मुंबई हमले की सुनवाई कर रही पाकिस्तान की आतंकवाद निरोधक अदालत (एटीसी) ने कहा है कि कानूनी खामियों, कमजोर सबूतों और अप्रासंगिक धाराओं की वजह से 2008 के मुंबई बम हमले के कथित मुख्य षड्यंत्रकारी जकी उर रहमान लखवी को जमानत मिली। लखवी को अठारह दिसंबर को जमानत देने वाले एटीसी न्यायाधीश सैयद कौसर अब्बास जैदी ने अपने लिखित आदेश में कहा कि 54 वर्षीय आरोपी के विरुद्ध सबूत अपराध जांच विभाग (सीआइडी) के अधिकारियों के बयानों पर आधारित हैं जो स्पष्ट तौर पर उसकी जमानत नामंजूर करने के लिए अपर्याप्त थे।

अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष के गवाहों के बयानों से उजागर होता है कि सुनीसुनाई बातों के आधार पर लखवी को आरोपित किया गया। उसने कहा कि यह भी स्वीकृत तथ्य है कि मोहम्मद मुमताज (गवाह) ने लखवी के खिलाफ एक शब्द भी नहीं बोला है। प्राथमिकी दर्ज करने के बाद इसमें कानून की अन्य धाराएं जोड़ने का भी लखवी को फायदा हुआ। घटना के करीब तीन महीने बाद प्राथमिकी दर्ज की गई थी।

जमानत पर लखवी को रिहा करने के आदेश में कहा गया है कि प्राथमिकी के ब्योरे के अनुसार घटना नवंबर, 2008 में हुई जबकि रिपोर्ट दो फरवरी, 2009 को दर्ज की गई। डॉन अखबार ने अदालती आदेश के हवाले से लिखा है कि आपराधिक प्रक्रियाओं में अपराध की प्राथमिकी दर्ज कराने में देरी का आरोपी को हमेशा ही लाभ मिलता है। पूर्व डिप्टी अटार्नी जनरल तारिक महमूद जहांगीरी ने डॉन से कहा कि ‘लिमिटेशन एक्ट’ आपराधिक मामलों में लागू नहीं होता और किसी अपराध के कई महीने बाद भी प्राथमिकी दर्ज कराई जा सकती है, हालांकि प्राथमिकी दर्ज कराने में देरी का हमेशा आरोपी को फायदा होता है, अपराध चाहे जो भी हो।

इसके अलावा अभियोजन पक्ष ने इस आरोपी के खिलाफ एक ऐसे अपराध की धारा लगाई है जो लखवी के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज किए जाने के समय फरवरी, 2009 में हुआ ही नहीं था। अखबार के मुताबिक आदेश में कहा गया है कि वर्ष 2011 में इस आरोपी के खिलाफ एटीए (आतंकवाद निरोधक कानून) की संशोधित धारा 6-बी प्राथमिकी में शामिल की गई थी जिसके अनुसार किसी अन्य देश की सरकार या आबादी या अंतरराष्ट्रीय संगठन के विरुद्ध आतंकी कृत्य और धमकी भी एटीए के तहत आती है।
अदालती आदेश में कहा गया है कि कमजोर सबूत, संदिग्ध के विरुद्ध गैर प्रासंगिक धाराएं लगाते हुए प्राथमिकी दर्ज करने और कभी न खत्म होने वाली सुनवाई और सुनीसुनाई बातें आरोपी के पक्ष में गईं।

हालांकि जमानत मिलने के बाद भी लखवी कानून व्यवस्था बनाए रखने संबंधी कानून ‘एमपीओ’ के तहत जेल में रखा गया है। लखवी ने एमपीओ के तहत हिरासत में रखे जाने को हाई कोर्ट में चुनौती दे रखी है।

अदालती आदेश में कहा गया है कि इस मामले में जिस मुख्य सबूत के आधार पर लखवी को आरोपी बनाया गया वह अजमल कसाब का बयान है। एटीसी न्यायाधीश ने अपने आदेश में कहा कि लखवी के खिलाफ सबूत सीआइडी के अधिकारियों के बयानों पर आधारित है जो स्पष्ट तौर पर उसकी जमानत नामंजूर करने के लिए नाकाफी है। अदालती आदेश में कहा गया कि लखवी के खिलाफ पांच सीआइडी अधिकारियों के बयान प्रासंगिक समझे गए। इन अभियोजन गवाहों से जब अदालत में जिरह की गई तो उनके बयानों से पता चला कि उन्होंने सुनीसुनाई बातों के आधार पर याची (लखवी) पर आरोप लगाए।

न्यायाधीश ने सुनवाई में देरी संबंधी लखवी के वकील की दलीलों का भी हवाला दिया। आदेश में कहा गया है कि पिछले छह साल में अभियोजन के 50 गवाहों की अदालत में पेशी हुई और 100 से ज्यादा गवाहों की जिरह बाकी है जिसमें और दस साल लग सकते हैं।

आतंकवाद निरोधक कानून की धाराओं का उल्लेख करते हुए अदालत ने कहा कि उसे उस समय को ध्यान में रखना होगा जो आरोपी जेल में हिरासत में बिता चुका है और उस समय का भी, जिसके दौरान, यदि जमानत मंजूर नहीं की गई तो वह शायद हिरासत में रहे। हालांकि न्यायाधीश ने अपने आदेश के अंतिम पैरे में कहा कि उनकी ये टिप्पणियां अंतरिम है और उसका मुकदमे की सुनवाई या उसके भविष्य पर कोई असर नहीं पड़ेगा।

लखवी को जमानत देने के फैसले की भारत ने कड़ी आलोचना की थी और पेशावर में बड़ी संख्या में बच्चों सहित 148 व्यक्तियों के जनसंहार की घटना के दो दिन बाद ही लखवी को जमानत देने पर हैरत जताई।