Ayodhya Ram Mandir Inauguration 2024: अयोध्या में निर्माणाधीन राम मंदिर के गर्भगृह का काम तेजी से चल रहा है। श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के मुताबिक, 22 जनवरी को प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम होना है। कार्यक्रम में शामिल होने के लिए ट्रस्ट ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत देश-विदेश के मेहमानों को न्योता दिया है।

मीडिया में राम मंदिर से जुड़ी खबरें छाई हुई हैं। दिलचस्प है कि जब इस मंदिर की कल्पना करते हुए 6 दिसंबर, 1992 को बाबरी मस्जिद को गिराया जा रहा था, तब अयोध्या में मीडिया से जमकर दुर्व्यवहार हुआ था। पत्रकारों के कैमरे तोड़ दिए गए थे, उन्हें पीटा गया था, किसी को मारने की योजना बनाई जा रही थी तो कुछ को बंदी बना लिया गया था।

बीबीसी की एक रिपोर्ट में पत्रकार राजेंद्र कुमार बताते हैं कि जब उन्होंने फोटो खींचने की कोशिश की थी तो कारसेवकों ने उन्हें बुरी तरह पीटा था। पिटाई से उनका जबड़ा टूट गया। तब राजेंद्र कुमार राष्ट्रीय सहारा में काम करते थे। जनमोर्चा की पत्रकार सुमन गुप्ता दावा करती हैं कि रिपोर्टिंग के दौरान उन्हें चाकू मारने की कोशिश की गई थी। उनके कपड़े फट गए थे। वह कार की डिक्की में छिपकर वहां से भागी थीं।

तीन दशक पहले 6 दिसंबर के विध्वंस को संभवत: सबसे पहले रिपोर्ट करने वाले बीबीसी के पत्रकार मार्क टुली ने ‘हफपोस्ट’ को दिए एक इंटरव्यू में उस दिन के पूरे घटनाक्रम का विवरण दिया है। तब मार्क टुली बीबीसी रेडियो के भारत और साउथ एशिया ब्यूरो के प्रमुख हुआ करते थे।

बीबीसी की एक गलती और मीडिया के खिलाफ माहौल

मार्क टुली बाबरी विध्वंस की घटना से एक दिन पहले अयोध्या पहुंचे थे। तब तक विवादित स्थल के आसपास विशाल शिविर लगाए जा चुके थे। इंटरव्यू में बीबीसी के पत्रकार बताते हैं, “मुझे पता चला कि वहां लोग मीडिया पर भड़के हुए हैं। बीबीसी से उन्हें खास नाराजगी थी। कुछ दिन पहले बीबीसी ने दंगे की एक खबर दिखाई थी, जिसमें आर्काइव फुटेज का इस्तेमाल किया गया था। लेकिन यह बात स्पष्ट नहीं किया गया था कि फुटेज पुरानी है। तो ऐसा लग रहा था मानो हालिया दंगे की फुटेज है। यही वजह थी कि प्रेस, विशेषकर बीबीसी के प्रति काफी दुर्भावना थी।” मार्क टुली मानते हैं कि आर्काइव फुटेज वाले मामले में बीबीसी से गलती हो गई थी।

मीडिया के खिलाफ माहौल को देखकर मार्क टुली ने भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी को खोजना शुरू किया। जब वह नहीं मिले तो टुली ने आरएसएस के एक नेता से कहा कि यह बहुत खतरनाक है। आपके लोग प्रेस को धमकी दे रहे हैं। इससे परेशानी हो सकती है।

एक दिन पहले ही आडवाणी ने टुली से कहा था कि “आरएसएस एक अनुशासित संगठन है। हमने सुप्रीम कोर्ट से वादा किया है कि कुछ नहीं होगा।” बीबीसी के पत्रकार ने संघ के व्यक्ति को यह बात भी बताई।

मार्क टुली ने छह दिसंबर की सुबह में जो रिपोर्ट भेजी, उसमें यह नहीं बताया था कि कुछ बुरा होने वाला है। लेकिन दोपहर तक दृश्य बदल गया।

डाकघर से भेजी बाबरी विध्वंस की खबर

मार्क टुली फैजाबाद से अयोध्या पहुंचे तो देखा कि सब कुछ शुरू हो रहा है। टुली बताते हैं, “मैं उस इमारत में था जहां समारोह होने वाला था। हमने समारोह शुरू होते देखा। समारोह स्थल पर केसरिया पट्टी बांधे हुए बहुत सारे युवक थे। वे लोगों को अंदर आने से रोकने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन अचानक भीड़ बैरियर तोड़कर अंदर घुस आई। हमने देखा कि जहां हम थे, वहां बाईं ओर से लोगों की एक भीड़ मस्जिद की ओर बढ़ रही थी। हमने उन्हें पहले पुलिस बैरियर को तोड़ते हुए देखा। पुलिस उनका बिल्कुल भी विरोध करती नजर नहीं आई।”

बीबीसी पत्रकार आगे बताते हैं, “ये लोग पूरी मस्जिद में इकट्ठा होने लगे। वहां कोई टेलीफोन तार नहीं था। सबकुछ बंद कर दिया गया था। भीड़ बढ़ती जा रही थी। वे प्रेस को पीट रहे थे, लोगों के कैमरे तोड़ रहे थे और स्टोरी को बाहर आने से रोकने की कोशिश कर रहे थे। मैं अपने दफ्तर की कार में बैठा और स्टोरी को लंदन तक पहुंचाने के लिए फैजाबाद निकल गया। वहां एक डाकघर मिला, जिसमें पब्लिक फोन बूथ था। मैंने उस टेलीफोन से लंदन फोन कर बताया, “वे मस्जिद को गिरा रहे हैं। पुलिस भाग गई है। स्थिति पूरी तरह से नियंत्रण से बाहर है।”

जब मार्क टुली को त्रिशूल से मारने पर हुई चर्चा

खबर को लंदन पहुंचाने के बाद मार्क टुली एक बार फिर अयोध्या जाना चाहते थे। इस दौरान उनकी मुलाकात जनसत्ता के पत्रकारों समेत कुछ अन्य भारतीय पत्रकारों से हुई। ये सभी कार में बैठकर मस्जिद के बिल्कुल पास से निकल रहे थे, तभी कारसेवकों ने घेर लिया।

बीबीसी के पत्रकार बताते हैं, “वे मुझ पर चिल्लाने लगे। फिर, उन सब ने मुझे त्रिशूल से मारने पर चर्चा की। फिर, इस बात पर चर्चा हुई कि मुझे पीटा जाए या नहीं। उनमें से कुछ मुझे पीटना चाहते थे। लेकिन दूसरों ने कहा – नहीं, यह बहुत चर्चित है, इसे पीटना ठीक नहीं होगा। अंत में वे सब इस नतीजे पर पहुंचे कि मुझे कहीं बंद कर दिया जाए। वे मुझे मंदिर के धर्मशाला वाले हिस्से में ले गए और वहां एक कमरे में बंद कर दिया। अन्य पत्रकारों और उनके सहयोगियों को जाने के लिए कहा गया। लेकिन उन्होंने कहा कि वे तब तक नहीं जाएंगे, जब तक मुझे छोड़ा नहीं जाता। इसलिए कारसेवकों ने उन्हें भी बंद कर दिया।”

कैसे निकले बाहर?

मार्क टुली के मुताबिक, “लगभग सारे पुलिस वाले चले गए थे। तभी वहां एक एसडीएम रैंक का अधिकारी पहुंचा। उसने सुना कि हमें बंद कर दिया गया है। वह दूसरे मंदिर में गया और मंदिर के महंत से हम लोगों को बाहर निकालने को कहा। हमें बाहर निकाल दिया गया और दूसरे मंदिर में ले जाया गया। आखिरकार, सीआरपीएफ की एक बड़ी लॉरी आयी। जो भी मीडिया वाले इधर-उधर छिपे हुए थे, वे सभी एकत्र हो गए और लॉरी में चढ़ गए। हम सभी को सीआरपीएफ ने बाहर निकाला।”