प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को ईरान के सर्वोच्च नेता सैयद अली खमनेई को पवित्र कुरान की सातवीं सदी की एक दुर्लभ पांडुलिपि उपहार में दी जो कुफिक लिपि में लिखी हुई है और इसका श्रेय पैगंबर के दामाद हजरत अली को दिया जाता है। मोदी ने खमनेई से उनके कार्यालय में मुलाकात की और सर्वोच्च नेता को सातवीं सदी की पवित्र कुरान की पांडुलिपि उपहार में दी जिसका श्रेय चौथे इस्लामी खलीफा और पहले शिया इमाम हजरत अली को जाता है।
दो बार के पूर्व राष्ट्रपति और 76 वर्षीय शिया मुफ्ती अयातुल्ला खमनेई का ईरान के विदेश नीति से संबंधित और अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों पर अंतिम निर्णय होता है। कुफिक लिपि में लिखी पांडुलिपि संस्कृति मंत्रालय के नियंत्रणाधीन है उत्तर प्रदेश में रामपुर रजा पुस्तकालय में रखी है।
कुफिक लिपि इराक के कुफा में सातवीं सदी के आखिर में विकसित हुई थी। यह विभिन्न अरबी लिपियों में सबसे पुरानी कैलीग्राफिक लिपि है। मोदी ने राष्ट्रपति हसन रूहानी को मिर्जा गालिब की फारसी भाषा में लिखी शायरी के विशेष रूप से तैयार किये गये संग्रह को भेंट किया। सबसे पहले 1863 में प्रकाशित कुलियत-ए-फारसी-ए-गालिब गालिब की 11,000 से अधिक आयतों का संग्रह है।
मोदी ने रूहानी को जो संग्रह भेंट किया है वह पुस्तक के 1867 के संस्करण की दुर्लभ प्रति है जिसमें कुछ गुम हुए पृष्ठ मौलाना आजाद के एक निजी संग्रह में रखे 1872 के एक संस्करण से लेकर जोड़े गये हैं। यह पुस्तक नयी दिल्ली में भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद के पुस्तकालय में संरक्षित है। मोदी ने सुमेर चंद के रामायण के फारसी अनुवाद को भी उपहार में दिया। 1715 में अनूदीत यह रामायण एक दुर्लभ पांडुलिपि है और इसमें 260 से अधिक रेखाचित्र हैं। जो संभवत: किसी हस्तलिखित रामायण की पांडुलिपि में सर्वाधिक संख्या है।

