भारत और श्रीलंका के बीच रिश्तों पिछले करीब तीन दशकों से काफी उलझे रहे हैं। पहले श्रीलंका में जारी गृहयुद्ध को शांत कराने में भारतीय सेना का दखल और फिर लिट्टे से जुड़े चरमपंथियों के भारत पर किए गए हमलों तक। दोनों देशों में कई मुद्दों पर तनाव रहा है। अब 1989 के दौर में श्रीलंका में भारत के हाई-कमिश्नर के तौर पर काम करने वाले लखन लाल मल्होत्रा ने कुछ बड़े खुलासे किए हैं। एक पत्रिका से बातचीत में उन्होंने बताया है कि श्रीलंका के तत्कालीन राष्ट्रपति राणासिंघे प्रेमदासा ने उन्हें धमकी दी थी कि अगर भारत ने जल्द अपनी सेना नहीं हटाई, तो वे युद्ध से भी पीछे नहीं हटेंगे।
पूर्व उच्चायुक्त के मुताबिक, जब वे प्रेमदासा से मिलने उनके दफ्तर गए थे, तब उन्हें साफ चेतावनी दी गई थी। उन्होंने बताया- “प्रेमदासा ने मुझसे कहा था कि अगर भारत अपनी सेना को वापस नहीं बुलाता, तो वे सरकारी चैनल पर ऐलान कर देंगे कि श्रीलंका के सुरक्षाबलों ने देश के पूर्व और उत्तरी हिस्से की जिम्मेदारी ले ली है। और अगर इसके बाद इंडियन पीसकीपिंग फोर्सेज (IPKF) ने विरोध किया, तो इससे दुश्मनी उभर सकती है और युद्ध की स्थिति पैदा हो सकती है।”
जब गुस्से में कुछ बोल भी नहीं पाए श्रीलंकाई राष्ट्रपति: मेहरोत्रा के मुताबिक, उन्होंने भी तल्ख तेवर अपनाते हुए साफ कर दिया था कि वे राष्ट्रपति से शांति के बारे में बात करने आए हैं। लेकिन अगर वे युद्ध चाहते हैं तो ये भी संभव है। पूर्व उच्चायुक्त ने बताया कि उनकी इस गंभीर बात से प्रेमदासा शांत हुए। क्योंकि शायद उन्हें इस जवाब की उम्मीद नहीं थी। इसके बाद कुछ मिनट तक राष्ट्रपति बोल ही नहीं पाए।
श्रीलंका में पूर्व भारतीय उच्चायुक्त ने बताया कि तब विदेश मंत्री रहे रंजन विजेरत्ने ने उन्हें शांत रहने के लिए कहा। हालांकि, मेहरोत्रा ने उन्हें स्पष्ट जवाब देते हुए कहा कि भारत हमेशा शांति के साथ खड़ा है, लेकिन श्रीलंकाई राष्ट्रपति इस बारे में सिर्फ युद्ध का ही सोच रहे हैं। ऐसी स्थिति में हमें अलग रास्ते लेने चाहिए और नतीजे भुगतने के लिए तैयार रहना चाहिए।
1987 के समझौते को लेकर कभी भारत से नहीं खाई प्रेमदासा की पटरी: बता दें कि भारत और श्रीलंका के बीच 1987 में एक द्विपक्षीय समझौता हुआ था, जिसे तत्कालीन श्रीलंकाई राष्ट्रपति जेआर जयवर्धने और भारत के पीएम राजीव गांधी की सहमति से किया गया था। इसके तहत पूर्वोत्तर श्रीलंका में तमिल अलगाववाद को खत्म करने के लिए भारतीय सेना को वहां तैनात किया गया था।
हालांकि, आर प्रेमदासा जो 1988 के अंत में श्रीलंका के राष्ट्रपति बने, उन्होंने कभी भी इस समझौते को नहीं माना। उन्होंने भारतीय सेना को भी वापस भेजने की शपथ ली थी। जून 1989 में तमिल टाइगर्स से बातचीत शुरू करने के बाद उन्होंने सार्वजनिक तौर पर भारत को सेना वापस बुलाने की नसीहत दे दी थी। इसे लेकर राजनयिक स्तर पर काफी तनाव भी देखने को मिला। लेकिन भारत ने मार्च 1990 में अपनी सेना को वापस बुला लिया।