बांग्लादेश में 18 दिसंबर को एक कपड़ा फैक्ट्री में काम करने वाले दीपू चंद्र दास की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई। पुलिस ने इस मामले में कई गिरफ्तारियां की हैं। हालांकि, दीपू के परिवार को अभी तक शांति या राहत नहीं मिली हैं। दीपू के भाई अपू ने कहा, “मेरे भाई के साथ जो हुआ वह कल्पना से परे है। करीब 140 लोगों की हिंसक भीड़ ने मेरे भाई पर जिस तरह से हमला किया, वैसा जानवरों के साथ भी नहीं किया जाता।”
दीपू मयमनसिंह के भालुका इलाके में स्थित पायनियर निटवेअर्स लिमिटेड नाम के कपड़ा कारखाने में काम करता था। 18 दिसंबर की रात करीब 9 बजे भीड़ कारखाने में आ गई। वे उसे घसीटकर बाहर लाए और बांस की लाठियों और घूंसे मारकर उसकी हत्या कर दी। इसके बाद उसके शव को सड़क के किनारे जमीरदिया चौक तक ले जाया गया, जहां उसे एक पेड़ से लटका दिया गया और सबके सामने जला दिया गया।
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, पुलिस देर से पहुंची, तब तक जलते हुए शव के चारों ओर भीड़ जमा हो चुकी थी। अपू ने बताया, “शव को निकालने के लिए भी उन्हें भीड़ को हटाना पड़ा।” शव को अस्पताल के पोस्ट मार्टम हाउस ले जाया गया और अगले दिन परिवार को सौंप दिया गया, जिसने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई। लेकिन परिवार का कहना है कि इसके बावजूद उन्हें सम्मान नहीं दिया गया।
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मेरे बुजुर्ग माता-पिता पूरी तरह टूट चुके हैं- दीपू चंद्र के भाई
अपू ने बताया, “कुछ लोगों ने परिवार के सदस्यों को मेरे भाई के अंतिम संस्कार से पहले उन्हें आखिरी बार देखने नहीं दिया। हमें शव को तुरंत श्मशान घाट ले जाना पड़ा। मेरे बुजुर्ग माता-पिता पूरी तरह से टूट चुके हैं।” भीड़ ने दीपू पर सोशल मीडिया पोस्ट में इस्लाम का अपमान करने का आरोप लगाया था, इसी आरोप ने हिंसा को जन्म दिया। अपू ने कहा, “वह कभी भी कुछ आपत्तिजनक पोस्ट नहीं कर सकता था। वह हमेशा सभी धर्मों का सम्मान करता था।”
इस दावे का समर्थन अब आरएबी ने भी किया है, जो मामले की जांच कर रही है। आरएबी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने पुष्टि की कि “दीपू द्वारा सोशल मीडिया पर ऐसी किसी पोस्ट का कोई सबूत नहीं मिला है।” एजेंसी इस संभावना की भी जांच कर रही है कि सांप्रदायिक हिंसा भड़काने के लिए जानबूझकर गलत सूचना फैलाई गई थी।
हमें तो यह भी नहीं पता कि अब कैसे जिएं- अपू
अब तक बारह लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है। सोमवार को उन्हें स्थानीय अदालत में पेश किया गया। अपू खुद दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम करता है और उसकी कोई निश्चित आमदनी नहीं है। हत्या के अगले दिन, 19 दिसंबर को उसने भालुका मॉडल पुलिस स्टेशन में औपचारिक रूप से शिकायत दर्ज कराई। उसका कहना है कि अधिकारियों ने उसे न्याय दिलाने का आश्वासन दिया है, लेकिन वह मानता है कि हिंसा और उसके बाद उसके समुदाय के कई लोगों की चुप्पी ने उसे अंदर तक झकझोर दिया है। उसने कहा, “हमें बताया गया है कि न्याय मिलेगा। लेकिन जो हमने देखा, उसके बाद हम इस पर कैसे विश्वास कर सकते हैं? हमें तो यह भी नहीं पता कि अब कैसे जिएं।”
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