भारत-अमेरिका के बीच ट्रेड डील को लेकर बातचीत चल रही है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा है कि 1 अगस्त से पहले अगर ट्रेड डील नहीं हो पाती है, तो वह कई देशों पर रेसिप्रोकल टैरिफ लगाएंगे। इसमें भारत भी शामिल है। इस बीच कुछ समय पहले ही भारतीय प्रतिनिधिमंडल अमेरिका गया था और ट्रेड डील को लेकर चर्चा हुई। वहीं अब बात आगे बढ़ाने के लिए अगस्त में अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल के भारत आने की उम्मीद है।
टैरिफ डील को लेकर क्या है अपडेट?
हालांकि भारत और अमेरिका कई तरह की टैरिफ दरों पर सहमत हो गए हैं, लेकिन बातचीत कृषि और ऑटोमोबाइल जैसे संवेदनशील क्षेत्रों पर अटकी हुई है, जो भारत में रोज़गार के प्रमुख सोर्स हैं। 1 अगस्त की समय सीमा के बाद बातचीत का यह नया दौर ऐसे समय में हो रहा है जब इस बात पर संशय बढ़ रहा है कि क्या भारत को 1 अगस्त से 26 प्रतिशत रेसिप्रोकल टैरिफ का सामना करना पड़ेगा। अमेरिकी कॉमर्स सेक्रेटरी हॉवर्ड लुटनिक ने रविवार को कहा था कि 1 अगस्त देशों के लिए टैरिफ का भुगतान शुरू करने की एक कठोर समय सीमा है।
लुटनिक ने रविवार को एक टीवी इंटरव्यू में कहा, “यह एक कठिन समय सीमा है, इसलिए 1 अगस्त को नई टैरिफ दरें लागू होंगी। 1 अगस्त के बाद देशों को हमसे बात करने से कोई नहीं रोक सकता, लेकिन वे 1 अगस्त से टैरिफ का भुगतान शुरू करने वाले हैं।” राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा रेसिप्रोकल टैरिफ लागू करने की समय-सीमा 1 अप्रैल से बढ़कर 9 जुलाई और अब 1 अगस्त हो गई है। हालांकि ट्रंप का कहना है कि भारत के साथ समझौता करीब है, लेकिन अगर दोनों देश किसी समझौते पर नहीं पहुंच पाते हैं, तो भारत को 26 प्रतिशत तक के शुल्क का सामना करना पड़ सकता है।
सरकारी अधिकारियों का कहना है कि भारत इस वर्ष के अंत तक एक द्विपक्षीय व्यापार समझौते (BTA) पर हस्ताक्षर करने का लक्ष्य लेकर चल रहा है, जिससे श्रम-प्रधान क्षेत्रों में बाज़ार तक पहुंच सुनिश्चित होगी। लुटनिक ने यह भी कहा कि छोटे देशों (जिनमें लैटिन अमेरिका, कैरिबियन और अफ्रीका के कई देश शामिल हैं) को 10 प्रतिशत के शुल्क का सामना करना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि बड़ी अर्थव्यवस्थाएं या तो खुद को खोल देंगी या वे अमेरिका को उचित शुल्क देंगी।
WTO के नियमों का उल्लंघन कर रहे ट्रंप?
व्यापार विशेषज्ञों ने बताया है कि व्यापार समझौतों के रूप में पेश किए जाने के बावजूद ट्रंप के समझौते मुक्त व्यापार समझौतों (FTA) के लिए विश्व व्यापार संगठन के मानकों को पूरा नहीं करते हैं। विश्व व्यापार संगठन के नियमों के अनुसार, मुक्त व्यापार समझौतों के लिए व्यापार के एक बड़े हिस्से पर रेसिप्रोकल टैरिफ में कटौती की आवश्यकता होती है।
थिंक टैंक ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) ने कहा, “ट्रंप मॉडल के तहत, केवल साझेदार देश ही अपने सर्वाधिक तरजीही राष्ट्र (MFN) टैरिफ कम करता है, जबकि अमेरिका कोई कटौती नहीं करता। MFN टैरिफ कम करने के लिए ट्रंप के पास कांग्रेस से फास्ट ट्रैक ट्रेड अथॉरिटी का अधिकार नहीं है। इसके बजाय वह केवल आपातकालीन शक्तियों के तहत अप्रैल में लगाए गए ‘लिबरेशन डे’ टैरिफ को वापस लेने की पेशकश कर रहे हैं। यह ऐसे टैरिफ हैं जिन्हें एक अमेरिकी संघीय अदालत पहले ही गैरकानूनी घोषित कर चुकी है। हालांकि कानूनी आधार अभी भी कमज़ोर है।” GTRI ने एक रिपोर्ट में कहा कि अगर कोई समझौता हो भी जाता है, तो भी भारतीय निर्यात पर कम से कम 10 प्रतिशत अतिरिक्त शुल्क लग सकता है, जिससे यह एक दबावपूर्ण समझौता बन जाएगा, न कि एक सच्ची साझेदारी।