बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया के बेटे और बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी के चेयरमैन तारिक रहमान 17 साल निर्वासित जीवन जीने के बाद ढाका लौट आए हैं। उनकी वापसी ढाका में बीएनपी के कार्यकर्ता जुलूस निकाल रहे हैं। माना जा रहा है कि तारिक रहमान बोगुड़ा-6 (सदर) सीट से चुनाव लड़ सकते हैं जबकि बीएनपी अध्यक्ष जिया अपने मजबूत गढ़ बोगुड़ा-7 (गाबतली-शाजहानपुर) से एक बार फिर चुनाव लड़ेंगी।
कौन हैं तारिक रहमान? : 20 नवंबर 1967 को जन्मे तारिक रहमान के पिता जियाउर रहमान बांग्लादेश के छठे राष्ट्रपति और बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) के संस्थापक थे। राजनीतिक सत्ता संघर्ष और सैन्य असंतोष की वजह से 30 मई 1981 को जियाउर रहमान की हत्या कर दी गई थी।
तारिक रहमान ने 1990 के दशक में सक्रिय राजनीति में प्रवेश किया। साल 2001 में BNP के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार के सत्ता में आने के बाद उनकी राजनीतिक ताकत तेजी से बढ़ी। उस समय उन पर पार्टी और सरकार में पर्दे के पीछे से प्रभाव डालने के आरोप लगे। कई राजनीतिक विश्लेषकों ने उन्हें BNP की संगठनात्मक रणनीति का मुख्य सूत्रधार बताया।
विवादों से भरा रहा तारिक रहमान का सियासी सफर
हालांकि, उनका राजनीतिक सफर विवादों से भी घिरा रहा है। साल 2004 के ग्रेनेड हमले सहित कई मामलों में उनका नाम सामने आया। इसके अलावा भ्रष्टाचार के कई मामलों में बांग्लादेश की अदालतों ने उन्हें दोषी ठहराया।
साल 2007 में आपातकाल के दौरान उनकी गिरफ्तारी हुई, जिसके बाद इलाज के लिए वह लंदन चले गए। तब से वह ब्रिटेन में निर्वासन जैसी स्थिति में रह रहे। BNP का दावा है कि तारिक रहमान राजनीतिक प्रतिशोध का शिकार हुए हैं, जबकि सत्तारूढ़ अवामी लीग उन्हें कानून से भागा हुआ अपराधी बताती है।
क्या तारिक रहमान का बांग्लादेश लौटना भारत के लिए अच्छा?
अतीत में खालिदा जिया की सरकार के दौरान भारत और बांग्लादेश के रिश्ते में वो गर्मजोशी नहीं थी, जो शेख हसीना के कार्यकाल के दौरान रही। ऐसे में तारिक रहमान का ढाका लौटना भारत के लिए कैसा रहेगा यह आने वाले समय में ही पता चलेगा।
तारिक रहमान की वापसी ऐसे समय में हुई है, जब भारत समर्थक अवामी लीग चुनाव लड़ने से बाहर है और पार्टी प्रमुख खालिदा जिया गंभीर रूप से बीमार हैं। वहीं अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस के कार्यकाल में कट्टर इस्लामी संगठनों की सक्रियता और भारत विरोधी बयानबाजी बढ़ी है।
भारत के लिए सबसे बड़ी चिंता जमात-ए-इस्लामी है। जमात को पाकिस्तान की आईएसआई से नजदीकी रखने वाला माना जाता है। हालिया जनमत सर्वे में जहां बीएनपी को सबसे ज्यादा सीटें मिलने की संभावना जताई गई है, वहीं जमात उसके पीछे कड़ी टक्कर देती दिख रही है। ढाका विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव में जमात की छात्र इकाई की जीत ने भारत की चिंता और बढ़ा दी है।
ऐसे हालात में भारत बीएनपी को तुलनात्मक रूप से अधिक उदार और लोकतांत्रिक विकल्प के रूप में देख रहा है। नई दिल्ली को उम्मीद है कि रहमान की वापसी से बीएनपी मजबूत होगी और वह सरकार बना सकती है। भारत को यह भी उम्मीद है कि बीएनपी के सत्ता में आने से बांग्लादेश की विदेश नीति में संतुलन आएगा और द्विपक्षीय संबंधों में सुधार होगा।
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