नेपाल में के.पी. शर्मा ओली शासन की दमनकारी कार्रवाइयों से नाराज ‘जेन-जी’ प्रदर्शनकारियों ने मंगलवार को सरकारी इमारतों, प्रमुख राजनीतिक दलों के कार्यालयों और कई पूर्व प्रधानमंत्रियों सहित शीर्ष राजनीतिक नेताओं के घरों और दफ्तरों में आग लगा दी। कर्फ्यू का उल्लंघन करते हुए काठमांडू और नेपाल के कुछ अन्य शहरों की सड़कों पर उतरे प्रदर्शनकारियों ने कई मंत्रियों और राजनेताओं पर हमला कर उन्हें घायल कर दिया। सैन्य हेलीकॉप्टरों ने ओली मंत्रिमंडल के सदस्यों समेत निशाने पर आए अधिकतर नेताओं को सुरक्षित निकाला।

नेपाल की सड़कों पर प्रदर्शनकारी कौन हैं और वे क्यों नाराज हैं?

कुछ महीने पहले, ‘नेक्स्ट जेनरेशन नेपाल’ सहित कई फेसबुक पेजों पर नेपाल की गंभीर राजनीतिक स्थिति और उच्च पदों पर व्याप्त भ्रष्टाचार के ख़िलाफ पोस्ट आने लगे। इन पोस्टों को कोई विशिष्ट व्यक्ति आगे नहीं बढ़ा रहा था, लेकिन यह साफ दिख रहा था कि इनमें अधिकतर 1996 और 2012 के बीच जन्मी पीढ़ी – यानी ‘जेनरेशन जेड’ – के लोग थे। युवाओं, किशोरों और 20 से 30 वर्ष आयु वर्ग के लोगों ने भ्रष्ट राजनीतिक व्यवस्था के प्रति अपना गुस्सा और निराशा व्यक्त की। उन्होंने यह सवाल भी उठाया कि 2008 में गणतंत्र बनने के बाद से सत्ता में बारी-बारी से बैठे नेताओं ने खुद को जाँच और जवाबदेही से क्यों बचा रखा है।

आलोचना का बड़ा हिस्सा वरिष्ठ राजनेताओं के बच्चों और आश्रितों की ऐशोआराम भरी जीवनशैली पर केंद्रित था। ‘नेपो बेबीज़’ और ‘नेपो किड्स’ जैसे शब्द ऑनलाइन ट्रेंड करने लगे। कुछ हफ्ते पहले, सरकार ने फेसबुक, व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम, एक्स और यूट्यूब सहित 26 प्रमुख सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर प्रतिबंध लगा दिया। वजह यह बताई गई कि उन्होंने तय समय सीमा में पंजीकरण नहीं कराया था।

यह डिजिटल प्रतिबंध जेनरेशन जेड से उनकी सबसे अहम आवाज़ उठाने की जगह छीनने जैसा था। वे इन्हीं प्लेटफ़ॉर्म्स पर ग़ुस्सा ज़ाहिर करते, टिप्पणी करते और आपसी एकजुटता बनाते थे। इस रोक ने उनके आक्रोश को और भड़का दिया।

सोमवार को यह गुस्सा फूट पड़ा, जब बड़ी संख्या में युवा सड़कों पर उतरे और पुलिस-सुरक्षा बलों की गोलीबारी में 19 लोग मारे गए। प्रदर्शनकारियों की मुख्य मांग सोशल मीडिया पर लगा प्रतिबंध हटाने की थी, जो सोमवार शाम तक पूरी कर दी गई। हालांकि, उनके गुस्से की असली जड़ भ्रष्टाचार, सामाजिक असमानता और रोज़गार की कमी थी।

मंगलवार को किनके घरों पर हुआ हमला?

प्रदर्शनकारियों ने संसद भवन के पास रैली करने की योजना बनाई थी, लेकिन सोमवार को सरकार द्वारा ज़रूरत से ज़्यादा बल प्रयोग किए जाने से हालात बेकाबू हो गए। ग़ुस्साए युवाओं में से कुछ हथियारों से लैस थे और उन्होंने प्रमुख राजनीतिक हस्तियों, सरकारी इमारतों और सत्ता के प्रतीकों को निशाना बनाया।

उन्होंने कम से कम पांच पूर्व प्रधानमंत्रियों – ओली, पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’, माधव कुमार नेपाल, झाला नाथ खनल और शेर बहादुर देउबा – के घरों को आग लगा दी या तोड़फोड़ की। सेना ने उन्हें बचाया, लेकिन उससे पहले कुछ नेताओं के साथ मारपीट भी की गई। पूर्व प्रधानमंत्री खनल की पत्नी राज्यलक्ष्मी चित्रकार के काठमांडू स्थित घर में आग लगा दी गई, जिसमें वे गंभीर रूप से झुलस गईं।

देउबा और उनकी पत्नी आरज़ू देउबा, जो नेपाल की विदेश मंत्री हैं, पर हमला किया गया और पूर्व प्रधानमंत्री गंभीर रूप से घायल हो गए। वित्त मंत्री बिष्णु प्रसाद पौडेल और सांसद एकनाथ ढकाल, जो दोनों ओली के करीबी हैं, को कपड़े उतारकर सड़क पर परेड कराया गया। पश्चिमी नेपाल के धनगढ़ी स्थित आरज़ू देउबा का घर और चितवन स्थित प्रचंड का आवास जमींदोज कर दिया गया।

प्रदर्शनकारियों ने काठमांडू घाटी के ललितपुर स्थित नक्खू सेंट्रल जेल में भी आग लगा दी और राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी (आरएसपी) के प्रमुख तथा ओली के कट्टर आलोचक रबी लामिछाने को, जो वहां कैद थे, रिहा कर दिया।

सरकार के इस्तीफ़ा देने के बाद अब नेपाल की सत्ता किसके हाथ में है?

मंगलवार तक आगे का कोई स्पष्ट रास्ता दिखाई नहीं दे रहा था। संसद भंग करने की मांग उठ रही थी। इस अभूतपूर्व स्थिति ने संवैधानिक संकट को और गहरा कर दिया तथा मौजूदा व्यवस्था और संविधान के पतन की आशंका को बढ़ा दिया। सेना प्रमुख जनरल अशोक राज सिगडेल ने शांति की अपील की है और माना जा रहा है कि उन्होंने काठमांडू के मेयर बालेन शाह सहित अन्य नेताओं से राष्ट्रीय सुलह की दिशा में आगे बढ़ने का आग्रह किया है।

क्या सेना कोई महत्वपूर्ण राजनीतिक भूमिका निभा सकती है?

नेपाल की सेना ने घोषणा की है कि वह मंगलवार शाम से सुरक्षा अभियानों की कमान संभालेगी और जनता से सहयोग की अपील की है। यह संभावना कम है कि सेना प्रत्यक्ष राजनीतिक भूमिका निभाएगी। हालाँकि, सरकार की अनुपस्थिति में शांति और सौहार्द बनाए रखने के साथ-साथ उसे राजनीतिक दलों के बीच संवाद को सुगम बनाने की ज़िम्मेदारी भी उठानी होगी।

इस संकट में नेपाल का राजनीतिक विपक्ष कहां खड़ा है?

प्रदर्शनकारियों ने देश के लगभग सभी वरिष्ठ राजनीतिक नेताओं को निशाना बनाया है। तीस वर्षीय पूर्व रैपर बालेन शाह और पूर्व टेलीविज़न एंकर व आरएसपी नेता रबी लामिछाने ने जेनरेशन ज़ेड प्रदर्शनकारियों के प्रति समर्थन जताया है। वहीं, राजशाही समर्थक राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी (आरपीपी) सामूहिक रूप से संसद से इस्तीफ़ा देने पर विचार कर रही है।

क्या नेपाल के पूर्व नरेश की वर्तमान स्थिति में कोई भूमिका है?

पूर्व नरेश ज्ञानेंद्र शाह ने हिंसा में अपने एक या अधिक प्रियजनों को खोने वाले परिवारों के प्रति संवेदना व्यक्त की है और घायलों के शीघ्र स्वस्थ होने की कामना की है। उन्होंने सभी पक्षों से मिलकर इस संकट का समाधान निकालने की तत्काल अपील भी की है। इससे संकेत मिलता है कि वह देश के गणतंत्र-पूर्व संविधान में नरेश के लिए तय की गई भूमिका के समान कोई भूमिका निभाने के लिए तैयार हो सकते हैं। राजनीतिक एजेंडे पर निर्णय होने के बाद एक अंतरिम सरकार के गठन की संभावना है।

भारत इस स्थिति को कैसे देख रहा है?

भारत अपने पड़ोसी देश के जलते हालात से बेहद चिंतित है। लेकिन उसे एक नाज़ुक स्थिति का सामना करना पड़ेगा, क्योंकि नेपाल की राजनीति के कुछ पक्षों से उसकी नजदीकी अधिक मानी जाती है। भारत ने राजशाही और नेपाली कांग्रेस के साथ अपनी पारंपरिक सद्भावना तब खो दी थी जब उसने राजशाही को समाप्त करने और माओवादियों को नेपाली राजनीति के केंद्र में लाने की अंतरराष्ट्रीय पहल का नेतृत्व किया था।