प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को मध्य प्रदेश के कुनो नेशनल पार्क में आठ चीतों को छोड़ा। भारत सरकार ने इन चीतों को ‘प्रोजेक्ट चीता’ के तहत दक्षिण अफ्रीका से मंगाया है। आठ चीतों में पांच मादा और तीन नर हैं। पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के मुताबिक, चीता इंट्रोडक्शन परियोजना के लिए 38.70 करोड़ रुपया आवंटित किया गया है। 2025-26 तक अफ्रीकी देशों से 12 से 14 चीता लाने की योजना है।
चीता लाने की वजह?
भारत सरकार ने साल 1952 में चीता को विलुप्त प्राणी घोषित कर दिया था यानी पिछले 70 सालों से भारत में चीता नहीं था। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, ईरान को छोड़कर एशिया के लगभग सभी देशों से चीता विलुप्त हो चुके हैं। कभी चीता भारत, पाकिस्तान और रूस में पाए जाते थे। मध्य-पूर्व के देशों में भी चीतों की संख्या अच्छी खासी हुआ करती थी।
भारत की बात करें तो महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा, तमिलनाडु में चीता पाए जाते थे। भारत के आखिरी तीन चीतों को कोरिया रियासत के अंतिम राजा महाराज रामानुज प्रताप सिंहदेव ने दिसंबर 1947 में मार दिया था। यह रियासत अविभाजित मध्य प्रदेश का हिस्सा हुआ करता था। अब कोरिया छत्तीसढ़ का हिस्सा है। बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, तीनों चीतों का शिकार रामगढ़ इलाक़े में किया गया था। उनके सिर आज भी अन्य जानवरों के सिर के साथ राजमहल में टंगे हुए हैं।
चीता अपने तेज रफ्तार के लिए जाने जाते हैं। दुनिया का कोई दूसरा जानवर चीता जितना तेज नहीं दौड़ सकता। चीता 100 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ सकता है।
अकबर और चीता
मुगल बादशाह अकबर के पास 1000 चीता हुआ करते थे। अकबर के बेटे जाहंगीर का दावा था कि अकबर ने अपने पूरे शासन काल (1556 से 1605) के दौर करीब 9000 चीतों को पाला। दरअसर मुगल काल में चीता का इस्तेमाल हिरण और चिंकारा का शिकार करने के लिए किया जाता था। बड़े मुगल शासक हो या छोटी रियासतों के राजा, तब सभी को चीता पालने का शौक था। वह जब शिकार पर जाते, तो अपने पालतू चीता को साथ ले जाते थे। अरब देशों में आज भी चीतों के बच्चों को पाला जाता है। इसके लिए चीतों के बच्चों को दस हज़ार डॉलर तक में खरीदा जाता है।