भारत का पड़ोसी द्वीपीय देश श्रीलंका इन दिनों गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रहा है। जरूरी वस्तुओं और खाने-पीने की चीजों तक के लाले पड़े हुए हैं। आयात नहीं हो पाने और विदेशी मुद्रा की कमी से देश की अर्थव्यवस्था पहले से ही कमजोर है। इस बीच भारत के साथ गुपचुप तरीके से दो रक्षा समझौते करने को लेकर सरकार पर बढ़ते दबाव पर रक्षा मंत्रालय को अपनी सफाई देनी पड़ी है। श्रीलंका के विपक्षी नेताओं ने इस पर कड़ी आपत्ति दर्ज की थी। उनका कहना था कि यह श्रीलंका की सुरक्षा और संप्रभुता के लिए एक ‘ख़तरा’ है।
श्रीलंका रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता कर्नल नलिन हेरात ने अंग्रेज़ी अख़बार ‘द हिंदू’ से कहा है कि दोनों समझौते 16 मार्च को हुए थे जिसमें श्रीलंका रक्षा मंत्रालय के सचिव और कोलंबो में भारतीय उच्चायोग के अधिकारी मौजूद थे। ‘द हिंदू’ के मुताबिक़ दोनों देशों ने इन समझौतों को लेकर कोई आधिकारिक घोषणा नहीं की थी। मंत्रालय ने बताया कि, “भारत सरकार के साथ हाल ही में जिस समुद्री सुरक्षा समझौते पर हस्ताक्षर किए गए हैं वो श्रीलंका की राष्ट्रीय सुरक्षा को न ही ख़तरे में डालता है और न ही उसे बाधा पहुंचाता है।”
मंत्रालय ने कहा है कि ‘भारत सरकार से फ़्लोटिंग डॉक और डोर्नियर टोही विमान बिना किसी क़ीमत पर मिलेगी।’ श्रीलंका की मुख्य विपक्षी पार्टी एसजेबी के सांसद हेरिन फ़र्नांडो ने आरोप लगाया था कि श्रीलंका ने ‘अपने हवाई क्षेत्र को बेच दिया है।’
फ़र्नांडो ने संसद को बताया था कि, “इन समझौतों को करने के बाद श्रीलंका क्षेत्रीय युद्ध में शामिल होने का ख़तरा मोल ले रहा है, क्योंकि इसके कारण श्रीलंका के जलीय क्षेत्र और वायु क्षेत्र को नियंत्रित करने का भारत को अवसर मिल जाएगा। दूसरी तरफ चीन हंबनटोटा बंदरगाह को नियंत्रित कर रहा है।”
एक अन्य विपक्षी पार्टी जेवीपी ने श्रीलंका की सरकार पर आरोप लगाया है कि 1 अरब डॉलर की मदद के बदले में भारत के साथ इन रक्षा समझौतों को किया गया है। दरअसल जबसे श्रीलंका की अर्थव्यवस्था संकट में आई है, तबसे भारत ने उसकी 2.4 अरब डॉलर की मदद कर चुका है। ऐसे में विपक्ष का आरोप है कि भारत से मदद के बदले श्रीलंका सरकार देश की सुरक्षा और संप्रभुता के लिए एक ख़तरा मोल ले रहा है।