शिवसेना संस्थापक बाल ठाकरे के पिता प्रबोधनकार ठाकरे महाराष्ट्र में गैर-ब्राह्मण आंदोलन के अग्रणी नेताओं में से एक नेता था। बचपन से ही उनके भीतर अन्याय और छुआछूत के खिलाफ विद्रोह की भावना थी। बाल विवाह के खिलाफ तो उन्होंने बचपन में ही बड़ा कदम उठा लिया था।

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दरअसल, प्रबोधनकार ठाकरे की बचपन की दोस्त संजू के परिवार वालों ने उसकी शादी 65 साल के निलोबा तालोजकर से तय कर दी थी। संजू तब सिर्फ 10 साल की थी। प्रबोधनकार अपनी दोस्त के बाल विवाह से इस कदर नाराज थे कि उन्होंने विवाह वाले दिन पंडाल में आग लगा दिया।

प्रबोधनकार जाति व्यवस्था, ब्राह्मणवाद और अन्य सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ अभियान चलाया करते थे। इस बात से नाराज रूढ़िवादी ब्राह्मण उन्हें तरह-तरह से परेशान करते थे। बाल ठाकरे ने खुद एक सार्वजनिक सभा में कहा था कि रूढ़िवादी ब्राह्मण मेरे पिता के लेखन से इतने चिढ़े रहते थे कि कभी उनके घर के सामने मृत गधे की लाश डलवा दिया करते, तो कभी पिता की झूठ-मूठ की शवयात्रा निकाला करते थे। बता दें कि प्रबोधनकार ठाकरे ने करीब 25 किताबें लिखी थीं।

गणेश उत्सव का आयोजन हुआ बंद  

महाराष्ट्र में गणेश उत्सव का अपना इतिहास है। उसे भारतीय स्वाधीनता संग्राम से भी जोड़ा जाता है। लेकिन प्रबोधनकार द्वारा गणेश उत्सव बंद कराने की घटना आजादी से बहुत पहले की है। तब गणेश उत्सव के लिए चंदा तो सभी ले लिया जाता था लेकिन आयोजन समिति में ब्राह्मणों का वर्चस्व होता था। तब डॉ अम्बेडकर इसका विरोध कर रहे थे।

ठाकरे परिवार पर लिखी पत्रकार धवल कुलकर्णी की किताब ‘ठाकरे भाऊ’ से पता चलता है कि साल 1926 में प्रबोधनकार ठाकरे ने गणेश उत्सव के तत्कालीन स्वरूप के खिलाफ विद्रोह छेड़ दिया था। प्रबोधनकार अपने साथी समाज सुधारक सीताराम केशव बोले के साथ दादर पुल के नीचे बने पंडाल में पहुंचे। वहां उन्होंने धमकी दी कि अगर अछूत हिंदुओं को 3 बजे तक मूर्ति पूजा की अनुमति नहीं गई तो वे इसको नष्ट कर देंगे।

फिर समझौता हुआ। अंबेडकर के करीबी सहयोगी गणपत महादेव को अनुमति मिली कि वह ब्राह्मण पुजारी को मूर्ति पर चढ़ाने के लिए फूल दें। लेकिन इस विद्रोह से रूढ़िवादी ब्राह्मण भड़क गए और घोषणा कर दी गई कि आगे से यह उत्सव नहीं मनाया जाएगा। इस तरह महाराष्ट्र में लंबे समय तक प्रबोधनकार के विद्रोह के कारण गणेश उत्सव का आयोजन बंद रहा। प्रबोधनकार ने गणेश उत्सव की जगह नवरात्रि मनाने की शुरुआत की थी, जिसमें सभी भाग लिया करते थे।