शहरों और कस्बों में सीवरों और सेप्टिक टैंक की सफाई के काम में लगे लोगों की गणना से हैरान करने वाले आंकड़े सामने आए हैं। इन आंकड़ों से पता चलता है कि सफाई के काम में लगे 38,000 कर्मचारियों में से 91.9% कर्मचारी अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) समुदायों से हैं। अंग्रेजी अखबार ‘द हिंदू’ में इन आंकड़ों को लेकर खबर छपी है।

सफाई कर्मचारियों की गणना पहली बार की गई है। इसके लिए 29 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 3000 से अधिक शहरी स्थायी निकायों से आंकड़ों को इकट्ठा किया गया है।

किस समुदाय के कितने सफाई कर्मचारी

समुदाय का नाम प्रतिशत में
अनुसूचित जाति68.9
अनुसूचित जनजाति8.3
ओबीसी14.7
सवर्ण8

कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने इन आंकड़ों को ट्वीट किया है। खड़गे ने कहा है कि बीजेपी जातिगत जनगणना के विरोध में इसलिए है क्योंकि इससे यह पता चल जाएगा कि SC, ST, OBC, EWS व सभी वर्ग कौन-कौन से काम करके अपना जीवन-यापन कर रहे हैं। उनकी आर्थिक और सामाजिक स्थिति क्या है? 

संसद में साल 2019 से 2023 के बीच पेश किए गए सरकारी आंकड़ों के मुताबिक भारत में कम से कम 377 लोगों की मौत सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई करने के दौरान हुई है।

सीवर और सेप्टिक टैंक कर्मियों (SSWs) की प्रोफाइलिंग का काम सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा NAMASTE कार्यक्रम के तहत किया जा रहा है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य सीवर के काम को मशीनों के द्वारा किया जाना और सफाई के खतरनाक काम के दौरान वाली मौतों को रोकना है। मैनुअल स्कैवेंजर्स के पुनर्वास के लिए यह योजना स्व-रोजगार योजना (SRMS) की जगह लाई गई थी।

इस योजना के शुरू होने के एक साल बाद 3,326 शहरी स्थानीय निकायों (ULBs) ने सीवर और सेप्टिक टैंक कर्मियों की प्रोफाइलिंग का काम शुरू किया और लगभग 38,000 कर्मचारियों की प्रोफाइलिंग की।

अब नहीं हो रही मैनुअल स्कैवेंजिंग

NAMASTE कार्यक्रम से पहले जो SRMS योजना लागू भी, उसके तहत 2018 तक केंद्र सरकार ने 58,098 मैनुअल स्कैवेंजर्स की पहचान की थी। सरकार का कहना है कि इसके बाद कोई अन्य मैनुअल स्कैवेंजर्स नहीं मिले हैं। सरकार का यह भी कहना है कि मैनुअल स्कैवेंजिंग की 6,500 से अधिक शिकायतों में से कोई भी वेरिफाई नहीं हो सकी।

तब सरकार ने मैनुअल स्कैवेंजर्स का जो डाटा दिया था उसमें 43,797 लोगों में से 97.2% लोग अनुसूचित जाति (एससी) समुदाय से थे। जबकि एसटी, ओबीसी और अन्य समुदायों के लोग लगभग 1-1% थे।

पिछले कुछ सालों में ऐसी कई घटनाएं सामने आई हैं जिनमें सेप्टिक टैंक में सफाई करने के लिए उतरे लोगों की जहरीली गैस की वजह से दम घुटने से मौत हो गई। इन लोगों की मौत की घटनाओं को सोशल मीडिया पर जोर-शोर से उठाया गया है।

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…सेप्टिक टैंक के अंदर होती है खतरनाक गैस

मुंबई में सेप्टिक टैंक की सफाई के काम में लगे लोगों में से एक राजू से ने इस साल मई में द इंडियन एक्सप्रेस को बातचीत में बताया था कि एक बार सफाई करते वक्त मौत उन्हें छूकर निकल गई थी। वह बताते हैं कि सेप्टिक टैंक के अंदर खतरनाक गैस होती है, यह आपकी नाक में जाती है, आपकी आंखों को जलाती है और फिर सीधे आपके दिमाग पर असर करती है। इसके बाद आपके आगे अंधेरा छा जाता है।

मुंबई में अप्रैल में ही मैनुअल स्कैवेंजिंग (हाथ से सफाई) के दो मामले सामने आए थे और इसमें पांच लोगों की मौत हो गई थी। 2013 में मैनुअल स्कैवेंजिंग पर प्रतिबंध लगा दिया था लेकिन अभी भी यह देश के कई हिस्सों में जारी है। सेप्टिक टैंक में सफाई करने के दौरान मरने से बाल-बाल बच्चे राकेश भी सीवर साफ करने का काम करते हैं। ऐसा वह मजबूरी की वजह से और अपने चार बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए करते हैं। वह कहते हैं कि वह 2005 से यह काम कर रहे हैं।

केंद्र सरकार का कहना है कि मैनुअल स्कैवेंजिंग का काम अब देशभर में खत्म हो चुका है। लेकिन देश भर से आने वाली ऐसी घटनाएं केंद्र सरकार के दावों पर सवाल खड़ा करती हैं।