व्हाइट हाउस में 111 साल पुरानी परंपरा को बदला जा रहा है, अब राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से पत्रकारों को सवाल पूछना काफी मुश्किल हो जाएगा। मुश्किल इसलिए क्योंकि अब व्हाइट हाउस में पत्रकारों की एंट्री ही काफी चुनौतीपूर्ण हो जाएगी। जिस मीडिया मूल में पहले रॉयटर्स, एपी जैसी न्यूज एजेंसियों को रखा जाता था, जिनके सहारे दूसरे मीडिया संस्थाओं को खबरें मिलती थीं, अब उन्हीं एजेंसियों को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है।
ट्रंप मीडिया पर लगाएंगे सेंसरशिप?
जानकार मानते हैं कि राष्ट्रपति ट्रंप की यह बदली हुई नीति अमेरिका में सेंसरशिप के नए दौर की शुरुआत करवा सकती है। अब व्हाइट हाउस की प्रेस सेकरेट्री कैरोलिन लेविट का तर्क है कि राष्ट्रपति ट्रंप के संदेश को सही लोगों तक सही समय में पहुंचाना जरूरी है। ऐसे में पॉडकास्टर, सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर और न्यूज कॉन्टेंट क्रिएटर्स को प्रेस पूल शामिल किया जाएगा। प्रेस पूल में गिनकर 10 पत्रकारों को रखा जाता है, 111 सालों से ऐसी ही परंपरा चली आ रही है। लेकिन अब ये 10 पत्रकार कौन होंगे, यह तय करने का अधिकार अब राष्ट्रपति ट्रंप के पास रहने वाला है, उनके आला अधिकारी पसंद मुताबिक चयन करने वाले हैं।
अमेरिका के साथ टैरिफ पर बनेगी बात?
बड़ी बात यह है कि इस तरह की सेंसरशिप सिर्फ व्हाइट हाउस तक सीमित नहीं रहने वाली है बल्कि ओवल ऑफिस, प्रेस ब्रीफिंग रूम और राष्ट्रपति के विशेष विमान ‘एयर फोर्स वन’ में भी देखने को मिलेगी। यानी कि जहां-जहां ट्रंप जाएंगे, उनके पसंद के पत्रकार साथ होंगे, सवाल भी सिर्फ वही पूछे जाएंगे जो उनके पसंद के रहेंगे। समझने वाली बात यह है कि अभी तक तो एक संगठन तय करता था कि कौन से पत्रकार प्रेस पूल में शामिल किए जाएंगे।
मीडिया के लिए पहले क्या नियम था?
कई सालों से यह जिम्मेदारी व्हाइट हाउस कॉरेस्पॉन्डेंट एसोसिएशन (WHCA) के पास थी। यह संगठन निष्पक्ष तरीके से पत्रकारों का चयन करता था और उन्हें व्हाइट हाउस कवर करने का मौका मिलता था। लेकिन अब राष्ट्रपति की टीम तय करेगी कि कौन से पत्रकार होंगे, उनकी टीम तय करेगी कि कौन से सवाल पूछे जाएंगे। प्रेस पूल ने तो एक जारी बयान में इस फैसले की कठोर शब्दों में निंदा की है, स्वतंत्रता पर सबसे बड़ा हमला बता दिया है। वैसे हमला तो ट्रेड वॉर के जरिए भी लगातार हो रहा है। चीन इसका सबसे बड़ा शिकार हुआ है और जानने के लिए इस खबर का रुख करें