Bhimrao Ambedkar Death Anniversary: भारतीय संविधान के निर्माता और दिग्गज अर्थशास्त्री डॉक्टर भीमराव रामजी अम्बेडकर ने अपनी किताब ‘द अनटचेबल्स: हू वेयर दे एंड व्हाई दे बिकम अनटचेबल्स’ में बताते हैं कि ब्राह्मण न सिर्फ गाय को मारते थे बल्कि उसका मांस भी खाया करते थे। 

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शाकाहारी और मांसाहारी के अलावा तीसरा वर्ग

डॉ अंडेबकर अपनी किताब में हिंदुओं को खान-पान के आधारा पर वर्गीकृत करते हुए बताते हैं कि कैसे इस धर्म में शाकाहारी और मांसाहारी के अलावा एक तीसरा वर्ग भी है। वह लिखते हैं, ”हिंदुओं के विभिन्न वर्गों की खान-पान की आदतें उनके संप्रदायों की तरह ही निश्चित रही हैं। जिस प्रकार हिन्दुओं को उनके पंथ के आधार पर वर्गीकृत किया जा सकता है, उसी प्रकार उन्हें उनके खान-पान के आधार पर भी वर्गीकृत किया जा सकता है। पंथों के आधार पर हिंदू या तो शैव (शिव के अनुयायी) या वैष्णव (विष्णु के अनुयायी) हैं। इसी तरह हिंदू या तो मांसाहारी या शाकाहारी हैं।

सामान्य प्रयोजनों के लिए हिन्दुओं का मांसाहारी और शाकहारी दो वर्गों में विभाजन पर्याप्त हो सकता है। लेकिन यह स्वीकार किया जाना चाहिए कि यह संपूर्ण नहीं है। एक व्यापक वर्गीकरण के लिए, हिंदुओं के मांसाहारी वर्ग को आगे दो उप-वर्गों में विभाजित करना होगा। पहला – जो मांस खाते हैं लेकिन गाय का मांस नहीं खाते हैं; और दूसरा- जो मांस खाते हैं, जिसमें गाय का मांस भी शामिल है।”

डॉ. अंबेडकर और गाय

डॉ. अंबेडकर जाति व्यवस्था सहित सामाजिक गैरबराबरी को उत्पन्न करने वाले विभिन्न व्यवस्थाओं के खिलाफ थे। वह जाति आधारित भेदभाव और छुआछूत की पड़ताल करते हुए समाज के विभिन्न समूहों के आचार-व्यवहार की भी जड़ तक जांच करते थे।

गाय को लेकर भारतीय समाज के अलग-अलग समुदाय की अलग-अलग राय रही है। वर्तमान में हिंदू धर्म की सवर्ण जातियों को गोवध और गोमांस का विरोधी माना जाता है। हालांकि डॉ. अंबेडकर तर्क करते हैं कि स्थिति हमेशा ऐसी नहीं थी।

वेदों के हवाले से अंबेडकर करते हैं साबित

डॉ. अंबेडकर अपनी बात साबित करने के लिए हिंदू और बौद्ध ग्रंथों की मदद लेते हैं। वह लिखते हैं कि, ”यह सत्य है कि वैदिक काल में गो आदरणीय थी, पवित्र थी। जैसा कि हिन्दू धर्मशास्त्रों के विख्यात विद्वान पीवी काणे कहते हैं,  ऐसा नहीं है कि वैदिक काल में गाय पवित्र नहीं थी, लेकिन उसकी पवित्रता के कारण ही बाजसनेई संहिता में कहा गया कि गोमांस को खाया जाना चाहिए।”

अंबेडकर अपनी किताब में ऋग्वेद का हवाला देते हुए कहते हैं, ”ऋग्वेद काल के आर्य खाने के लिए गाय को मारा करते थे, ऐसा ऋग्वेद से ही स्पष्ट होता है।” वह ऋग्वेद (10. 86.14) को उद्धत करते हैं, जिसमें लिखा है ”इंद्र कहते हैं, उन्होंने एक बार 5 से ज़्यादा बैल पकाए”

संविधान निर्माता आगे लिखते हैं, ”तैत्तिरीय ब्राह्मण में बताई गई कामयेष्टियों में न केवल गाय और बैल को बलि देने की आज्ञा है किन्तु यह भी स्पष्ट किया गया है कि किस देवता को किस तरह के बैल या गाय की बलि दी जानी चाहिए।”

ब्राह्मण क्यों हुए शाकाहारी?

ब्राह्मणों के गोमांस छोड़ने और शाकाहारी हो जाने की पड़ताल करते हुए अंबेडकर लिखते हैं, ”मनु की बात करें तो इसमें कोई संदेह नहीं है कि उन्होंने गोवध का निषेध नहीं किया था। दूसरी ओर उन्होंने कुछ अवसरों पर गाय का मांस खाने को अनिवार्य बताया था। …एक वक्त था जब ब्राह्मण सबसे अधिक गोमांस खाया करते थे। …ब्राह्मणों का यज्ञ और कुछ नहीं बल्कि गोमांस के लिए धर्म के नाम पर धूमधाम और समारोह के साथ किए गए निर्दोष जानवरों की हत्या थी।

पीढ़ियों से ब्राह्मण गोमांस खाते आ रहे हैं। उन्होंने गोमांस खाना क्यों छोड़ दिया? उन्होंने एक अतिवादी कदम के रूप में, मांस खाना पूरी तरह से क्यों छोड़ दिया और शाकाहारी क्यों हो गए?”

इस सवाल का जवाब ढूंढते हुए अंबेडकर लिखते हैं, ”मेरे विचार से यह रणनीति थी, जिसके तहत ब्राह्मणों ने गोमांस खाना छोड़ दिया और गाय की पूजा शुरू कर दी। गाय की पूजा का सुराग बौद्ध धर्म और ब्राह्मणवाद के बीच संघर्ष और बौद्ध धर्म पर अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए ब्राह्मणवाद द्वारा अपनाए गए साधनों में पाया जाता है।

“…बौद्धों ने ब्राह्मण धर्म को अस्वीकार कर दिया, जिसमें यज्ञ और पशु बलि, विशेष रूप से गाय शामिल थी। गाय की बलि पर आपत्ति को लोगों का भी समर्थन मिल रहा था। खासकर कृषि आबादी के लिए गाय एक बहुत ही उपयोगी जानवर था, इसलिए वह बौद्ध धर्म की आपत्ति का साथ दे रहे थे। …ब्राह्मण शाकाहारी क्यों बने? इसका उत्तर यह है कि शाकाहारी बने बिना ब्राह्मण उस जमीन को पुनः प्राप्त नहीं कर सकते थे जो उन्होंने अपने प्रतिद्वंद्वी यानी बौद्ध धर्म के हाथों खो दी थी।”

अंडेबकर का परिनिर्वाण

6 दिसंबर, 1956 को डॉ अंबेडकर की मृत्यु हुई थी। इस तारीख को उनके अनुयायी परिनिर्वाण दिवस के रूप में मनाते हैं। परिनिर्वाण शब्द का इस्तेमाल बौद्ध धर्म में मृत्यु उपरांत प्राप्त अवस्था के लिए किया जाता है। बौद्ध धर्म में मोह, माया, इच्छा के साथ-साथ जीवन चक्र से भी मुक्त हो जाने वाला जीव परिनिर्वाण को प्राप्त कर लेता है अर्थात पूर्ण निर्वाण को हासिल कर लेता है।