बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना के देश छोड़ने के बाद वहां की सियासत का फ्यूचर क्या होगा? यह सबसे बड़ा सवाल है। देश में राजनीतिक हलचल जनवरी में हुए आम चुनावों से शुरू हो गई थी। तब पूर्व पीएम खालिदा जिया की बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) जैसी कई विपक्षी पार्टियों ने चुनावों का बहिष्कार कर दिया था। कौन बांग्लादेश की सियासत का असल खिलाड़ी है? यह एक दिलचस्प सवाल और पहलू है।

शेख हसीना : देश की राजनीति का केंद्र रहीं

आवमी लीग की नेता शेख हसीना के पिता शेख मुजीबुर रहमान को बंगबंधु के नाम से भी जाना जाता है। वह बांग्लादेश के राष्ट्रपिता थे। पहली बार 1971 में पाकिस्तान के साथ युद्ध के बाद देश के प्रधानमंत्री बने। 15 अगस्त, 1975 को सेना द्वारा किए गए तख्तापलट में उनकी हत्या कर दी गई थी, जिसमें उनके परिवार के कई सदस्य मारे गए थे। हसीना और उनकी बहन बच गई थीं क्योंकि वे उस समय भारत में थीं। इस साल जनवरी में वह लगातार पांचवी बार देश की पीएम बनी थीं। पहली बार वह इस पद पर 1996 में बैठी थीं।

आवामी लीग (AL)

आवमी लीग मुस्लिम लीग से अलग होकर 1949 में स्थापित हुई एक पार्टी थी। जिसने छात्र आंदोलनों को नेतृत्व किया। कहा जाता है कि बांग्लादेश की आजादी में इनके आंदोलनों की बड़ी भूमिका थी। आवामी लीग ने उर्दू भाषा को लागू करने और उस समय पूर्वी पाकिस्तान प्रांत के रूप में जाने जाने वाले क्षेत्र को अधिकार न सौंपने के लिए पाकिस्तान सरकार का विरोध किया था। बंगबंधु की हत्या के बाद 1980 के दशक में कई पार्टी नेताओं को गिरफ़्तार किया गया था या उन्हें फांसी पर चढ़ा दिया गया था। इसके बाद 1981 में शेख हसीना को पार्टी का अध्यक्ष चुना गया था।

खालिदा जिया और बांग्लादेश नेशनिलिस्ट पार्टी

खालिदा जिया 1991 में बांग्लादेश की पहली महिला प्रधानमंत्री चुनी गई थीं। 1977 से 1981 तक देश के राष्ट्रपति रहे उनके पति जियाउर रहमान की पद पर रहते हुए हत्या कर दी गई थी, जिसके बाद वे राजनीति में आईं। रहमान ने 1978 में बांग्लादेश नेशनिलिस्ट पार्टी की स्थापना की थी।

खालिदा जिया ने 2001 से 2006 के बीच प्रधानमंत्री के तौर पर काम किया। बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी को शुरू में खास तौर पर छात्र राजनीति के ज़रिए काफ़ी ज़मीनी समर्थन वाली पार्टी के रूप में देखा जाता था, लेकिन हाल के सालों में उनकी पार्टी कमजोर हुई है। 2018 में भ्रष्टाचार के एक मामले में सज़ा सुनाए जाने के बाद उन्हें जेल में डाल दिया गया था, जिसके बारे में उन्होंने कहा था कि यह राजनीति से प्रेरित था।

जमात-ए-इस्लामी

जमात-ए-इस्लामी की स्थापना भारत के बंटवारे से पहले 1941 में हुई थी। जब बांग्लादेश पाकिस्तान से अलग हुआ तब वहां 1975 में जमात को फिरसे खड़ा किया गया। यह देश की सबसे बड़ी इस्लामी पार्टियों में से एक है।

जमात ने पहले बीएनपी के साथ गठबंधन किया था, लेकिन 2013 में जमात के राष्ट्रीय चुनावों में भाग लेने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। एसोसिएटेड प्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक जमात ‘अपनी स्थापना के बाद से अल्लाह द्वारा निर्धारित और पैगंबर मुहम्मद द्वारा दिखाए गए इस्लामी जीवन को लागू करने के लिए काम कर रही है, जिसका उद्देश्य बांग्लादेश को एक इस्लामी वेल्फेयर स्टेट में बदलना है।

चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध के बावजूद जमात को बैठकें और रैलियाँ आयोजित करने जैसी राजनीतिक गतिविधियाँ करने की अनुमति दी गई थी। 2024 के विरोध प्रदर्शनों के बीच शेख हसीना ने आरोप लगाया कि जमात और उसकी छात्र शाखा छात्र शिबिर विरोध प्रदर्शनों का फायदा उठा रही है और हिंसा भड़का रही है। सरकार ने पिछले हफ्ते जमात पर प्रतिबंध लगा दिया था।