बांग्लादेश के सियासी बवाल के बाद शेख हसीना का अपने ही देश से एग्जिट हो चुका है। स्थिति पूरी तरह अप्रत्याशित है क्योंकि जो नेता कई सालों से पीएम पद पर बैठी थीं, जिनके पिता ने इस बांग्लादेश का निर्माण किया था, उसी देश ने उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया। आलम यह रहा कि एक प्रधानमंत्री को देश छोड़ने के लिए सेना ने सिर्फ 45 मिनट का वक्त दिया। अब हसीना तो भारत आ चुकी हैं, लेकिन सियासी भविष्य को लेकर अंधकार छाया हुआ है। सभी को लग रहा है कि शेख हसीना की फिर बांग्लादेश वापसी मुश्किल है।
बांग्लादेश संकट: हसीना को अप्रासंगिक होने से बचना होगा
अब पहली नजर में तो सही में शेख हसीना के लिए स्थिति अब काफी जटिल लगती है। उसका कारण यह है कि हसीना एक अप्रत्याशित स्थिति में अपना देश छोड़ भागी हैं, एक तरह से उन्हें तख्तापलट का सामना करना पड़ा है। वहां के लोगों में भी उनके खिलाफ जो गुस्सा देखने को मिला है, उससे उनकी वापसी जल्द तो होती नहीं दिख रही। लेकिन यही पर अब शेख हसीना को अपने विरोधियों से ही सीखने की जरूरत है। यह सच है कि अब वे बांग्लादेश से दूर रहने वाली हैं, शायद किसी दूसरे दूर देश में शरण लेंगी, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि वे बांग्लादेश की राजनीति से पूरी तरह अप्रासंगिक हो जाएंगी, उन्हें अपनी समय-समय पर उपस्थिति दर्ज करवानी पड़ेगी। उनके पॉलिटिकल सर्वाइवल के लिए यह बहुत जरूरी रहने वाला है।
बांग्लादेश से दूर रहकर खेल करने वाले तारिक रहमान
अब यह सब तभी मुमकिन है जब शेख हसीना सोच समझकर आगे के कदम बढ़ाएंगी। इस मामले में उन्हें अपने ही सबसे बड़े सियासी दुश्मन से सीखना चाहिए। उस दुश्मन का नाम है तारिक रहमान। तारिक रहमान वर्तमान में बीएनपी पार्टी के उपाध्यक्ष हैं, पूर्व पीएम खालिदा जिया के बेटे हैं। लेकिन पिछले 16 सालों से वे बांग्लादेश से 8000 किलोमीटर दूर लंदन में रहने को मजबूर थे। अगर बीएनपी के कार्यकर्ताओं से बात की जाएगी तो सामने से जवाब आता है कि तारिक रहमान को फंसाया गया, उन्हें साजिश के तहत अपने देश से ही दूर कर दिया गया।
तारिक की सक्रियता दिखाएगी हसीना को आगे का रास्ता
दूसरी तरफ अगर आवामी लीग के किसी कार्यकर्ता को पकड़ेंगे तो तुरंत जवाब मिलता है कि वो भ्रष्टाचारी है, आपराधिक मामलों में अपनी अहम उपस्थिति दर्ज करवा चुका है। लेकिन जो भी बातें हों, इस तथ्य को लेकर कोई विवाद नहीं है- पिछले 16 सालों में बांग्लादेश से दूर रहकर भी बांग्लादेश की राजनीति में उन्होंने सीधी दखल रखी है, समय-समय पर उनकी उपस्थिति महसूस की गई है। यही वो तरीका जिसने एक बार फिर तारिक रहमान को बांग्लादेश आने का मौका दिया और अब वे बड़ी भूमिका निभाने को पूरी तरह तैयार दिख रहे हैं। लेकिन सवाल यह उठता है कि तारिक रहमान ने बांग्लादेश से दूर रहते हुए भी कैसे वहां की राजनीति में सीधी दखल रखी? इस सवाल का जवाब ही शेख हसीना के लिए उनकी आगे की रणनीति हो सकती है, उनकी वतन वापसी का रास्ता भी इसी जवाब से खुल सकता है।
अफगानिस्तान के तालिबान और बांग्लादेश के उपद्रवी में कोई अंतर नहीं
कैसे तारिक रहमान ने रची हसीना विदाई की पटकथा?
तारिक रहमान को लेकर दो बातें कहीं जाती हैं। पहली यह कि उन्होंने बांग्लादेश से दूर रहकर भी अपनी बीएनपी को संभालने का काम किया। जब 2018 में खालिदा जिया को जेल हो गई, तब भी लंदन में बैठकर ही उन्होंने बीएनपी का नेतृत्व किया। दूसरी थ्योरी तारिक को लेकर यह चलती है कि शेख हसीने के तख्तापलट में उनका पूरा हाथ है। 6 साल की रणनीति बनाने के बाद उन्होंने एक ताकतवर नेता को उसी के देश से बाहर जाने पर मजबूर कर दिया। असल में ऐसा बताया जा रहा है कि तारिक ने पाकिस्तान की ISI के साथ मिलकर शेख हसीना को हटाने की तैयारी की थी। बीएनपी और जमात ए इस्लामी का जो गठबंधन बांग्लादेश में देखने को मिला, उसमें भी ISI का हाथ रहा।
तारिक ने नहीं मानी हार, कई आरोप लगे, फिर भी खड़े रहे
लेकिन इस पूरी रणनीति में अहम भूमिका तारिक ने निभाई क्योंकि वे यूरोप के अलग-अलग देशों में समय-समय पर पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी से मिलते रहे, हसीना को सत्ता से बेदखल करने के लिए रणनीति बनाते रहे। इसी का नतीजा रहा कि बांग्लादेश में जमात ए इस्लामी मजबूत हुआ, कॉलेजों में उसका कैडर मजबूत रहा और समय आते ही उसने छात्रों के आंदोलन में सबसे बड़ा रोल निभा लिया। अब इस पूरे खेल में तारिक ने ही सारी मीटिंग की, उन्हीं की तरफ से जरूरी फैसले लिए गए। अब वे चाहते तो आराम से बांग्लादेश की राजनीति से दूर लंदन में अपना जीवन बिता सकते थे। लेकिन उन्होंने उतार-चढ़ाव के वक्त भी खुद को राजनीति में पूरी तरह सक्रिय रहा, बैकडोर रणनीति बनाकर हसीना को ही सियासी चक्रव्यूह में फंसा दिया और बाद में उसी वजह से उनकी देश से विदाई भी हो गई।
दूर रहकर भी पार्टी से जुड़े रहे तारिक
अब तारिक ने सही किया या गलत, यह बहस का विषय है, लेकिन राजनीति में वे सक्रिय रहे, यह एक सच्चाई है। उन्होंने लंदन में रहने के बावजूद भी अपनी पार्टी से मुंह नहीं मोड़ा। बताया जा रहा है कि लंदन में रहते हुए भी लगातार पार्टी कार्यकर्ताओं से बात करना, उन्हें वीडियो कॉल, यह सबकुछ तारिक करते थे। एक ऐसा कम्युनिकेशन सेट अप तैयार कर रखा था जहां पर दूर रहकर भी कोई दुविधा या अविश्वास पैदा नहीं हुआ।
हर आरोप का किया सामना, विवादों के सामने नहीं झुके
तारिक पर वैसे एक गंभीर आरोप भी लगा हुआ है। असल में 2004 में तब की प्रधानमंत्री शेख हसीना पर जानलेवा हमला हुआ था, एक ग्रेनेड अटैक में 20 लोगों की मौत हुई, शेख हसीना भी घायल हुईं। उस हमले का मास्टरमाइंड तारिक रहमान को बता दिया गया, कोर्ट ने आजीवान कारावास की सजा सुना डाली। पहली नजर में करियर खत्म, सबकुछ छिन गया, लेकिन तारिक लंदन चले गए और वहां रहकर छोटे कदमों के जरिए फिर वापसी की कोशिश शुरू कर दी।
शेख हसीना को अब क्या करना होगा?
समझने वाली बात यह है कि तारिक पर आरोप लगे थे, उनकी पार्टी तो आज भी मानती है कि उन्हें झूठे केस में फंसाया गया। ऐसे में ज्यादा बड़ी बात यह है कि तमाम विवादों के बावजूद भी तारिक रहामन ने खुद को स्थिर रखा और काफी चालाकी से बांग्लादेश की राजनीति में हर उथल-पुथल को अंजाम दिया। अब शेख हसीना भी वैसी ही स्थिति में फंसी हुई हैं। अंतरिम सरकार के प्रमुख ने तो उन्हें एक हत्या के मामले में आरोपी तक बना डाला है। ऐसे में अब मुश्किल समय में खुद को सक्रिय रखना शेख हसीना के लिए सबसे जरूरी है।
आवामी लीग के साथ संवाद स्थापित करना जरूरी
तारिक रहमान की तरह उन्हें भी आवामी लीग के साथ फिर संवाद स्थापित करना पड़ेगा। जिस तरह से बांग्लादेश में उनके कार्यकर्ताओं को मौत के घाट उतारा जा रहा है, वो देखते हुए उनका मनोबल बढ़ाने के लिए हसीना को ही दूर रहते हुए ही कुछ जरूरी कदम उठाने पड़ेंगे। यहां भी सबसे जरूरी संवाद स्थापित रखना अहम रहने वाला है, जितनी बात करती रहेंगी, अपनी पार्टी पर पकड़ भी उतनी मजबूत रख पाएंगी। वैसे हसीना ने खुद कहा है कि वे जल्द वापस आएंगी, लेकिन वे अगर यह सोच रही हों कि कुछ सालों बाद बांग्लादेश में वापस आने के बाद वे फिर राजनीति करना शुरू करेंगी, तो यह एक बड़ा ब्लंडर साबित हो सकता है।
कैसे होगा हसीना को सफल पॉलिटिकल कमबैक?
शेख हसीना को अभी से ही फिर सक्रिय होने की कोशिश करनी पड़ेगी। माना वे बांग्लादेश से दूर हैं, लेकिन फिर भी उन्हें वहां की राजनीति में दूर से रहकर भी अपनी उपस्थिति दर्ज करवानी होगी। जिस तरह से बीएनपी और तारिक ने समय-समय पर उनकी सरकार को घेरने का काम किया, अब हसीना को वही रवैया अपनाते हुए अंतरिम सरकार की गतिविधियों पर पैनी नजर रखनी होगी। सियासत में एक गलती ही भारी पड़ सकती है, ऐसे में हसीना को उसी का इंतजार करना होगा और फिर मौका देखकर फिर सियासी छक्का लगाना होगा। अगर ऐसा हुआ तो उनकी वतन वापसी भी होगी, उनका सियासी वनवास भी खत्म होगा और सफल पॉलिटिकस कमबैक्स में उनका नाम भी शुमार हो जाएगा।
