भारत में बेरोजगारी पर चर्चा तो हो जाती है। लेकिन क्वालिटी जॉब को लेकर अभी भी कोई विमर्श नजर नहीं आता। यंग इंडिया का एक बड़ा वर्ग अंडर एम्प्लॉयमेंट का शिकार है। इसके सबसे बड़े उदाहरण फूड डिलीवरी एजेंट हैं।
नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च (NCAER) ने 28 शहरों में फैले फूड डिलीवरी फर्म के 924 वर्कर्स के साथ एक सर्वे किया। सर्वे के परिणाम से इन वर्कर्स के बायोडाटा और वर्क लाइफ की जो जानकारी मिलती है, वो बिलकुल भी हैरान करने वाली नहीं है। सर्वे में शामिल लगभग दो तिहाई वर्कर्स की उम्र 30 वर्ष से कम थी। फूड डिलीवरी का काम लगभग पूरी तरह मेल डॉमिनेटिंग है यानी अधिकांश फूड डिलीवरी एजेंट पुरुष हैं।
45% कॉलेज ग्रेजुएट या टेक्निकल ट्रेनिंग से लैस
फूड डिलीवरी के काम में लगे इन वर्कर्स के शिक्षा का स्तर मामूली नहीं है। 45% से अधिक या तो कॉलेज ग्रेजुएट हैं या उनके पास तकनीकी प्रशिक्षण है। 32.7 प्रतिशत ने ग्रेजुएशन या उससे आगे की पढ़ाई की है। टियर-2 शहरों में यह 39.4% से ज्यादा है। 3.6 प्रतिशत टेक्निकल ग्रेजुएट भी इस काम में लगे हैं। हालांकि सर्वे में शामिल 51.7 प्रतिशत वर्कर्स ऐसे थे, जिन्हें निरक्षर से 12वीं पास तक की श्रेणी में रखा जा सकता है।
इस काम में लगे वर्कर्स का कंपनी के साथ एक फॉर्मल कॉन्ट्रैक्ट होता है। लेकिन कई मीडिया रिपोर्ट्स में यह बात सामने आ चुकी है कि इन वर्कर्स की हालत किसी दिहाड़ी मजदूर से बहुत अच्छी नहीं होती।
संभव है कि यह डेटा इस सेक्टर की एकदम सटीक जानकारी न दे रहा हो। लेकिन लोग अंडर एम्प्लॉयमेंट का शिकार हैं, ये तो साबित हो ही रहा है। यह भारत के लेबर मार्केट की खराब स्थिति पर से भी पर्दा उठा रहा है। जाहिर है ये ऐसी नौकरियां नहीं हैं जिन्हें देश का शिक्षित युवा वर्ग करना चाहेगा।

अब सवाल उठता है कि पढ़े लिखे युवा ये काम क्यों कर रहे हैं? इसका पहला जवाब तो यह है कि भारत के कुल बेरोजगारों में 80% युवा हैं। देश में इस वर्ग के लिए कोई प्रभावी सिक्योरिटी नेट भी नहीं है, इसलिए लोग बेरोजगार होने का जोखिम नहीं उठा सकते। ऐसे में लोग खुद को अंडर एम्प्लॉयमेंट यानी अल्प-रोजगारी में झोंक रहे हैं। NCAER के सर्वे में शामिल वर्कर्स ने बताया कि वो ये काम अधिक कमाई और फ्लेक्सिबल वर्क आवर की वजह से करते हैं।

तीन साल में घटी 11 प्रतिशत कमाई
NCAER ने ही अपनी रिपोर्ट में बताया है कि फूड डिलीवरी प्लेटफॉर्म के लिए काम करने वाले वर्कर्स की मासिक कमाई में 2019 और 2022 के बीच 11 प्रतिशत तक कमी आयी है। रिपोर्ट के अनुसार, लंबी शिफ्ट (11 घंटे की शिफ्ट में काम करने वाले) के कर्मचारियों की रियल इनकम 2019 में 13,470 रुपये थी, जो 2022 में 11.1 प्रतिशत घटकर 11,963 रुपये हो गई। वहीं पांच घंटे की शिफ्ट में काम करने वाले कर्मचारियों की इनकम 10.4 प्रतिशत गिरकर 7,999 रुपये से 7,157 रुपये हो गई है।
शॉर्ट-शिफ्ट वाले कर्मचारियों का वर्क आवर अब भी पांच घंटा है। लेकिन लंबी-शिफ्ट वाले कर्मचारियों के काम के घंटे 19 प्रतिशत बढ़कर 10.9 घंटे प्रति दिन हो गए हैं।
चार्ट से समझिए किस शिफ्ट में काम करने वाले वर्कर्स की कमाई में कितनी आई गिरावट:

दो साल में गई 100,000 स्टार्टअप कर्मचारियों की नौकरी
भारत में तेजी से उभर रहे स्टार्टअप इकोसिस्टम में लोगों की नौकरियां भी तेजी से जा रही हैं। टेक के कर्मचारियों को हायर करने वाली फर्म ‘टॉपहायर’ के आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले 24 महीनों में 1,400 से अधिक कंपनियों ने 91,000 कर्मचारियों को निकाल दिया है। नए जमाने की इन नौकरियों में कंपनियां जितना बता रही हैं, इससे तीन गुना ज्यादा कर्मचारियों की जॉब जा रही है। ऐसे में अनुमान लगाया जा रहा है कि नौकरी खोने वालों की संख्या 120,000 भी हो सकती है।