड़ा रहता है। इसके अलावा बीसीआई का एक अन्य काम कानून शिक्षा का मानक तय करना भी है। साथ ही ऐसे विश्वविद्यालयों को मान्यता देना है, जो कानून की डिग्री देते हैं।