अमेरिका के एक शीर्ष विशेषज्ञ ने कहा कि अमेरिका को सीधा हस्तक्षेप करने की बजाए लश्कर ए तैयबा पर कार्रवाई के लिए पाकिस्तान पर दबाव डालना चाहिए। उन्होंने साथ ही आगाह किया कि 26-11 मुंबई आतंकी हमले जैसे किसी दूसरे हमले से भारत-पाक शांति प्रक्रिया की दिशा में हो रही कोशिशें बेकार हो जाएंगी। अमेरिकी थिंक टैंक सेंटर फोर ए न्यू अमेरिकन सेक्युरिटी के अध्यक्ष रिचर्ड फोन्टैन ने वाल स्ट्रीट जर्नल अखबार में लिखा है। इस्लामाबाद और नई दिल्ली जनवरी में औपचारिक, समग्र वार्ता की तैयारी में जुटे हैं। ऐसे में अमेरिका को उनके प्रयासों का शांतिपूर्वक सहयोग करना चाहिए।
उन्होंने लिखा, ‘लेकिन ओबामा प्रशासन को वार्ता में सीधे हस्तक्षेप की किसी इच्छा को रोकना चाहिए।’ फोन्टैन ने कहा कि मोदी और उनके पाकिस्तानी समकक्ष नवाज शरीफ अंतरराष्ट्रीय सहयोग चाहेंगे। लेकिन उन्हें अमेरिकी मध्यस्थ की दरकार नहीं है। उन्होंने लिखा कि वाशिंगटन दो तरीके से मददगार हो सकता है, जिनमें पाकिस्तान पर लश्कर ए तैयबा पर कार्रवाई के लिए और भारतीय सामान को अपनी सरजमीं से गुजरने देने की अनुमति देने के लिए दबाव बनाना शामिल है।
फोन्टैन ने कहा, ‘इस बीच, उपयुक्त अमेरिकी जवाब एक मौन समर्थन है। आगे का रास्ता कठिन है लेकिन यदि अतीत प्रस्तावना है तो फिर बात अधर में लटक सकती है। लेकिन यह ठोस कदम उठाकर भारतीय व पाकिस्तानी प्रधानमंत्रियों ने शायद अपने अपने देश व दुनिया को बहुप्रतीक्षित खबर दी है।’ उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लाहौर की आकस्मिक यात्रा ने समस्याग्रस्त भारत पाकिस्तान द्विपक्षीय रिश्ते के लिए ‘उम्मीद की एक नई किरण’ दिखाई है।
फोन्टैन ने कहा, ‘क्रिसमस के दिन नरेंद्र मोदी की आकस्मिक पाकिस्तान यात्रा ने दुनिया को सन्न कर दिया। लाहौर में भारतीय प्रधानमंत्री की अपने समकक्ष से हाथ मिलाते हुए तस्वीरों से समस्याग्रस्त भारत-पाकिस्तान संबंध में आशा की किरण जगी है।’ उन्होंने कहा कि ‘मुंबई जैसा एक और हमला आपदा जैसी स्थिति खड़ी कर सकता है, यह कम से कम व्यापक शांति प्रयासों पर ग्रहण तो लगा ही देगा।’