संयुक्त राष्ट्र की ओर से नियुक्त एक पैनल का कहना है कि दुनियाभर में चल रहे युद्धों और प्राकृतिक आपदाओं की वजह से जरूरतमंदों की संख्या में तेजी से इजाफा हो रहा है। ऐसे लोगों की मदद के लिए सालाना करीब 40 अरब डालर की जरूरत है। मानवीय मदद कोष में 15 अरब डालर की कमी को पूरा करने के उपायों पर चर्चा करते हुए पैनल ने कहा है कि इसके लिए फुटबॉल और अन्य खेलों, संगीत, अन्य मनोरंजन समारोहों, हवाई सफर की टिकटों पर और गैसोलीन पर छोटा सा स्वैच्छिक कर लगाया जा सकता है।
संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बान की-मून ने मानवीय वित्तीय मदद पर पैनल की रिपोर्ट कल जारी की। रिपोर्ट के मुताबिक युद्धों और प्राकृतिक आपदाओं के कारण तबाह हुए 12.5 करोड़ लोगों को जीवन रक्षा से जुड़ी मदद देने के लिए दुनिया लगभग 25 अरब डालर खर्च कर रही है। यह राशि साल 2000 में खर्च की गई, दो अरब डालर की राशि के 12 गुना से भी ज्यादा है। इस नौ सदस्यीय पैनल ने गणना में पाया कि लोगों के कष्टों को कम करने के लिए और उनकी जिंदगियां बचाने के लिए सालाना अतिरिक्त 15 अरब डालर की जरूरत है। रिपोर्ट में यह चेतावनी भी दी गई है कि यदि मौजूदा चलन जारी रहा तो मानवीय मदद पर आने वाला खर्च साल 2030 तक बढ़कर 50 अरब डालर हो जाएगा। रिपोर्ट जारी करने के मौके पर बान ने कहा, ‘यह बड़े संकटों का दौर है।’
दुबई के जिस क्षेत्र में रिपोर्ट पेश करने के कार्यक्रम का आयोजन किया गया, वह क्षेत्र संयुक्त राष्ट्र की आपात मानवीय आपूर्ति और अंतरराष्ट्रीय राहत प्रयासों के लिए एक आपूर्ति केंद्र का काम करता है। कुल 31 पन्नों की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले साल विश्वभर में लोगों को जीवनरक्षक सहायता मुहैया कराने के लिए 25 अरब डालर खर्च किए जाने के बावजूद 16 लाख सीरियाई शरणार्थियों को अपने भोजन में कटौती करनी पड़ी और 7.5 लाख सीरियाई शरणार्थी स्कूल नहीं जा सके। मानवीय मदद को संयुक्त राष्ट्र का सबसे महंगा काम बताते हुए बान ने कहा, ‘मानवीय काम के लिए रिकॉर्ड रकम दी जा रही हैं लेकिन इस दिशा में बरती जा रही उदारता कभी इतनी ज्यादा अपर्याप्त नहीं रही। हम इस तरह नहीं चल सकते।’ बान ने मानवीय मदद को शांतिरक्षक अभियानों से भी महंगा बताया।
यह रिपोर्ट दानदाताओं और सहायता संगठनों से अपील की है कि वे आगे आएं और दीर्घकाल तक कम दांवपेच के साथ ज्यादा नकदी उपलब्ध करवाएं। इसके साथ ही इसमें सहायता संगठनों के ज्यादा पारदर्शी रहने की बात कही गई है ताकि हर कोई देख सके कि ‘धन गया कहां’? रिपोर्ट में कहा गया कि आज की व्यापक अस्थिरता और इसके सीमा पार तक के प्रसार के कारण मानवीय मदद एक वैश्विक सत्कार्य बन गई है।