पाकिस्तान फरवरी 2021 तक वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (एफएटीएफ) की ‘ग्रे (निगरानी)’ सूची में बना रहेगा क्योंकि वह वैश्विक धनशोधन और आतंकवाद के वित्तपोषण को रोकने के लिए छह कार्ययोजनाओं को पूरा करने में विफल रहा है। अधिकारियों ने शुक्रवार को यह जानकारी दी। द हिंदू अखबार ने सूत्रों के हवाले से बताया है कि एफएटीएफ की लिस्ट से पाकिस्तान को निकालने की अपील सिर्फ तुर्की की तरफ से की गई थी, जबकि चीन, मलेशिया और सऊदी अरब ने पाकिस्तान का साथ नहीं दिया।
पाकिस्तान ने जिन छह कार्यों को पूरा नहीं किया है उनमें जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मौलाना मसूद अजहर और लश्कर-ए-तैयबा के सरगना हाफिज सईद के खिलाफ कार्रवाई करने में विफल होना भी शामिल हैं। ये दोनों आतंकवादी भारत में मोस्ट वॉन्टेड हैं। पिछले तीन दिनों तक एफएटीएफ का डिजिटल पूर्ण सत्र आयोजित हुआ। इसमें फैसला हुआ कि धनशोधन और आतंकवाद को वित्त पोषण के खिलाफ लड़ाई में पाकिस्तान वैश्विक प्रतिबद्धताओं और मापदंडों को पूरा करने में अब तक असफल रहा है।
एफएटीएफ के अध्यक्ष मार्कस प्लीयर ने पेरिस से एक ऑनलाइन संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘‘पाकिस्तान निगरानी सूची या ग्रे सूची में बना रहेगा।’’ उन्होंने कहा कि पाकिस्तान आतंकवाद के वित्तपोषण को रोकने के लिए कुल 27 कार्ययोजनाओं में से छह को पूरा करने में अब तक विफल रहा है और इसके परिणामस्वरूप यह देश एफएटीएफ की ग्रे सूची में बना रहेगा।”
उन्होंने कहा कि पाकिस्तान को आतंक के वित्तपोषण में शामिल लोगों पर प्रतिबंध लगाना चाहिए और मुकदमा चलाना चाहिए। एफएटीएफ के प्रमुख ने कहा, ‘‘पाकिस्तान को आतंकवाद का वित्तपोषण रोकने के लिए और प्रयास करने की जरूरत है।’’ बता दें कि पाकिस्तान को 2018 में आतंक वित्तपोषण के खतरे के बाद ‘ग्रे’ सूची में डाल दिया गया था।
सू्त्रों ने बताया कि पाकिस्तान जैश-ए-मोहम्मद के सरगना अजहर, लश्कर-ए-तैयबा के सरगना हाफिज सईद और संगठन के ऑपरेशनल कमांडर जाकिउर रहमान लखवी जैसे संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रतिबंधित आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई करने में विफल रहा है। इसके अलावा एफएटीएफ ने इस बात को भी ध्यान में रखा कि आतंकवाद विरोधी अधिनियम की अनुसूची चार के तहत उसकी आधिकारिक सूची से अचानक से 4,000 से अधिक आतंकवादियों के नाम गायब हो गए।
अब अगले साल फरवरी में होने वाली एफएटीएफ की अगली बैठक में पाकिस्तान की स्थिति की समीक्षा की जायेगी। प्लीयर ने कहा कि उत्तर कोरिया और ईरान एफएटीएफ की ‘काली’ सूची में बने हुए हैं क्योंकि दोनों देशों ने कोई प्रगति नहीं की है। जबकि कार्ययोजनाओं को पूरा करने के बाद आइसलैंड और मंगोलिया को ‘ग्रे’ सूची से हटा दिया गया है।
सूत्रों ने बताया कि चार देश अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी, अपनी धरती से सक्रिय आतंकी समूहों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की पाकिस्तान की प्रतिबद्धता से संतुष्ट नहीं थे। पाकिस्तान के ‘ग्रे’ सूची में लगातार बने रहने से अब इस देश के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ), विश्व बैंक, एशियाई विकास बैंक (एडीबी) और यूरोपीय संघ से वित्तीय सहायता लेना कठिन होता जा रहा है, इसलिए पड़ोसी देश के लिए समस्याएं अब और बढ़ने वाली है जिसकी आर्थिक स्थिति पहले से ही खराब है।
पाकिस्तान को ‘ग्रे’ सूची से बाहर निकलने और ‘व्हाइट’ सूची में जाने के लिए 39 में से 12 वोटों की आवश्यकता थी। ‘काली’ सूची से बचने के लिए उसे तीन देशों के समर्थन की आवश्यकता थी। चीन, तुर्की और मलेशिया इसके लगातार समर्थक रहे हैं। एफएटीएफ ने जून, 2018 को पाकिस्तान को ‘ग्रे’ सूची में डाल दिया था और उससे अक्टूबर, 2019 तक एक कार्ययोजना को पूरा करने के लिए कहा था। इसके बाद से यह देश एफएटीएफ की कार्ययोजना को पूरा करने में विफल रहने के कारण लगातार इस सूची में बना हुआ है।