लंदन स्थित साइंस म्यूजियम के दो ट्रस्टियों ने अडानी ग्रुप की कंपनी को प्रायोजक बनाने के विरोध में इस्तीफा दे दिया। इस्तीफा देने वाले ट्रस्टियों में डॉ. हन्ना फ्राई, डॉ. जो फोस्टर शामिल हैं। फ्राई हन्ना यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। इस्तीफा देने वाले दूसरे ट्रस्टी फोस्टर यूके स्थित चैरिटी इंस्टीट्यूट फॉर रिसर्च इन स्कूल्स के निदेशक हैं। डॉ. हन्ना फ्राई ने कहा कि वह अडानी के साथ हुए समझौते का समर्थन नहीं करती हूं। लिहाजा वह इस्तीफा देने का फैसला कर रही हैं।
अडानी को टाइटल स्पॉन्सर बनाने की घोषणा इस महीने की शुरुआत में ब्रिटिश पीएम बोरिस जॉनसन की उपस्थिति में की गई थी। संग्रहालय में आयोजित वैश्विक निवेश शिखर सम्मेलन के दौरान यह घोषणा की गई थी। साइंस म्यूजियम बोर्ड एक सार्वजनिक निकाय है। इसे ब्रिटेन सरकार के संस्कृति, मीडिया और खेल विभाग से फंड मिलता है। हालांकि सरकारी सहायता मिलने के बावजूद यह स्वतंत्र रूप से काम करता है। उधर, म्यूजियम एडमिनिस्ट्रेशन के हवाले से बताया गया कि दोनों ट्रस्टियों का इस्तीफा तत्काल स्वीकार कर लिया गया है।
इस गैलरी का नाम एनर्जी रेवोल्यूशन द अडानी ग्रीन एनर्जी है। इसे अडानी समूह के अडानी ग्रीन एनर्जी ने प्रायोजित किया है। यह गैलरी 2023 में खुलेगी। सौर ऊर्जा के क्षेत्र में भारत की अडानी ग्रीन एनर्जी का लक्ष्य 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी बनना है। अडानी ग्रीन एनर्जी कंपनी के मुताबिक कम कार्बन उत्सर्जन वाली तकनीकों की मदद से भविष्य में ऊर्जा उत्पादन किया जा सकता है। हवा और सूर्य की असीम ऊर्जा बहुत प्रेरक है और उस ऊर्जा का उपयोग करने की क्षमता अब हमारे पास है। दुनिया जब स्वच्छ ऊर्जा आधारित भविष्य का निर्माण कर रही है, ऐसे में इस यात्रा के इतिहास से बहुत कुछ सीखना है और इस प्रेरणा को दर्शाने के लिए विज्ञान संग्रहालय से बेहतर कौन होगा।
उधर, साइंस म्यूजियम बोर्ड ऑफ ट्रस्टी की चेयर ऑफ द ग्रुप डेम मैरी आर्चर का कहना है कि उन्होंने न चाहते हुए भी इस्तीफे स्वीकार कर लिए हैं। उनका कहना है कि बोर्ड दोनों वैज्ञानिकों के फैसले का सम्मान करता है। उन्होंने अपने तेवरों से उस समय ही अवगत करा दिया था जब बोर्ड मीटिंग हो रही थी। ध्यान रहे कि कुछ अर्सा पहले ही साइंटिस्ट क्रिस रेपले ने एडवाइजरी बोर्ड को अलविदा कह दिया था। उनकी तल्खी भी अडानी ग्रुप की ऑयल व गैस कंपनी को स्पांसरशिप देने को लेकर थी। रेपले 2007 से 2010 तक म्यूजियम के हेड थे। ग्रेटा थनबर्ग भी इसले पर अपने तेवर दुनिया के सामने ला चुकी हैं।