संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि खुले में शौच करने वाले लोगों की सबसे अधिक संख्या भारत में है और इस चुनौती से निपटने के लिए ‘‘उच्चतम स्तर’’ पर राजनीतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता है। भारत में ऐसे लोगों की संख्या 59.7 करोड़ है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 2019 तक इस चलन को समाप्त करने का वादा किए जाने का जिक्र करते हुए संयुक्त राष्ट्र ने कहा कि महात्मा गांधी के विचारों को साकार करना एक ‘‘महत्वाकांक्षा’’ है जिन्होंने स्वच्छता को ‘‘स्वतंत्रता से ज्यादा महत्वपूर्ण’’ करार दिया था।

दुनिया भर में करीब एक अरब लोग या विकासशील देशों की 5.9 अरब की आबादी का छठा हिस्सा शौचालयों का इस्तेमाल नहीं करता।
संयुक्त राष्ट्र ने आज ‘‘विश्व शौचालय दिवस’’ के मौके पर कहा कि दुनिया भर में खुले में शौच करने वाले एक अरब लोगों में से 82 प्रतिशत यानी करीब 82.5 करोड़ लोग सिर्फ 10 देशों में रहते हैं।

खुले में शौच करने वाले लोगों में सबसे ज्यादा भारत में हैं। ऐसे लोगों की संख्या 59.7 करोड़ है जो देश की कुल आबादी का 47 प्रतिशत है।
इंडोनेशिया में ऐसे लोगों की संख्या 5.4 करोड़, पाकिस्तान में 4.1 करोड़, नेपाल में 1.1 करोड़ और चीन में एक करोड़ है। ऐसे अन्य पांच देश अफ्रीका में हैं। इनमें नाइजीरिया, इथियोपिया, सूडान, नाइजर और मोजाम्बिक शामिल हैं।

संयुक्त राष्ट्र ने ऐसे विकासशील क्षेत्रों में धार्मिक और शिक्षण सहित विभिन्न क्षेत्रों के प्रमुख लोगों का आह्वान किया कि वे सरकारी अधिकारियों के साथ मिलकर काम करें तथा इस चलन पर रोक की दिशा में मदद करें। इसके साथ ही संयुक्त राष्ट्र ने सफाई नहीं होने की स्थिति में खासकर महिलाओं और लड़कियों के लिए,खतरों को रेखांकित किया।

उप महासचिव जान एलियासन ने एक बयान में कहा, ‘‘हमें मालूम है कि इन चुनौतियों को दूर करने के लिए उच्चतम स्तर पर राजनीतिक इच्छाशक्ति महत्वपूर्ण है। हालांकि, हम जानते हैं कि खुले में शौच को समाप्त करने की दिशा में कामयाबी आधारभूत ढांचा से भी आगे की चीज है। इसके लिए सामाजिक तौरतरीके, सांस्कृतिक रवैये और आचरण की समझ की आवश्यकता है।’’

संयुक्त राष्ट्र ने 2019 तक इस चलन पर रोक लगाने और 11.1 करोड़ शौचालयों के संबंध में मोदी के वादे का जिक्र किया और कहा कि महात्मा गांधी के विचारों को साकार करना एक ‘‘महत्वाकांक्षा’’ है जिन्होंने स्वच्छता को ‘‘स्वतंत्रता से ज्यादा महत्वपूर्ण’’ बताया था।

उन्होंने कहा कि साफ और सुरक्षित शौचालय नहीं होने की स्थिति में लड़कियों के बीच में ही स्कूली पढ़ाई छोड़ देने की काफी आशंका होती है। संयुक्त राष्ट्र ने इस संबंध में महिलाओं और लड़कियों को होने वाली परेशानी का विशेष रूप से जिक्र किया।