मलेशिया में सोमवार (3 अगस्त) को दो मुस्लिम महिलाओं को बेंत मारने की कड़ी सजा दी गई। महिलाओं पर आरोप था कि उन्होंने सख्त इस्लामिक कानूनों का उल्लंघन करते हुए आपस में समलैंगिक संबंध बनाए हैं। इस घटना से मानवाधिकार कार्यकर्ताओं में नाराजगी है। उन्होंने इस सजा को अमानवीय और अपमानजनक बताया है। सजा पाने वाली दोनों महिलाएं सफेद कपड़ों और मुस्लिम साफा बांधे हुए थीं। उन्हें एक शरई अदालत में स्टूल पर बैठाकर छह-छह बेंत मारे गए। सजा के दौरान उनमें से एक महिला फूट-फूटकर रोने लगी।
मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि ये मलेशिया में पहली बार हुआ है जब किसी महिला को शरई कानूनों का उल्लंघन करने पर बेंत से मारने की सजा दी गई हो। सनद रहे कि समलैंगिक संबंध बनाना शरई कानूनों के मुताबिक अपराध हैं।
उन्होंने कहा कि ये मामला बताता है कि मुस्लिम बहुल देशों में पुरुष समलैंगिकों के लिए हालात किस कदर खराब हैं। बता दें कि मलेशिया में न्याय की दो व्यवस्थाएं संचालित होती हैं। इस्लामिक कोर्ट धार्मिक और मुस्लिम नागरिकों के पारिवारिक मामलों को देखती है। इसके अलावा अनैतिक संबंध के मामले भी शरई अदालत देखती है।
सजा पाने वाली महिलाओं की उम्र क्रमश: 22 और 32 वर्ष है। उन्हें अप्रैल 2018 में इस्लामिक प्रवर्तन अधिकारियों के द्वारा गिरफ्तार किया गया था। उन्हें देश के उत्तरी राज्य तेरेंगगनु के एक चौराहे पर कार के भीतर पाया गया था। ये हिस्सा देश के सबसे कट्टर इलाकों में शामिल माना जाता है।
महिलाओं की पहचान अभी जाहिर नहीं की गई है। उन्हें पिछले महीने इस्लामिक कानून तोड़ने का दोषी मानते हुए बेंत से मारने की सजा सुनाई गई थी। दोनों महिलाओं के ऊपर 3,300 रिंगित यानी 56,000 भारतीय रुपये का जुर्माना भी लगाया गया है। उन्हें प्रांत की राजधानी कुआला तेरेंगगनू में स्थित शरिया उच्च न्यायालय में बेंत लगाए गए।
शरई अदालत में सोमवार की सुबह एक जज ने सुबह 10 बजे अपने फैसला सुनाया। इसके बाद अधिकारियों ने बेंत की पतली डंडी से बंद कोर्टरूम में महिलाओं को पीटा। कोर्ट में मौजूद एक पत्रकार के मुताबिक, कम उम्र वाली महिला बेंत पड़ते ही रोने लगी जबकि बड़ी उम्र की महिला शांत बैठी रही। इस सजा की चौतरफा निंदा की जा रही है। मलेशिया के महिला अधिकार संगठन ने इसे मानवाधिकारों का घोर उल्लंघन बताया था।
वहीं एमनेस्टी इंटरनेशनल ने कहा कि ये समलैंगिक समुदाय के साथ देश में हो रहे भेदभाव का चरम है। ये इस बात का भी प्रतीक है कि देश की नई सरकार ने अपने से पहले की सरकारों की तरह इस अमानवीय कानून को हटाने की कोई पहल नहीं की है। जबकि कोर्ट के अधिकारी वान अब्दुल मलिक वान सिदेक ने सजा के फैसले का बचाव किया। उन्होंने कहा, बेंत मारने की सजा बहुत कठोर दंड नहीं है। मलेशिया के सिविल कानून के मुताबिक कई अन्य अपराधों के लिए इससे भी कठोर सजा तय की गई है।
