शिवसेना संस्थापक (Shiv Sena) बाल केशव ठाकरे (Bal Keshav Thackeray) के निधन (17 नवंबर, 2012) के एक दशक बाद उनकी पार्टी में अनुशासन को लेकर अंगुली उठने लगी है। लेकिन, बाल ठाकरे जब तक रहे, उन्होंने अनुशासनहीनता बर्दाश्त नहीं की। कहा जाता है कि पार्टी के खिलाफ जाने वालों से वह किसी हद तक सख्ती करने से गुरेज नहीं करते थे।
गद्दारों की सजा मौत
बाल ठाकरे के जमाने में शिवसेना नेता खुले आम गद्दारी की सजा मौत बताया करते थे। ऐसा ही एक वाकया 1989 का है। इसका जिक्र धवल कुलकर्णी की किताब ‘ठाकरे भाऊ’ में है।
क्या था वाकया
मार्च 1989 की बात है। ठाणे से शिवसेना के उम्मीदवार प्रकाश परांजपे मेयर का चुनाव हार गए थे। कांग्रेस उम्मीदवार मनोहर साल्वी की जीत हुई थी। कहा गया कि मेयर और उप मेयर के चुनाव में कम से कम शिवसेना के दो पार्षदों ने कांग्रेस को वोट दिया है।
एक उद्घोष और हत्या
इसकी जानकारी होते ही बाल ठाकरे ने उद्घोष किया कि गद्दारों को सबक सिखाया जाए। इसके बाद ठाणे क्षेत्र के शिवसेना प्रधान आनंद दिघे ने बयान जारी कर कहा कि गद्दारों की सजा मौत है। 21 अप्रैल 1989 को ठाणे में ही शिवसेना पार्षद श्रीधर खोपकर की दिनदहाड़े हत्या कर दी गई।
शिकारी का हुआ शिकार?
पुलिस ने इस मामले में अन्य लोगों के साथ-साथ आनंद दिघे को भी गिरफ्तार किया। उन पर टाडा की गंभीर धाराएं लगाई गईं। ठाणे के तत्कालीन पुलिस कमिश्नर रामदेव त्यागी ने आरोप लगाया कि खोपकर की हत्या के लिए शिवसेना जिम्मेदार है।
लेकिन इस मामले में आश्चर्यजनक मोड़ तब आया, जब साल 2001 में दिघे की मौत एक सड़क दुर्घटना में हो गई। इस दुर्घटना को तब बहुत संदेहास्पद माना गया। ऊंगली शिवसेना प्रमुख की तरफ भी उठी। लेकिन कुछ साबित नहीं हो पाया।
राण ने बाल ठाकरे को ठहराया जिम्मेदार
बाल ठाकरे की मौत के करीब सात साल बाद जनवरी 2019 में शिवसेना के बागी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री नारायण राणे के बेटे निलेश राणे ने आरोप लगाया कि दिघे की मौत के लिए बाल ठाकरे जिम्मेदार थे। उन्होंने हत्या को इस तरह दिखाया, जैसे सड़क दुर्घटना के बाद इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई हो।
शिवसेना, राजनीति और हिंसा
शिवसेना का राजनीतिक इतिहास हिंसा के आरोपों से भरा हुआ है। मराठी माणूस और हिंदुत्व की राजनीति कर महाराष्ट्र में अपनी पकड़ बनाने वाली शिवसेना पर हत्याओं, धमकियों, दंगों और तोड़फोड़ के अनेकों आरोप लगते रहे हैं। बाल ठाकरे इन आरोपों के केंद्र में हुआ करते थे। ऐसा दावा किया जाता है कि उनके एक इशारे पर शहर थम जाता था। कई मौकों पर वह अपने इस विवादास्पद कद्दावर व्यक्तित्व को स्वीकार भी करते थे।
चुनाव लड़े बिना भी हमेशा पावरफुल रहे थे बाल ठाकरे
बाल ठाकरे का निधन 86 साल की उम्र में 17 नवंबर, 2012 को हुआ था। महाराष्ट्र की राजनीति में खासा दबदबा रखने वाले बाल ठाकरे ने अपने करियर की शुरुआत एक पेशेवर कार्टूनिस्ट के तौर पर की थी। बाद में वह शिवसेना बनाकर राजनीति में आए। हालांकि उन्होंने कभी चुनाव नहीं लड़ा। न ही सरकार में कभी कोई पद लिया। बावजूद इसके अपने बेपरवाह अंदाज से वह भारतीय राजनीति के प्रमुख चेहरों की सूची में जगह पाते रहे और अक्सर विवादों में भी रहे।