सेना में भर्ती की नई प्रक्रिया के लिए अग्निपथ योजना लाकर मोदी सरकार खुद अपने रास्तों में अंगारा बिछा चुकी है। बिहार, हरियाणा, यूपी, हिमाचल प्रदेश सहित देश के कई राज्यों में युवा आक्रोशित नजर आ रहे हैं। जगह-जगह से हिंसा और आगजनी की खबरें भी आने लगी हैं। हालांकि ये पहला मौका नहीं है जब मोदी सरकार अपने ही किसी फैसले का विरोध झेल रहो हो। ऐसे फैसलों की पूरी एक फ़ेहरिस्त। आइए एक-एक कर जानते हैं-

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नोटबंदी : मोदी सरकार के पहले कार्यकाल (2014-2019) के सबसे बड़ों फैसलों में से एक था नोटबंदी। 8 नवंबर 2016 को रात 8 बजे प्रधानमंत्री अचानक ही टीवी पर प्रस्तुत हुए थे और 500-1000 की करेंसी को अमान्य घोषित कर दिया था। इसे डीमोनेटाइजेशन यानी विमुद्रीकरण कहा गया। सरकार के इस फैसले से थोड़ी ही देर में पूर देश मे अफरा-तफरी मच गयी। एटीएम और बैंकों को बाहर लम्बी-लम्बी कतारें लग गयीं। आम जनता पुराने नोट जमा करने व नए नोट हासिल की जद्दोजहद में हताश और परेशान नजर आयी। इस दौरान करीब 100 लोगों की जान गयी, ऐसा कई संस्थानों ने दावा किया। हालांकि सरकार ने सिर्फ लोगों की मौत को स्वीकार किया।

विपक्षी दलों ने इस फैसले का कड़ा विरोध किया। विशेषज्ञों ने अर्थव्यवस्था के लिए नुकसानदेह बताया। आम जनता का एक वर्ग खुलकर आलोचना करते दिखा, बाकियों ने डीमोनेटाइजेशन की मुश्किलों को एक बड़े आर्थिक सुधार का हिस्सा समझकर सह लिया। लेकिन जल्द ही सुधार का भ्रम आरबीआई की एक रिपोर्ट ने दूर कर दिया। नोटबंदी करते हुए सरकार ने दावा किया था कि इससे बड़े पैमाने पर कालाधन वापस आएगा। भारतीय रिजर्व बैंक ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि सर्कुलेशन में मौजूद 99.30 फीसदी 500 और 1000 रुपये के पुराने नोट वापस आए गए यानी सिर्फ 0.7 प्रतिशत नोट वापस नहीं आए। नक्सलवाद और आतंकवाद पर लगाम लगने की बात भी सही नहीं साबित हुई। साल 2019 में हुआ पुलवामा का आतंकी हमला इसका बड़ा उदाहरण है।

जीएसटी : ‘एक देश-एक कानून’ का नारा देते हुए मोदी सरकार गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (GST) लेकर आयी थी। इसका मकसद इनडायरेक्ट टैक्स जैसे उत्पाद शुल्क, वैट, सर्विस टैक्स, आदि को खत्म कर एक टैक्स लागू करना था। 29 मार्च 2017 को संसद में पारित होने के बाद जीएसटी 1 जुलाई 2017 से देशभर में लागू हो गया। हालांकि लागू होने से पहले ही इसका विरोध शुरू हो चुका था। इस बार विरोध का केंद्र प्रधानमंत्री मोदी का गृह राज्य गुजरात था। जीएसटी के खिलाफ सबसे अधिक समय तक विरोध गुजरात में ही हुआ। टैक्सटाइल हब कहे जाने वाले सूरत में व्यापारियों ने जीएसटी के खिलाफ पर्चा छपवा-छपवा कर जनता में बांटा। कई-कई दिनों तक प्रतिष्ठानों को बंद रख विरोध जताया। दबाव में आकर सरकार को जीएसटी में कई बदलाव करने पड़े।

तीन तलाक : मोदी सरकार ने संसद में मुस्लिम वुमेन (प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स ऑन मैरिज) बिल लाकर इंस्टेंट ट्रिपल तलाक यानी तलाक-ए-बिद्दत तो अपराध घोषित कर दिया था। सरकार के इस फैसले का सड़क से संसद तक विरोध हुआ। सरकार को मुस्लिम विरोधी बताने की कोशिश हुई। इस कानून के खिलाफ मुसलमानों के एक वर्ग ने सड़क पर संघर्ष किया। वहीं कांग्रेस और AIMIM जैसे दलों ने संसद में मोर्चा खोला। मुस्लिम धर्मगुरू और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड इसे शरीयत में हस्तक्षेप बता रहे थे। वहीं AIMIM जैसे दल बिल में बदलाव की मांग करते रहे।

दरअसल कानून के मुताबिक, तीन तलाक देने वाला कानून अपराधी माना जाता है। इसके तहत तीन साल की जेल और महिला के भरण-पोषण के लिए मुआवजा देने का प्रावधाना है। संसद में इसका विरोध करने वालों की मांग थी कि अपराध संबंधी क्लॉज हटा दिया जाए, उसका मुस्लिम पुरुषों के खिलाफ गलत इस्तेमाल हो सकता है। हालांकि सरकार ने इन दलीलों को नहीं माना और संसद में 1 अगस्त, 2019 को बिल पारित हो गया।

सीएए-एनआरसी : किसान आन्दोलन से पहल सीएए और एनआरसी ही वो मुद्दा था, जिसके खिलाफ पूरे देश में विरोध प्रदर्शन हुआ। इस मामले पर अंतरराष्ट्रीय टिप्पणियां भी आने लगी थीं। सरकार के प्रतिनिधियों को बार-बार प्रेस कॉन्फ्रेंस सफाई देनी पड़ी। हालांकि उन साफाइयों का विरोध प्रदर्शन पर कोई असर नहीं हुआ। दरअसल सरकार साल 2019 में पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए 6 समुदायों (हिन्दू, ईसाई, सिख, जैन, बौद्ध तथा पारसी) के शरणार्थियों को भारत की नागरिकता देने के लिए नागरिकता (संशोधन) कानून (CAA) लेकर आयी थी।

साथ में आया था नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन यानी NRC। इसके तहत घुसपैठियों को चिन्हित किया जाना था। क्योंकि सीएए में मुस्लिम समुदाय का जिक्र नहीं था, इसलिए इसका विरोध करने वालों का तर्क होता कि एनआरसी से तो घुसपैठियों की पहचान हो जाएगी, जो हिन्दू इन घुसपैठियों की लिस्ट में होंगे उन्हें सीएए कानून की मदद से वापस भारतीय नागरिक बना दिया जाएगा। लेकिन दस्तावेजों के अभाव में अगर मुसलमान घुसपैठीया साबित हुए तो उन्हें अपने ही देश में अवैध घोषित कर डिटेंशन सेंटर में डाल दिया जाएगा। यही वजह है कि इसके खिलाफ चला विरोध प्रदर्शन नजीर बन गया। दिल्ली शुरू हुआ विरोध प्रदर्शन का ‘शाहीन बाग’ मॉडल देश के दूसरे हिस्सों में भी आजमाया गया। ये मॉडल भविष्य में भी सरकार को चुनौती देता रहा।

किसान आन्दोलन : मोदी सरकार ने 17 सितंबर 2020 को खेती से जुड़े तीन कानूनों को संसद में पास किया। पहला कानून – कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) अधिनियम -2020, दूसरा कानून- कृषक (सशक्तीकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार अधिनियम 2020, तीसरा कानून- आवश्यक वस्तुएं संशोधन अधिनियम 2020

इन कानूनों को लेकर विशेषज्ञों में भी मतभेद था। मोटे तौर पर किसानों का तर्क था कि नए कानून की वजह से कृषि क्षेत्र भी कॉरपोरेट यानी पूँजीपतियों के हाथ में चला जाएगा। ऐसा होने से किसानों को नुकसान होगा। कृषि कानूनों के खिलाफ शुरू हुआ किसानों का प्रदर्शन काफी हद तक ‘शाहीन बाग’ से प्रभावित था। किसान इन कानूनों से इतने नाराज थे कि दिल्ली के बॉडर्स को एक साल से अधिक समय तक बंद रखा। इस दौरान कई किसानों की जान भी गई। लेकिन किसान डटे रहे। अंत में सरकार को इसे वापस लेने की घोषणा करनी पड़ी। किसान आन्दोलन सही मायने में मोदी सरकार के लिए ‘अग्निपथ’ साबित हुआ था।

अग्निपथ : मंगलवार (14 जून) को केंद्र सरकार तीनों सेनाओं में युवाओं की भर्ती के लिए ‘अग्निपथ योजना’ लेकर आयी। इसके तहत 17.5 से 21 साल तक के युवाओं को 4 साल के लिए सेना में भर्ती किया जाएगा। यानी ये एक शॉर्ट टर्म सर्विस होगी। भर्ती हुए युवा अग्निवीर कहलाएंगे लेकिन चार साल बाद 75 प्रतिशत बाहर कर दिए जाएंगे। 25 प्रतिशत को आगे 15 साल तक नौकरी करने का मौका मिलेगा। इन युवाओं को पेंशन या ग्रेच्युटी नहीं दी जाएगी।

इन्हीं सब बातों से खफा युवा सड़क पर उतर चुके हैं। शुरूआत बिहार से हुई। अब लगभग 6-7 राज्यों में विरोध प्रदर्शन जारी है। कई जगहों पर हिंसा और अगजनी भी हो रही है। पुलिस हालात काबू करने के नाम पर बल का प्रयोग भी शुरू कर चुकी है। ऐसे में ‘अग्निपथ योजना’ को लागू करना सरकार के लिए अग्निपथ पर चलने जैसा साबित हो सकता है।