Bangladesh News: बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को 5 अगस्त को सत्ता से बेदखल कर दिया था। वह अपने देश को छोड़कर भारत में आ गई थीं। इसके ठीक पांच महीने के बाद में यानी 5 फरवरी को भीड़ ने धानमंडी में मौजूद बंगबंधु स्मारक को गिरा दिया। इतना ही नहीं इस इमारत में उपद्रवियों ने आग भी लगा दी। धनमंडी 32 बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान के रहने की जगह थी। वह बांग्लादेश के संस्थापक थे। इसी घर से मुजीब ने 1960 के दशक में 1971 में अपनी गिरफ्तारी तक पाकिस्तान के खिलाफ एक आंदोलन का नेतृत्व किया था। यह सभी राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र का था। यहीं पर बांग्लादेशी सेना के विद्रोही अधिकारियों ने बंगबंधु, उनकी पत्नी, बेटों और 10 साल के पोते की हत्या कर दी थी। शेख हसीना और रेहाना उस वक्त विदेश में थी। इसी वजह से वह बच गई थी। 1994 में हसीना ने इस इमारत को संग्रहालय में बदल दिया।

पहले भी मुजीब की विरासत को टारगेट किया गया

यह कोई पहली बार नहीं है कि हसीना विरोधी प्रदर्शनकारियों ने मुजीब की विरासत को टारगेट किया है। 1975 में अपनी हत्या से पहले तीन सालों में मुजीब ने बांग्लादेश के राष्ट्रीय चरित्र को नया आकार देने और इसे पाकिस्तानी परंपराओं से अलग करने की भरसक कोशिश की। इसमें बांग्लादेश के उन सैन्य अधिकारियों दूर करने की कोशिश करना शामिल था, जिन्होंने मुक्ति संग्राम में हिस्सा नहीं लिया था।

कुछ हलकों में इसका विरोध होना भी तेज हो गया। इसकी वजह से मुजीब की हत्या हुई और साल 1975 में तख्तापलट हुआ। इसके बाद जनरल जियाउर रहमान ने सत्ता संभाली। इन्होंने मुजीब की कई नीतियों को खत्म कर दिया। उन्होंने मुख्यधारा की राजनीति में जमात-ए-इस्लामी जैसी पार्टियों को ज्यादा तरजीह दी। यह 1991-96 और 2001-06 में जियाउर की पत्नी खालिदा जिया की बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी सरकारों के तहत जारी रहा।

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शेख हसीना ने इस्लामी पार्टियों पर शिकंजा कसा

इसी के संदर्भ में शेख हसीना की राजनीति को भी समझना चाहिए। 2009 में सत्ता पर काबिज होने के बाद में उन्होंने इस्लामी पार्टियों पर शिकंजा कसा और यह तय किया कि उन्हें चुनावी मैदान से हटा दिया जाए। अवामी लीग ने हसीना की राजनीति को वैध बनाने के लिए मुजीब की विरासत पर बहुत ज्यादा भरोसा किया। यह 2014 के बाद से हर एक चुनाव के साथ विवादास्पद होती गई। हसीना प्रशासन ने जो कुछ भी किया, अच्छा या बुरा, वह मुजीब के नाम पर था। इसकी वजह से मुजीब की विरासत की रक्षा करना सबसे खास हो गया। इस उद्देश्य से हसीना प्रशासन ने डिजिटल सुरक्षा अधिनियम, 2018 जैसे कानून पारित किए। इसकी धारा 21 के अनुसार मुक्ति संग्राम के खिलाफ किसी भी तरह का प्रचार या अभियान करने पर 10 साल तक की कैद और 1 करोड़ टका तक के जुर्माने का प्रावधान है।

फरवरी 2024 में शेख हसीना के खिलाफ आंदोलन ने पकड़ी तेजी

फरवरी 2024 तक हसीना विरोधी प्रदर्शनों ने काफी तेजी पकड़ ली। प्रधानमंत्री से जुड़ी हर चीज पर हमले होने लगे। विपक्ष पर हसीना के सालों लंबे दमन लोगों में काफी नाराजगी पैदा की। जब नाराज़गी उबल पड़ी, तो बांग्लादेश के लोगों ने हसीना की राजनीति के मूल आधार को ही नकार दिया। यही कारण है कि छात्र प्रदर्शनकारियों की आलोचना करते समय हसीना द्वारा रजाकार शब्द का इस्तेमाल कारगर साबित नहीं हुआ। “अमी के? तुमी के? रजाकार रजाकार” उन्होंने नारा लगाया और गर्व से उस शब्द को माना जिसे लंबे समय से बांग्लादेश की राजनीति में सबसे भयानक गाली के रूप में देखा जाता रहा है।

लंबे समय से दबे-कुचले कट्टरपंथी और इस्लामवादी तत्वों को स्टूडेंट्स अगेंस्ट डिस्क्रिमिनेशन के नेतृत्व में हो रहे विरोध प्रदर्शनों में जगह मिल गई। इससे हालात और खराब हो गए। 5 अगस्त को जब प्रदर्शनकारी हसीना के आवास के पास पहुंचे, तो मुजीब की मूर्तियों को गिरा दिया गया। आसान भाषा में कहें तो बांग्लादेश के संस्थापक पिता के रूप में मुजीब के लिए बांग्लादेशियों की श्रद्धा, उनके नाम पर उनकी बेटी की तानाशाही की वजह से खत्म हो गई।

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अगस्त में धानमंडी 32 में जो हुआ, वह हसीना विरोधी भावनाओं का नतीजा था। पिछले छह महीनों में अंतरिम सरकार को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। इसमें मोहम्मद यूनुस की खुद की वैधता के बारे में सवाल शामिल हैं। यूनुस सरकार ने कई मुद्दों को लेकर भारत पर दबाव बनाया है। वह चाहते हैं कि भारत बांग्लादेश को शेख हसीना प्रत्यर्पित कर दें। हसीना ने 2010 में जो संस्थाएं स्थापित की थीं। उन्हें भी उनके खिलाफ कर दिया है। इसमें आईसीटी का नाम भी शामिल है।

आईसीटी ने शेख हसीना के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किए

आईसीटी का मकसद 1971 के युद्ध की जांच करना था। आईसीटी ने शेख हसीना के खिलाफ कई सारे गिरफ्तारी वारंट जारी किए हैं। मुजीब की विरासत को नष्ट करने पर नए सिरे से फोकस करना है। इसमें मुजीब से जुड़ी सभी चीजों को फासीवाद के तौर पर पेश करना है। इसका सबसे अच्छा उदाहरण सरकार द्वारा मुजीब से जुड़ी हसीना-युग की आठ राष्ट्रीय छुट्टियों को रद्द करना है। इसमें 15 अगस्त को मुजीब की हत्या की सालगिरह पर होने वाली छुट्टियां भी शामिल हैं।

साथ ही, सरकार ने ढाका के नेशनल प्रेस क्लब में उर्दू गीतों और कविताओं के साथ मुहम्मद अली जिन्ना की 76वीं पुण्यतिथि मनाने की इजाजत दी। यह बंगाली मुसलमानों पर पश्चिमी पाकिस्तान के भाषाई और सांस्कृतिक थोपने के खिलाफ बांग्लादेश के संघर्ष के खिलाफ है। अगर 2024 के हसीना विरोधी प्रदर्शनों में हसीना के पिता को निशाना बनाया गया था, तो हालिया घटनाक्रम ‘राष्ट्रपिता’ के खिलाफ है। सरकार के कदमों का सबसे बड़ा असर यह हुआ है कि बंगबंधु के घर को नष्ट करने वाले चरमपंथियों को अब मुजीब को निशाना बनाने की खुली छूट मिल गई है। हिंसा के बाद शेख हसीना ने समर्थकों को किया संबोधित पढ़ें पूरी खबर…