लिंगभेद के मुद्दे पर तालिबान को अब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक्शन का सामना करना पड़ सकता है। कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी और नीदरलैंड ने बुधवार को लिंग भेदभाव (Gender Discrimination) पर तालिबान को अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) में ले जाने का फैसला किया है। यह पहली बार है कि इंटरनेशनल कोर्ट का इस्तेमाल इस तरह के मामले के लिए किया गया है।
द गार्जियन की रिपोर्ट के अनुसार, संयुक्त राष्ट्र महासभा (UN General Assembly) में घोषित यह कदम, देशों के लिए अफगान नेतृत्व के साथ राजनयिक रूप से जुड़ने के रास्ते खोल सकता है और उन्हें मानवाधिकारों के उल्लंघन के लिए जिम्मेदार ठहरा सकता है। यह मामला महिलाओं के खिलाफ सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर कन्वेंशन के तहत लाया जा रहा है, जिसे 1979 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा अपनाया गया था और 1981 में लागू किया गया था। अफगानिस्तान ने 2021 में तालिबान के अधिग्रहण से पहले 2003 में इस कन्वेंशन की पुष्टि की थी।
इस कानूनी कार्रवाई के तहत अफगानिस्तान को जवाब देने के लिए 6 महीने का समय दिया जाएगा, इससे पहले कि आईसीजे में सुनवाई हो और कोई एक्शन लिया जाये। वकीलों का मानना है कि अगर तालिबान अदालत के अधिकार की अवहेलना करता है तो आईसीजे का एक फैसला अन्य देशों को अफगान शासन के साथ राजनयिक संबंधों को सामान्य करने से रोक देगा। आईसीजे पर हस्ताक्षरकर्ता आम तौर पर इसके फैसलों का पालन करने के लिए बाध्य हैं।
इन विदेशी महिला मंत्रियों ने किया समर्थन
ऐसी रिपोर्टों सामने आयीं हैं कि तालिबान के साथ संयुक्त राष्ट्र की कुछ वार्ताओं के प्रयास में महिलाओं के अधिकारों को एजेंडे से बाहर रखा गया है। हालांकि, इस मुकदमे को तीन महिला विदेश मंत्रियों का समर्थन प्राप्त है: ऑस्ट्रेलिया की पेनी वोंग, जर्मनी की एनालेना बेयरबॉक और कनाडा की मेलानी जोली। डच विदेश मंत्री कैस्पर वेल्डकैंप ने भी इस पहल का समर्थन किया है।
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अफगानिस्तान में महिलाएं अब सार्वजनिक रूप से नहीं बोल सकतीं
तालिबान के हालिया आदेश के बाद कि महिलाएं अब सार्वजनिक रूप से नहीं बोल सकतीं, जिसके विरोध में अफगान महिलाओं ने एक ऑनलाइन अभियान शुरू किया है। नए नियम महिलाओं को पूरी तरह से ढके बिना घर से बाहर निकलने से रोकते हैं और सार्वजनिक रूप से गाने या अपनी आवाज उठाने पर प्रतिबंध लगाते हैं।
इससे पहले सोमवार को, संयुक्त राष्ट्र के एक कार्यक्रम में बोलते हुए, अभिनेता मेरिल स्ट्रीप ने स्थिति की गंभीरता पर प्रकाश डालते हुए कहा, “अफगानिस्तान में एक मादा बिल्ली को एक महिला की तुलना में अधिक स्वतंत्रता है। काबुल में एक पक्षी गा सकता है, लेकिन एक लड़की नहीं।” मेरिल अफगान कार्यकर्ताओं और मानवाधिकार रक्षकों के साथ जुड़ी हैं और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से अफगान महिलाओं और लड़कियों के अधिकारों की रक्षा और बहाल करने का आग्रह किया।
ऐसे में कुछ देशों ने लैंगिक भेदभाव को खत्म करने के लिए तालिबान के साथ बातचीत करने की इच्छा व्यक्त की है। हालाँकि, अगर ये बातचीत बेनतीजा साबित हुई, तो वे ICJ में सुनवाई करेंगे।
(इनपुट- रॉयटर्स)