भारत के पूर्व प्रधानमंत्री और भाजपा के संस्थापक अटल बिहारी वाजपेयी स्कूल के दिनों में पढ़ाई में बहुत अच्छे नहीं थे। खासतौर पर उन्हें मैथ और साइंस पसंद नहीं था। एक बार वह एक टेस्ट में फेल भी हो गए थे। तब उनके सबसे बड़े भाई अवध बिहारी ने डांट लगाते हुए कहा था, ‘यदि तुम अभी फेल हो रहे हो, तो आगे जीवन का क्या करोगे?’
1938 में 8वीं तक की पढ़ाई पूरी होने के बाद, अटल ने ग्वालियर स्टेट मिडिल स्कूल की परीक्षा दी। वह थर्ड डिवीजन से पास हुए। हालांकि इसे एक प्रधानाध्यापक के बेटे का खराब प्रदर्शन माना गया। अटल सभी विषयों में पास हुए थे, लेकिन उन्हें एक भी डिस्टिंक्शन नहीं मिला था। हिंदी में भी नहीं।
अभिषेक चौधरी ने अटल बिहारी वाजपेयी की जीवनी ‘VAJPAYEE: The Ascent of the Hindu Right’ में बताया है कि औसत प्रदर्शन के बावजूद अटल बिहारी वाजपेयी को ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेजिएट हाई स्कूल (अब महारानी लक्ष्मीबाई कॉलेज) में प्रवेश मिल गया। अटल ने ग्रेजुएशन तक की पढ़ाई यहीं से की। उनके दाखिले से पहले पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी इसी स्कूल में पढ़ाया करते थे।
यह स्कूल ग्वालियर में सिंंधिया राजघराने की ओर से चलाया जाता था। यहां नौकरी पाने से पहले कृष्ण बिहारी वाजपेयी के दिन संघर्ष भरे ही बीते थे। उन्होंने आगरा और इटावा में कुछ काम किया था। टीचर बनने के कुछ ही समय बाद कृष्ण बिहारी की शादी हुई। जब उनके घर पहली संतान (अवध बिहारी – अटल बिहारी वाजपेयी के बड़े भाई) पैदा हुई तो उसकी कुंंडली देखते ही दादा श्यामलाल ने बेटे से कहा था- दुश्मन पैदा हुआ है, इससे तुम्हाराी पटेगी नहीं। लेकिन, जब कृष्ण बिहारी की पांचवी संतान पैदा हुई तो श्यामलाल ने कुंडली देखते ही कहा- सब ठीक है और पोते का नाम रखा- अटल।
बहन का पैर पकड़ घसीटा
हाईस्कूल में एडमिशन के बाद अटल को घर पर अधिक स्वतंत्रता मिल गई। पिता भिंड में रहने लगे थे। घर पर अविवाहित छोटी बहन कमला थी। अभिषेक चौधरी कमला के हवाले से ही लिखते हैं कि अटल अपनी छोटी बहन पर बहुत अधिकार जमाते थे। कमला को देर तक दरवाजे पर बैठना पसंद था। लेकिन अटल को यह नापसंद था। दरवाज़ा-दालान पर पुरुषों का विशेषाधिकार था। महिलाओं को आंगन से बाहर कदम नहीं रखना था।
कमला बताती हैं कि जैसे ही वह मुझे दरवाजे के पास देखते, अंदर जाने के लिए झिड़क देते। इस बात को लेकर हम अक्सर झगड़ते, फिर बात मां तक पहुंचती। एक बार तो उन्होंने मेरा पैर पकड़ मुझे घसीट दिया था। मैं बहुत देर तक रोई थी।
वामपंथी संगठन के संपर्क में आए
हाईस्कूल पहुंचने के बाद अटल को विज्ञान की किताबें पढ़ने की ज़रूरत नहीं थी। हालांकि गणित अनिवार्य विषय बना रहा। वह वाद-विवाद में बेहतर होते गए और हिंदी विभाग का प्रतिनिधित्व करते हुए कुछ पुरस्कार भी जीते।
अटल 1938 के अंत में शहर में आए एक नए समूह से परिचित हुए, जिसका नाम था- ऑल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन (SFI)। यह देश का पहला छात्र संगठन था। ग्वालियर में अपनी स्थापना के समय SFI में गांधीवादियों का वर्चस्व था, उसके बाद मार्क्सवादियों और समाजवादियों का वर्चस्व हो गया।
ऐसी विविध विचारधाराओं से परिचित होने पर अटल का वर्ल्ड व्यू व्यापक हुआ। हालांकि इस वजह से वह भ्रमित भी हुए। बाद में अटल ने हाई स्कूल की अपनी नासमझी पर शर्मिंदा होते हुए कहा था, “मैं आर्य समाज के विद्वानों के साथ-साथ, साम्यवादी विचारों और एक सर्वहारा क्रांति से भी प्रभावित होने लगा था।”
हाईस्कूल में किया खराब प्रदर्शन
अटल ने मार्च 1941 में हाई स्कूल की परीक्षा दी। अंग्रेजी और गणित अनिवार्य थे। वैकल्पिक विषयों के रूप में उन्होंने हिंदी, इतिहास और संस्कृत को चुना था। वह कक्षा के बाहर भी इन वैकल्पिक विषयों को पढ़ रहे थे और यह उनकी कविताओं में भी झलक रहा था। लेकिन पहले की ही तरह उन्होंने परीक्षा के दृष्टिकोण से पाठ्यक्रम का अच्छी तरह से अध्ययन नहीं किया। तीन महीने बाद परिणाम आए। अटल ने बोर्ड परीक्षा तो उत्तीर्ण कर ली थी, लेकिन सर्टिफिकेट में उनके नंबरों को अंडरलाइन कर लिखा था, With Distinction In Nil And Was Placed In The Second Division.
इसके बावजूद उन्हें 1941 की गर्मियों में चार साल के इंटीग्रेटेड इंटरमीडिएट एंड बैचलर डिग्री के लिए विक्टोरिया कॉलेज में प्रवेश मिल गया। यह ग्वालियर राज्य में उच्च शिक्षा का सबसे प्रतिष्ठित केंद्र था।