लोकसभा चुनाव 2024 के बाद भारत में बनी 18वीं लोकसभा में सांसदों की औसत उम्र बढ़कर 56 साल हो चुकी है। संसद के बजट सत्र के बाद भारत में नेताओं और जनता की औसत उम्र एक चर्चा का मुद्दा बन गई है।
राज्यसभा में आम आदमी पार्टी के सांसद राघव चड्ढा ने बृहस्पतिवार को यह मांग उठाई कि चुनाव लड़ने की उम्र घटाकर 25 से 21 साल कर दी जानी चाहिए जबकि कांग्रेस के सांसद शशि थरूर ने एक प्राइवेट मेंबर बिल पेश किया और इसमें मांग की कि लोकसभा में 10 सीटें 35 साल से कम उम्र के सांसदों के लिए आरक्षित कर दी जाएं।
राघव चड्ढा ने राज्यसभा में अपनी बात रखते हुए कहा कि हमारी आबादी के 65% लोगों की उम्र 35 साल से नीचे है और 50% लोगों की उम्र 25 साल से नीचे है। उन्होंने कहा कि आजादी के बाद जब पहली लोकसभा के चुनाव हुए तो 26% सांसद ऐसे थे जिनकी उम्र 40 साल से नीचे थी लेकिन अब जब 18वीं लोकसभा का चुनाव हुआ है तो 40 साल से नीचे के सांसदों का आंकड़ा घटकर 12% हो गया है।

ऐसा पहली बार नहीं हुआ है, जब संसद में चुनाव लड़ने के लिए उम्र कम किए जाने का प्रस्ताव लाया गया है। पिछले साल अगस्त में कानून और न्याय से संबंधित संसद की एक स्थाई समिति ने भी विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए उम्र सीमा को 25 साल से घटाकर 18 साल करने की मांग की थी।
पहली लोकसभा में औसत उम्र थी 46.5 साल
1952 में जब पहली लोकसभा का गठन हुआ था तो यह अब तक की दूसरी सबसे युवा लोकसभा थी और इसमें सांसदों की औसत उम्र 46.5 साल थी। पहली लोकसभा के नाम यह रिकॉर्ड है कि इसमें 82 सांसद 40 साल या इससे कम उम्र के थे और कोई भी सांसद 70 साल से ज्यादा की उम्र का नहीं था।

लेकिन उसके बाद सांसदों की औसत उम्र लगातार बढ़ती गई है। 1998 में औसत उम्र घटकर 46.4 साल हो चुकी थी। 1999 के चुनाव के बाद और 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले सबसे ज्यादा औसत उम्र 55.5 साल थी। इस बार की लोकसभा में सांसदों की औसत उम्र का आंकड़ा इससे भी आगे पहुंच गया है।
18वीं लोकसभा में 35 साल से कम उम्र के सिर्फ 25 सांसद हैं और इनमें से केवल 7 सांसद 30 साल से नीचे हैं। इससे पहले 2019 में 35 साल से कम उम्र के सांसदों की संख्या 21 और 2019 में 22 थी।
पहली लोकसभा के बाद से ही 35 साल की उम्र या इससे कम उम्र के सांसदों की संख्या लगातार घटती जा रही है।

इसके उलट अगर देखें तो मौजूदा लोकसभा में 380 सांसद ऐसे हैं जो 51 साल के या इससे ज्यादा की उम्र के हैं। इनमें से 53 सांसद तो 71 साल से ज्यादा की उम्र के हैं और 161 सांसदों की उम्र 61 से 70 साल के बीच है।
18वीं लोकसभा में डीएमके के सांसद टीआर बालू की उम्र 82 साल है और वह अकेले ऐसे सांसद हैं जिनकी उम्र 80 साल से ज्यादा है। टीआर बालू तमिलनाडु की श्रीपेरंबदूर से चुनाव जीत कर लोकसभा पहुंचे हैं।

25 साल के हैं तीन सांसद
तीन लोकसभा सांसद ऐसे हैं जिनकी उम्र 25 साल है और यही लोकसभा का चुनाव लड़ने के लिए न्यूनतम उम्र है। इनमें समाजवादी पार्टी के टिकट पर उत्तर प्रदेश के मछली शहर सीट से चुनाव जीतीं प्रिया सरोज, उत्तर प्रदेश के कौशांबी से चुनाव जीते पुष्पेंद्र सरोज और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के टिकट पर बिहार के समस्तीपुर से चुनाव जीतीं शांभवी चौधरी का नाम शामिल है।
भारत का संविधान तैयार करने वाली संविधान सभा में हुई बहसों से पता चलता है कि आजादी के बाद भारत के कई नेता सांसद बनने के लिए उम्र की सीमा कम रखे जाने के पक्ष में थे। संविधान का अनुच्छेद 84 जो सांसदों के लिए एलिजिबिलिटी क्राइटेरिया को निर्धारित करता है, इसे डॉक्टर बीआर आंबेडकर के द्वारा संशोधन के रूप में संविधान सभा में पेश किया गया था।
इसके प्रावधानों में डॉ. आंबेडकर ने लोकसभा के लिए न्यूनतम आयु सीमा 25 साल रखे जाने की सिफारिश की थी जबकि राज्यसभा के लिए उन्होंने उम्र सीमा 35 साल रखे जाने की बात कही थी।
डॉ. आंबेडकर का कहना था कि सिर्फ 21 साल की उम्र होना ही संसद में जाने के लिए पर्याप्त नहीं है। हालांकि लोकसभा का सांसद बनने के लिए न्यूनतम उम्र की सीमा को स्वीकार कर लिया गया था लेकिन संविधान सभा के कई सदस्यों का कहना था कि राज्यसभा के मामले में 35 साल की उम्र का मानक बहुत ज्यादा है।

उम्र सीमा 30 साल से कम रखने की मांग
स्वतंत्रता सेनानी और सामाजिक कार्यकर्ता जी. दुर्गाबाई ने प्रस्ताव रखा था कि राज्यसभा का सांसद बनने के लिए उम्र सीमा 30 साल से कम रखी जानी चाहिए। उनका कहना था कि अकल उम्र पर निर्भर नहीं करती, हमारे लड़के और लड़कियां समय से पहले समझदार हो गए हैं और हमारा शैक्षणिक पाठ्यक्रम इतना व्यापक है कि यह उन्हें उनके नागरिक अधिकारों और जिम्मेदारियों के बारे में बेहतर ढंग से शिक्षित करेगा। इसलिए मेरा यह मानना है कि हमें युवाओं को सरकार के मामलों में प्रशिक्षित होने का एक मौका जरूर देना चाहिए।
शंकराचार्य का दिया था उदाहरण
स्वतंत्रता सेनानी और शिक्षाविद शिब्बन लाल सक्सेना ने उदाहरण देते हुए कहा था कि शंकराचार्य 22 साल की उम्र में ही विद्वान बन गए थे और अलेक्जेंडर द ग्रेट ने 25 साल की उम्र पूरी होने से पहले ही बड़ी जीत हासिल कर ली थी। उन्होंने कहा था कि 30 करोड़ की आबादी वाला हमारा देश 25 साल से कम उम्र में बड़े पदों पर बैठने के लिए जरूरी लोगों को सामने ला सकता है और उन्हें इस तरह के मौकों से वंचित नहीं किया जाना चाहिए।

डॉ. आंबेडकर ने तर्क दिया था कि राज्यसभा के लिए उम्र को कम करना उस प्रावधान के साथ गलत करना होगा जिसने उपराष्ट्रपति के लिए न्यूनतम आयु तय की है। उपराष्ट्रपति के लिए न्यूनतम आयु तब 35 वर्ष थी। हालांकि डॉ. आंबेडकर अंत में दुर्गाबाई के द्वारा 30 साल की उम्र को लेकर दिए गए संशोधन पर सहमत हो गए और इसे संविधान सभा ने भी स्वीकार कर लिया था।
इसके बाद दोनों सदनों के लिए 25 और 30 साल का मानक राज्यों की विधानसभाओं के लिए भी लागू कर दिया गया।