मीरा पटेल
रूस और यूक्रेन में छिड़े युद्ध के बीच जानना जरूरी है कि आखिर रूस के लिए यूक्रेन इतना अहम क्यों है। बता दें कि यूक्रेन को लेकर रूस ने ऑपरेशन Z शुरू किया है। दरअसल यूक्रेन और रूस के बीच ऐतिहासिक, धार्मिक और सांस्कृतिक से जुड़े संबंध तो हैं ही लेकिन साथ सुरक्षा का मुद्दा उसके लिए सबसे अहम है।
दरअसल यूक्रेन की रूस के साथ 2200 किमी से ज्यादा लंबी सीमा है। रूस का मानना है कि अगर यूक्रेन NATO से जुड़ता है तो NATO सेनाएं यूक्रेन के बहाने रूसी सीमा तक पहुंच जाएंगी। ऐसे में उसकी सुरक्षा को खतरा होगा। रूस चाहता है कि यूक्रेन नाटो का हिस्सा न बनें। गौरतलब है कि सोवियत संघ के टूटने के बाद 15 से अधिक यूरोपीय देश NATO में जा चुके हैं। अब उसकी नजर यूक्रेन पर है। इसी का भय रूस को सता रहा है।
बता दें कि शीत युद्ध के दौरान, ब्लैक सी में सोवियत संघ प्रमुख शक्ति बन गया। हालांकि, साम्राज्य के पतन के बाद, रूस ने इस क्षेत्र में अपना अधिकांश क्षेत्र खो दिया तो वहीं पूर्व सोवियत राज्य धीरे-धीरे पश्चिम के करीब आ गये। बता दें कि रूस का यूक्रेन के साथ एक समझौता हुआ जिसने उन्हें ब्लैक सी में बेड़े को विभाजित करने की अनुमति दी थी।
इसको लेकर 2010 में कीव ने 2042 तक बेड़े पर मास्को के अनुबंध को नये सिरे से अनुबंध किया। लेकिन रूसी समर्थक राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच के 2014 में यूक्रेन से भाग जाने के बाद, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को डर था कि यह समझौते से पीछे हट सकता है। वहीं यूक्रेन को लेकर रूस को नाटो के विस्तार की संभावना का अंदेशा है।
बता दें कि यूक्रेन में अधिक संख्या में रूसी आबादी है। मास्को ने पिछले एक दशक में 500,000 से अधिक लोगों को रूसी पासपोर्ट प्रदान करके इस समुदाय का समर्थन किया है। 2001 में आयोजित हुई जनगणना के अनुसार यूक्रेन में लगभग आठ मिलियन रूसी रहते हैं। जिसमें ज्यादातर दक्षिण और पूर्व में रहते हैं।
दक्षिणपूर्वी यूक्रेन में अलगाववादियों को समर्थन देने को लेकर व्लादिमीर पुतिन का तर्क है कि वो जातीय रूसियों के हितों की रक्षा कर रहे हैं। एक डर है यह भी है कि पुतिन अन्य पड़ोसी राज्यों पर नियंत्रण हासिल करने के लिए यूक्रेन की तरह की रणनीति अपनाएंगे। जैसा कि 2006 में क्रीमिया और जॉर्जिया दोनों में किया गया था।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि नाटो के विस्तार की संभावना से रूस खतरे के तौर पर देख रहा है। 1990 के दशक में, रूस को नाटो से कई आश्वासन मिले कि वह विस्तार नहीं करेगा। हालांकि इसके बाद भी 1997 के बाद से गठबंधन में चेक गणराज्य, पोलैंड, बुल्गारिया और रोमानिया सहित कई राज्यों को शामिल किया गया है। ऐसे में विस्तारवादी नीति के डर से माना जा रहा है कि रूस यूक्रेन पर हमला करने पर मजबूर हुई है।
इसके अलावा एक पक्ष यह भी है कि रूस का राष्ट्रपति बनने के बाद से ही व्लादिमीर पुतिन कहते आए हैं कि सोवियत संघ का विघटन ऐतिहासिक भूल जैसी थी। वो सोवियत संघ वाले दिन लौटाना चाहते हैं। वो विस्तार की अपनी रणनीति को आगे बढ़ाने पर काम कर रहे हैं। इसमें पुतिन कुछ हद तक कामयाब होते भी दिख रहे हैं।