अमेरिकी चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की है। अभी तक के ट्रेंड में ही वे जादुई आंकड़े से आगे निकल चुके हैं, ऐसे में उनका फिर राष्ट्रपति बनना तय है। अब डोनाल्ड ट्रंप का राष्ट्रपति बनना वैसे तो भारत के लिए भी फायदे का सौदा है, उनकी विचारधारा पीएम मोदी से मेख खाती है, उनके कई मुद्दों पर स्टैंड भारत के लिए मुफीद साबित हो सकते हैं। लेकिन सबकुछ इतना अच्छा भी नहीं रहने वाला है। रूस के साथ भारत की दोस्ती अब अमेरिका को अखरने वाली है।
भारत का दोस्त रूस, अमेरिका को नहीं पसंद
असल में व्हाइट हाउस की एक नीती तो स्पष्ट दिख रही है, भारत रूस के ज्यादा व्यापारिक संबंध ना बनाए, इससे उलट वो अमेरिका से ही ज्यादा से ज्यादा सामान खरीदे। अगर भारत को हथियार चाहिए तो भी अमेरिका को ही पहली प्राथमिकता दी जाए। इसी तरह अगर सस्ते तेल की आशा भी भारत रखता है तो रूस से तो वो ना ही लिया जाए। अब यह वो नीति है जो बाइडेन प्रशासन के दौरान भी दिखी और उससे पहले ट्रंप कार्यकाल के दौरान भी। असल में रूस के साथ क्योंकि अमेरिका के रिश्ते ज्यादा अच्छे नहीं है, उस वजह से वो नहीं चाहता कि भारत ज्यादा नजदीकियां पुतिन के देश के साथ रखे।
पिछले कार्यकाल में ट्रंप ने दी थी चेतावनी
अब जब फिर डोनाल्ड ट्रंप ही राष्ट्रपति बनने जा रहे हैं, भारत और रूस के रिश्तों पर असर पड़ना तय है। जानकार मानते हैं कि ट्रंप ने पिछले कार्यकाल के दौरान भी भारत पर दबाव बनाया था, तब ईरान से कच्चा तेल ना लेने के लिए कहा गया था। उस समय भारत पर दबाव बनाने के लिए उनकी तरफ से कई एक्शन लिए गए थे, अब फिर वैसे ही कयास लगने लगे हैं।
भारत रूस से कैसे लेता सस्ता तेल?
बड़ी बात यह है कि भारत ने तब अमेरिका की एक नहीं सुनी थी, किसी भी चेतावनी को खुद पर हावी होने नहीं दिया था, उसी का नतीजा रहा कि जब सप्लाई चेन बाधित चल रही थी, भारत लगातार रूस से सस्ता तेल आयात करता रहा। एक आंकड़ा बताता है कि रूस-यूक्रेन युद्ध से पहले भारत पुतिन के देश से ज्यादा तेल आयात नहीं करता था, लेकिन जब जंग की वजह से रूस पर प्रतिबंध लगने शुरू हुए, उसने भारी डिस्काउंट देना शुरू कर दिया था। उसी वजह से भारत ने रणनीति बदली और सस्ते तेल के लिए पुतिन से संपर्क साधा।
अमेरिका को क्या आपत्ति है?
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सितंबर का ही आंकड़ा बता रहा है कि रूस से आयात होने वाले क्रूड ऑयल में 11.7 फीसदी का इजाफा हुआ है। प्रति दिन 1.9 बैरल तेल रूस से लिया जा रहा है। जब से पश्चिमी देशों ने रूस से तेल लेना बंद किया है, भारत ने आपदा में अवसर तलाशते हुए सारा फायदा लेने की कोशिश की। लेकिन ट्रंप शायद इसे ज्यादा दिनों तक चलने ना दें। उनकी नीति तो कहती है कि जो अमेरिका के खिलाफ जाएगा, उसे किसी भी कीमत पर बख्शा नहीं जाएगा।
100% टैरिफ लगाने वाली धमकी क्या है?
भारत के लिए चिंता का सबब यह भी है कि अगर डॉलर में व्यापार नहीं किया गया तो उस स्थिति में भी ट्रंप 100 फीसदी टैरिफ लगा सकते हैं। असल में रूस और भारत के बीच जो बातचीत चल रही है, उसमें रुपये और रूबल में व्यापार करने के सिस्टम को तैयार करने को लेकर मंथन जारी है। अभी तक कोई सहमति नहीं बनी है, लेकिन चर्चा जरूर हुई है। अब रूस और भारत तो चाहते हैं कि दुनिया की डॉलर पर निर्भरता कम हो जाए, लेकिन ट्रंप अपने ही देश की करेंसी को रिप्लेस होते हुए नहीं देख सकते।
बिजनसमैन अप्रोच से आगे बढ़ते हैं ट्रंप
इसी वजह से उन्होंने साफ कर दिया है कि अगर डॉलर में व्यपार नहीं होगा तो 100 फीसदी टैरिफ के लिए भी तैयार रहना होगा। यह ट्रंप की कोई आज की नीति नहीं है, वे तो पिछले कार्यकाल के दौरान भी ऐसा ही रुख रखते थे। उनका बिजनसमैन वाला दिमाग हमेशा मुनाफे के बारे में सोचता है और उनके लिए सिर्फ और सिर्फ अमेरिका का हित मायने रखता है। उनके इसी अंदाज की वजह से भारत की अमेरिका पर निर्भरता आने वाले दिनों में और ज्यादा बढ़ सकती है।
हथियारों पर रूस नहीं अमेरिका पर निर्भरता?
असल में रूस से भारत सिर्फ अभी तेल आयात नहीं कर रहा है, वो एक पुराना डिफेंस साझेदार भी है। कई मिसाइलें रूस से हमे मिलती हैं, लेकिन अमेरिका को यह रिश्ता भी रास नहीं आता। वो चाहता है कि भारत की डिफेंस जरूरतें भी अमेरिका से ही पूरी हों। इसी वजह से पिछले कुछ सालों में भारत ने कई अत्याधुनिक हथियार अमेरिका से लिए हैं, फिर चाहें बात 31 MQ-9B ड्रोन की हो या फिर अपाचे और चीनुक हेलीकॉप्टर की। अब ट्रंप कार्यकाल में भी डिफेंस के क्षेत्र में साझेदारी आगे बढ़ सकती है।
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